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  1. <?xml version='1.0' encoding='UTF-8'?><rss xmlns:atom="http://www.w3.org/2005/Atom" xmlns:openSearch="http://a9.com/-/spec/opensearchrss/1.0/" xmlns:blogger="http://schemas.google.com/blogger/2008" xmlns:georss="http://www.georss.org/georss" xmlns:gd="http://schemas.google.com/g/2005" xmlns:thr="http://purl.org/syndication/thread/1.0" version="2.0"><channel><atom:id>tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142</atom:id><lastBuildDate>Wed, 02 Oct 2024 07:19:54 +0000</lastBuildDate><category>बात बेबाक</category><category>कभी कभी मेरे दिल में...</category><category>कुछ ख़ास मौकों पर</category><category>निंदक नियरे राखिये</category><category>संगी साथी</category><category>आब्ज़ेक्शन मी लार्ड</category><category>टिप्पणियों पर</category><category>बेतक़ल्लुफ़</category><category>अपठनीय</category><category>एक साफ सुथरे दिमाग की</category><category>निट्ठल्ले का फोटोब्लाग</category><category>बुरबकई</category><category>संदर्भहीन व्याख्यायें</category><category>धूप छाँव</category><category>यह कोई गप्प नहीं</category><category>कुछ तो है</category><category>कमज़ोर सरकारों कीपरंपरा</category><category>कवितायें</category><category>खिंचाखिंचाई</category><category>अथ श्री काकचरितम</category><category>आब्ज़ेक्शन</category><category>जात न पूछौ साधु की</category><category>यह कोई तक़ल्लुफ़ नहीं</category><category>यूरेका - यूरेका</category><category>लेलो पूरी गर्रमागाराम पूरी</category><category>तलाश है |</category><category>बुरबकिया पोस्ट्स</category><category>सारा जहाँ माइक्रो माइक्रो</category><category>चिट्ठचर्चा सँदर्भ</category><category>तलाश है</category><category>बेतक़ल्लुफ़</category><title>कुछ तो है.....जो कि ! *</title><description></description><link>http://c2amar.blogspot.com/</link><managingEditor>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</managingEditor><generator>Blogger</generator><openSearch:totalResults>118</openSearch:totalResults><openSearch:startIndex>1</openSearch:startIndex><openSearch:itemsPerPage>25</openSearch:itemsPerPage><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-4395272840996112280</guid><pubDate>Sun, 04 Oct 2009 15:35:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-10-04T21:09:18.382+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">आब्ज़ेक्शन मी लार्ड</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">एक साफ सुथरे दिमाग की</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">निंदक नियरे राखिये</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बेतक़ल्लुफ़</category><title>ग़ैरज़रूरी बहसों में अटके हुये</title><description>&lt;blockquote&gt;   &lt;p&gt;&lt;strong&gt;ऐसे क्या कारण हैं कि हिन्दी कि फॅमिली बेकग्राउंड होते हुआ भी हिन्दी विषय मे कोई डिग्री नहीं हैं बहुतो से ब्लॉगर के पास ??&amp;#160; क्यूँ ??&lt;/strong&gt;&lt;/p&gt; &lt;/blockquote&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;http://mypoeticresponse.blogspot.com/2009/10/blog-post_03.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;strong&gt;क्षमा चाहूँगा, रचना…&lt;/strong&gt;&lt;/a&gt;     &lt;br /&gt;मेरा&amp;#160; जैसे&amp;#160; आपसे मतभेद योग चल रहा है ।     &lt;br /&gt;आपका यह प्रश्न ब्लागर के सँदर्भ में तो क्या, साहित्य के सँदर्भ में भी बेमानी है ।     &lt;br /&gt;पृष्ठभूमि होने के मायने यह नहीं है कि, उस क्षेत्र या भाषा विशेष पर एकाधिकार ही माना जाये ।     &lt;br /&gt;यदि परिवारवाद को लेकर चलें तो भी बेबुनियाद है । परिवार का जिक्र आया ही है, तो यह बता दूँ कि     &lt;br /&gt;स्व० जयशँकर प्रसाद अपने पुश्तैनी धँधे, इत्र, तम्बाकू और सुँघनी के व्यापार से ही जीवनपर्यँत&amp;#160; ही जुड़े रहे,     &lt;br /&gt;परँतु जो उन्होंनें रच दिया, वह पी.एच.डी. करने वाले पर भी भारी पड़ता है । मैथिलीशरण गुप्त, श्रीलाल शुक्ल जैसे बीसियों उदाहरण हैं । विमल मित्र एक मामूली स्टेशन मास्टर थे, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी भी रेलवेकर्मी रहे थे । अँग्रेज़ी तक में उदाहरण लें तो सामरसेट मॉम पेशॆ से डाक्टर थे । जीविकोपार्जन का माध्यम कुछ भी हो, साहित्यिक अभिरुचि इसमें कहाँ आड़े आती है, आपसे जरा तफ़्सील से समझना चाहूँगा । हम सब को ( कम से कम मुझे )आपसे इस विषय को सँदर्भित किये गये पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी । खेद है कि, हम हिन्दी को कुछ देना तो दूर, देने और देते रहने का दम भरते हुये अपनी मातृभाषा को इन्हीं ग़ैरज़रूरी मुद्दों पर जहाँ के तहाँ लटकाये&amp;#160; हुये हैं । क्योंकि हमें अपने अलावा किसी अन्य का सुर्ख़ियों में उभरना ग़वारा नहीं है । किसी डिग्री विशेष का रचनाधर्मिता से क्या वास्ता निकलता है,&amp;#160; यह रिश्ता जरा मुझे भी भी समझायें । हिन्दी को लेकर अँग्रेज़िन च्यूइँग-गम कब तक चबाया और थूका जाता रहेगा ? क्या ऎसे बहस से हिन्दी माता का यह भ्रम बनाये रखा जाता है कि, उसके तीनों राजकाजी, विद्वान और जनमानस बेटे उसकी सेवा में लगे हुये हैं । सो, इन सबका निराकरण करें, आपका कृपाकाँक्षी हूँ ।&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;http://mypoeticresponse.blogspot.com/2009/10/blog-post_03.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px&quot; title=&quot;Rachna ke bahane&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;Rachna ke bahane&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiThs5oBecWrLcAJMUBn068rfSEdN2YUxqAnzlegkdAPCLtWOcaOmTjaH9S8t6AUAJCcZTBVaNhbVmQgfsfUrgJcU-tUQVseo0OVKh_VdmuN1GodHJt5pckt-b20x1F4PClMkoNDLHHdr-I/?imgmax=800&quot; width=&quot;453&quot; height=&quot;480&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/p&gt;  &lt;div style=&quot;padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; float: none; padding-top: 0px&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:12b648f2-13c5-4a45-9ead-5c30062bbee3&quot; class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Hindi+Bloggers&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Hindi Bloggers&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Non+Professional+Writers&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Non Professional Writers&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Work+and+Hobby&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Work and Hobby&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Creative+Hindi&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Creative Hindi&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/10/blog-post.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiThs5oBecWrLcAJMUBn068rfSEdN2YUxqAnzlegkdAPCLtWOcaOmTjaH9S8t6AUAJCcZTBVaNhbVmQgfsfUrgJcU-tUQVseo0OVKh_VdmuN1GodHJt5pckt-b20x1F4PClMkoNDLHHdr-I/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>32</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-5750762283207108151</guid><pubDate>Mon, 28 Sep 2009 06:28:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-09-29T22:01:27.960+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">अपठनीय</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">एक साफ सुथरे दिमाग की</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">निंदक नियरे राखिये</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बात बेबाक</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बेतक़ल्लुफ़</category><title>क़न्फ़्यूज़ियाई पोस्ट - हमका न देहौ, तऽ थरिया उल्टाइन देब</title><description>&lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;span style=&quot;color: #510000&quot;&gt;मसल है...      &lt;br /&gt;खाय न देब तऽ थरिया उल्टाइन देब &lt;/span&gt;    &lt;br /&gt;&lt;/div&gt;  &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;span style=&quot;color: #510000&quot;&gt;&lt;strong&gt;&lt;em&gt;अर्थात, हे पाठकों          &lt;br /&gt;यदि मुझे अपनी मर्ज़ी अनुसार पसँद नहीं मिलेगी,           &lt;br /&gt;तो मैं परसी हुई पूरी थाली उल्टा तो सकता ही हूँ !&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt; &lt;/span&gt;    &lt;br /&gt;&lt;/div&gt;  &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;span style=&quot;color: #510000&quot;&gt;खेद तो यह है कि, यह सब देखते देखते हो गया, जब&amp;#160; मैं&amp;#160; ब्लागवाणी&amp;#160; खोल&amp;#160; कर टिप्पणी के लिये पोस्ट चुन रहा था ।      &lt;br /&gt;रात्रि के 11.37 पर पेज़ रिफ़्रेश करने को F5 दबाया और आईला ’ रुकावट के लिये खेद है ’ जैसा ब्लागवाणी का पन्ना चमकने लगा । अफ़सोस दिल गड्ढे में जा गिरा । कीबोर्डवा से फौरन F5 नोंच कर फेंक दिया, ससुरी यही है, झगड़े की जड़ !&amp;#160; Freedom at Midnight पढ़ने में मन लगाना चाहा, देसी रियासत रज़वाड़ों की खुदगर्ज़ी के किस्से पढ़ कर अपनी कौम पर गर्व हो आया, लगा कि हम उनसे किसी मायने में अलग नहीं हैं । आख़िर अपने ब्लाग का मालिकाना हक़ है, हमरे पास..&amp;#160; जुगाड़ से चार ठो चारण भी जुटा लिये हैं । अयहय, अब कोई यह तो कहेगा कि ’ अलि कली सों बिन्ध्यौं, अब आगे कौन हवाल ! “ अउर हवाल यह कि अपने हाथन कली नोंच कर फेंक दिया । पाठकों के पसँद नापसँद को लेकर ऎसी सजगता, और कहाँ ? आख़िर कीबोर्ड के वाज़िद अली शाह हैं हम !&lt;/span&gt;     &lt;br /&gt;&lt;/div&gt;  &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmD-aCkeD6WNL4haE3ppKzJF0AIy2rO4PflTSL1RiFfHGUO0JT8Lui3fQQQVjHbelCRpAAMj0OskXAYYqULHwbrGM_rzqQeEj0v9jwBid_3sJE5UAbpIi3ZBywWFIZxM5bEbOiQvdqt04j/s1600-h/blogvani%5B6%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px&quot; title=&quot;blogvani&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;blogvani&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgkSuJLy6IvIXgG2unIMAy2nrcWTVGg_MeH5qXBgGlO9orxopV6yjy2niRSYVlhZ7FRIKwpkYkRfSp0YhWdX_gjHul7o84QkTzyFGwxlzj_HiLbEDDFDV_kP-Lb-m6WUNyRUXWx2mHpyDf/?imgmax=800&quot; width=&quot;594&quot; height=&quot;564&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&amp;#160; &lt;br /&gt;&lt;span style=&quot;color: #510000&quot;&gt;&lt;a href=&quot;http://amar8weblog.blogspot.com/2009/09/blog-post_27.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;strong&gt;सिरफिरा था भगत सिंह&lt;/strong&gt;&lt;/a&gt; जो कल अपने जन्म दिन पर अपने वतन में याद तक न किया गया । वयम पोस्ट लिखित्वा ब्लाग वाः साहित्यवाः के फेर में चिन्तामग्न साहित्यलॉग कर्मी &lt;strong&gt;दुष्यँत&amp;#160; कुमार&lt;/strong&gt; की बरसी पर किसीको याद भी न आये | या तो स्मृति समारोह में जाने को पहनने को कमीज़ उठायी होगी, और लेयो थमक गये, “&amp;#160; हँय मेरी कमीज़ उसकी कमीज़ से मैली क्यों ? मेरे अद्वितीय पोस्ट की पसँद उसके सड़े पोस्ट से निचली क्यों ? “ लिहाज़ा&amp;#160; धप्प से बईठ गये, उनके शून्य विचार में बस यही आया होगा कि, &amp;quot; चलो आज एक धत्त तेरी की – हत्त तेरी की पोस्ट लिखी जाय, यह नूतन विधा है, मैथिली बाज़ार बड़े शवाब पर है ,थोड़ी भगदड़ सही !&amp;#160; ऎसे कुविचार ब्लागलेखन के अनिवार्य तत्व हैं, यह सब अनाप शनाप सोच नींद को अपने पैर जमाने से रोक रही थीं । एम.पी.थ्री प्लेयर का हेडफोन कान से लगा लिया,&amp;#160; धीरे से आजा री निंदिया अँखिंयों में निंदिया आजा री आजा !&lt;/span&gt; &lt;/div&gt;  &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;   &lt;p&gt;&lt;object classid=&quot;clsid:d27cdb6e-ae6d-11cf-96b8-444553540000&quot; codebase=&quot;http://fpdownload.macromedia.com/pub/shockwave/cabs/flash/swflash.cab#version=8,0,0,0&quot; width=&quot;470&quot; height=&quot;36&quot; id=&quot;divplaylist&quot;&gt;&lt;param name=&quot;movie&quot; value=&quot;http://www.divshare.com/flash/playlist?myId=8679836-ddc&amp;amp;new_design=true&quot; /&gt;&lt;embed src=&quot;http://www.divshare.com/flash/playlist?myId=8679836-ddc&amp;amp;new_design=true&quot; width=&quot;470&quot; height=&quot;36&quot; name=&quot;divplaylist&quot; type=&quot;application/x-shockwave-flash&quot; pluginspage=&quot;http://www.macromedia.com/go/getflashplayer&quot;&gt;&lt;/embed&gt;&lt;/object&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p&gt;&lt;span style=&quot;color: #510000&quot;&gt;अयईयो ये किया गडबड जे.. श्रीधर सुनिधि की जोड़ी हेडफोन में घुस कर चिढ़ाने लगीं । इनको कैसे पता चला कि, ब्लागवाणी ने रुसवाई चुन ली है ? चाहें तो आप ही लपक लें, वाह क्या स्क्रिप्ट बन पड़ी है, &amp;quot; ब्लाग आज कल ! &amp;quot;&lt;/span&gt;       &lt;br /&gt;&lt;/p&gt; &lt;/div&gt;  &lt;blockquote&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000ae&quot;&gt;&lt;em&gt;चोर बाजारी दो नैनों की,        &lt;br /&gt;पहले थी आदत जो हट गयी,         &lt;br /&gt;प्यार की जो तेरी मेरी,         &lt;br /&gt;उम्र आई थी वो कट गयी,         &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;दुनिया की तो फ़िक्र कहाँ थी,          &lt;br /&gt;तेरी भी अब चिंता मिट गयी...&lt;/strong&gt; &lt;/em&gt;&lt;/span&gt;    &lt;br /&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000ae&quot;&gt;&lt;em&gt;तू भी तू है मैं भी मैं हूँ        &lt;br /&gt;दुनिया सारी देख उलट गयी,         &lt;br /&gt;तू न जाने मैं न जानूं,         &lt;br /&gt;कैसे सारी बात पलट गयी,         &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;घटनी ही थी ये भी घटना,          &lt;br /&gt;घटते घटते ये भी घट गयी...&lt;/strong&gt; &lt;/em&gt;&lt;/span&gt;    &lt;br /&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000ae&quot;&gt;&lt;em&gt;चोर बाजारी... &lt;/em&gt;&lt;/span&gt;    &lt;br /&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000ae&quot;&gt;&lt;em&gt;तारीफ तेरी करना, तुझे खोने से डरना ,        &lt;br /&gt;हाँ भूल गया अब तुझपे दिन में चार दफा मरना...         &lt;br /&gt;प्यार खुमारी उतारी सारी,         &lt;br /&gt;बातों की बदली भी छट गयी,         &lt;br /&gt;हम से मैं पे आये ऐसे,         &lt;br /&gt;मुझको तो मैं ही मैं जच गयी...         &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;एक हुए थे दो से दोनों,          &lt;br /&gt;दोनों की अब राहें पट गयी...&lt;/strong&gt; &lt;/em&gt;&lt;/span&gt;    &lt;br /&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000ae&quot;&gt;&lt;em&gt;अब कोई फ़िक्र नहीं, गम का भी जिक्र नहीं,        &lt;br /&gt;हाँ होता हूँ मैं जिस रस्ते पे आये ख़ुशी वहीँ...         &lt;br /&gt;आज़ाद हूँ मैं तुझसे, अज़स्द है तू मुझसे,         &lt;br /&gt;हाँ जो जी चाहे जैसे चाहे करले आज यहीं...         &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;लाज शर्म की छोटी मोटी,          &lt;br /&gt;जो थी डोरी वो भी कट गयी&lt;/strong&gt;,         &lt;br /&gt;चौक चौबारे, गली मौहल्ले,         &lt;br /&gt;खोल के मैं सारे घूंघट गयी...         &lt;br /&gt;तू न बदली मैं न बदला ,         &lt;br /&gt;दिल्ली सारी देख बदल गयी...         &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;एक घूँट में दुनिया सारी,          &lt;br /&gt;की भी सारी समझ निकल गयी,           &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;रंग बिरंगा पानी पीके,         &lt;br /&gt;सीधी साधी कुडी बिगड़ गयी...         &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;देख के मुझको हँसता गाता,          &lt;br /&gt;जल गयी ये दुनिया जल गयी....&lt;/strong&gt;&lt;/em&gt;&lt;/span&gt;     &lt;br /&gt;&lt;/blockquote&gt;  &lt;p align=&quot;center&quot;&gt;&lt;span style=&quot;font-size: small&quot;&gt;&lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#070707&quot; size=&quot;3&quot;&gt;वईसे विजयादशमी शुभकामनाओं की तो होती ही है, इसे चाहे जिस रूप में ग्रहण करें, मर्ज़ी आपकी&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;&lt;/span&gt;     &lt;br /&gt;&lt;/p&gt; &lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgMTU_O4SbrY5fNmaTHDsC6KJTMSI_DpbyrELwQnPfaGLePfMfABMsBCLFbv_P3-Jywyeh8db5hgnK7t982uXrTTU5_qkJRDRgv3PICpR0Yd6foW9SJjZJPsV6TxlYzgtoxFrfFqUGyka6U/s1600-h/vvvvvv%5B5%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px&quot; title=&quot;vvvvvv&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;vvvvvv&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioS-rZO-WUtMeS0im5SHnuGWiTvtyY7O8PHwcBQDT8vFX9RbWxLAy8DzUWWATta5o5APyZhsA_SjTKMo26Dhc-oNR9vYeeQUjc8_MuN1xRmAu_fVc_ElP-GyzsWb9XEj7SuvWHnSAu14gi/?imgmax=800&quot; width=&quot;459&quot; height=&quot;379&quot; /&gt;&lt;/a&gt;   &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#ff0000&quot; size=&quot;3&quot;&gt;&lt;strong&gt;&lt;em&gt;ताज़ा अपडेट&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt;&lt;/font&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#080808&quot; size=&quot;2&quot;&gt;&lt;em&gt;ब्लागवाणी का यह निर्णय किन्हीं निहित तत्वों के मँसूबों को फलीभूत कर रहा है,        &lt;br /&gt;बल्कि होना तो यह चाहिये था कि, इनकी अवहेलना कर इस पर तुषारापात किया जाये,         &lt;br /&gt;ऎसा तभी सँभव है, यदि यह टीम अपने फैसले पर पुनर्विचार कर कुछ कड़े तेवर के साथ प्रकट हो । &lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#080808&quot; size=&quot;2&quot;&gt;&lt;em&gt;बल्कि होना तो यह चाहिये कि अभी कुछ दिनों तक त्राहि त्राहि मचने दें,        &lt;br /&gt;जिसके लेखन में दम हो वह अपनी पोस्ट अपने कलम और सम्पर्क के बूते औरों को पढ़वा ले । &lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#090909&quot; size=&quot;2&quot;&gt;&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#080808&quot;&gt;एक मज़ेदार तथ्य यह कि, मैं मूरख से ज्ञानी जी की पोस्ट पर ब्लागवाणी के जरिये ही पहुँचा,          &lt;br /&gt;उत्सुकता केवल इतनी थी कि, कल सर्वाधिक पसँद प्राप्त पोस्ट में आख़िर क्या है&lt;/font&gt;&lt;/em&gt; !&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;strong&gt;&lt;font size=&quot;3&quot;&gt;&lt;em&gt;मज़बूरी में, चलिये यही गाते हैं&lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;&lt;/p&gt;  &lt;blockquote&gt;   &lt;p&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000ae&quot;&gt;&lt;em&gt;&lt;strong&gt;तारीफ तेरी करना, तुझे खोने से डरना ,            &lt;br /&gt;हाँ भूल गया अब तुझपे दिन में चार दफा मरना...             &lt;br /&gt;प्यार खुमारी उतारी सारी,             &lt;br /&gt;बातों की बदली भी छट गयी,             &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;&lt;/em&gt;&lt;/span&gt;&amp;#160; &lt;br /&gt;&lt;/p&gt;    &lt;div style=&quot;padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; float: none; padding-top: 0px&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:ff8b4eb1-9b8e-428a-9212-43393e7acbf6&quot; class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%ac%e0%a5%8d%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%a3%e0%a5%80&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;ब्लागवाणी&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Blogvani&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Blogvani&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%9a%e0%a4%9f%e0%a4%95%e0%a4%be+%e0%a4%b2%e0%a4%97%e0%a4%be%e0%a4%af%e0%a5%87%e0%a4%82&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;चटका लगायें&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Hindi+Bloggers&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Hindi Bloggers&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Blog+aggregation&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Blog aggregation&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;&lt;/blockquote&gt;</description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/09/zz.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgkSuJLy6IvIXgG2unIMAy2nrcWTVGg_MeH5qXBgGlO9orxopV6yjy2niRSYVlhZ7FRIKwpkYkRfSp0YhWdX_gjHul7o84QkTzyFGwxlzj_HiLbEDDFDV_kP-Lb-m6WUNyRUXWx2mHpyDf/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>12</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-634435409307519403</guid><pubDate>Wed, 09 Sep 2009 14:17:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-09-10T04:47:40.674+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">कुछ तो है</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">चिट्ठचर्चा सँदर्भ</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">टिप्पणियों पर</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">धूप छाँव</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">संगी साथी</category><title>नो.. नो.. नो.. दर्पण दर्शन क्यों ?</title><description>&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;आज सुबह सोकर उठा..वह तो देर सबेर सभी उठते ही हैं, ख़ास बात क्या है ? लेकिन आज मेरा मन कुछ भारी था, अनमना सा बाहर पड़ी कुर्सी पर बैठा शरीफ़े में आते हुये फूलों की कलियाँ गिन रहा था । वह बगल में खड़ी हो जैसे आर्डर ले रही हों, “ ब्लैक टी या नींबू पानी ? ” कुछ ज़वाब दूँ कि उससे पहले ही वह पत्नी-अवतार में दरस दे दिहिन, “ जो बोलना है, जल्दी बोलो.. अभी बहुत काम है । अभी नहाया भी नहीं हैं, तुम मैक्सी में घूमते देख चिल्लाने लगोगे ! &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;सुघड़ पत्नियाँ पति का ज़वाब सुनने का इंतेज़ार नहीं किया करतीं, सो एक फ़रमान जारी करते हुये पलट गयीं, “ चाय बना देती हूँ !” &lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#ff00ff&quot;&gt;मुझे तुमसे कुछ भी न चाहिये.. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो..&lt;/font&gt;&lt;/em&gt; वाले अँदाज़ में मैं घिघियाया, “ बना दे यार, जो बनाना है, बना दे !” लो जी, यह तो लेने के देने पड़ गये, यहाँ तो उल्टे मेरी ही चाय बनने लगी । उनका&amp;#160; पलटवार, “ कल रात देर तक खटर पटर करते रहे,किसी की अच्छी पोस्ट पढ़ कर डिप्रेशन मे तो नहीं चले गये, या तो फिर किसी से पँगा हुआ होगा ?” मैंने शाँति-प्रस्ताव का सफेद झँडा फहरा दिया, “ काहे का पँगा.. नैतिकता के तक़ाज़े को&amp;#160; पँगा क्यों कहती हो..जबकि तुम तो जानती हो कि.. “ पति की बात पूरी होने के मँसूबों पर पानी फेरने का उनका पत्नीधर्म उबाल खा गया, “ मै सब जानती हूँ, मुझको न बताओ । चैन कहाँ रे..,” पर आख़िर हुआ क्या ? अभी आती हूँ तब ठीक से सुनूँगी, रुको जरा चाय तो ले आऊँ ।”&amp;#160; &lt;strong&gt;पेंचपँगादि कथाप्रेम&lt;/strong&gt;&amp;#160; की स्त्रीसुलभ कोमलता उन पर छा गयी । &lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2wvSTmjWkpxdEFFrs8LCgpYHm_Ubk78Hv6m9COo-Rcu_Ny0FifXnWji1TzsB_5QyvPIivc-Kwz3s7PFrBRViTNCQuCKdpTMWrtbHQjHTT8gFwoQw0Phdt7stO6FAbPwGbpED8YHl8lCrz/s1600-h/layers_B6.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px&quot; title=&quot;annoyed with charcha&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;annoyed with charcha&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsND7tkEFpdUIlz17pmDOgW0APVhz-zvFe34osqXCYa2R-F84dO9pWBLT5iVmZzHILaN4rpbzFOm3O2WlvfC2PG5cnNtETh5wDbSEwfzqe_eEQ88OCqu0ZlUcOmc3VKbaK8mWpOVQAWuCl/?imgmax=800&quot; width=&quot;459&quot; height=&quot;389&quot; /&gt;&lt;/a&gt;चुनाँचे, मुझे &lt;a href=&quot;http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/09/blog-post_08.html#comments&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;strong&gt;टुकड़े टुकड़े कल का वह सब&lt;/strong&gt;&lt;/a&gt; बताना पड़ा, जो मैं नहीं चाहता था । लेकिन सामने बईठ के &lt;strong&gt;&lt;a href=&quot;http://c2amar.blogspot.com/2008/06/blog-post_30.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;मेरी नारको&lt;/a&gt;&lt;/strong&gt; सब उगलवा लिहिन, अउर फौरन रिपोर्ट लगा दिहिन,“ ई &lt;a href=&quot;http://hindini.com/fursatiya/?p=565&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;strong&gt;फ़ुरसतिया&lt;/strong&gt;&lt;/a&gt; तुमको.. बल्कि तुम सब को कौन सी लकड़ी सुँघाये हैं, भाई ? जब देखो तब छुट्टा बछड़े की तरह भिड़ते रहते हो ? “ लेयो, ई सामने ही एक्ठो अउर &lt;strong&gt;बियास जी&lt;/strong&gt; बईठी हैं ? &lt;a href=&quot;http://www.blogger.com/profile/14814812908956777870&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;strong&gt;शाह जी&lt;/strong&gt;&lt;/a&gt; एक फैसला और ठोंकती भयीं कि &lt;a href=&quot;http://darpansah.blogspot.com/2009/09/blog-post_01.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;strong&gt;अब दर्पण जी से कोई बैर मत लेना&lt;/strong&gt;&lt;/a&gt; । मानों सामने वाली लुगाई दर्पण से बैर होने की कल्पना से&amp;#160; ही सिहर गयीं हो ! अब इनको क्या कहें, भाई&amp;#160; यह भी एक तरह का बायस्डियत ही तो ठहरा ?&lt;/p&gt;  &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;   &lt;table border=&quot;2&quot; bordercolor=&quot;#ffffff&quot; bordercolorlight=&quot;#f5f5dc&quot; bordercolordark=&quot;#ffe4b5&quot; cellpadding=&quot;2&quot; width=&quot;100%&quot; bgcolor=&quot;#f0ff00&quot;&gt;&lt;tbody&gt;       &lt;tr&gt;         &lt;td&gt;&lt;marquee onmouseover=&quot;this.stop();&quot; onmouseout=&quot;this.start();&quot; direction=&quot;up&quot; scrollamount=&quot;1&quot;&gt;             &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;&lt;strong&gt;दर्पण साह &amp;quot;दर्शन&amp;quot; ने आपकी पोस्ट &amp;quot;सफर में ख़ो गई मंज़िल,उसे तलाश करो&amp;quot; पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:&lt;/strong&gt; &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;Still i would say....                  &lt;br /&gt;again in English (@अविनाश वाचस्पति ..हमें अंग्रेजी नहीं आती है) &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;Biased blog and biased posting should not be appreciated anyways even if it is for any specific blog(शब्दों का सफ़र ब्लाग की चर्चा वाली पोस्ट पर कोई biased कहता है तो मुझे अच्छा ही लगेगा), infact that&#39;s what the biasedness is... &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;&lt;em&gt;दर्पण साह &amp;quot;दर्शन&amp;quot; द्वारा चिट्ठा चर्चा के लिए September 08, 2009 11:50 PM को पोस्ट किया गया&lt;/em&gt;&lt;/font&gt; &lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#b70000&quot;&gt;&lt;strong&gt;डा. अमर कुमार ने आपकी पोस्ट &amp;quot;सफर में ख़ो गई मंज़िल,उसे तलाश करो&amp;quot; पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:&lt;/strong&gt; &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#b70000&quot;&gt;@ &#39;Darshan&#39; &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#b70000&quot;&gt;I am not a spokeperson of anyone.                  &lt;br /&gt;But, don&#39;t you think that its we only, who can protect the Sanctity of our common platform ?                   &lt;br /&gt;No reservations whatsover, so Let it be like that way only, nothing more or less.                   &lt;br /&gt;It is intrigueing to see someone appearing at the last bench, just to put a comment full of annoyance. &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#b70000&quot;&gt;I honour your affection for being Biased.                  &lt;br /&gt;BIAS has two meanings.. albeit both are cousines                   &lt;br /&gt;1. Prejudiced : as your comment reflects.                   &lt;br /&gt;2. Inclined : as charcha convener&#39;s Choice presents. &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#b70000&quot;&gt;Who are we to challenge his inclination or choice ?                  &lt;br /&gt;Someone uses Cow excreta for treating multiple ailments, alright !                   &lt;br /&gt;Other one likes to get examined, investigated and treated by some other way of his choice &amp;amp; belief, Its pretty okay ! &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#b70000&quot;&gt;Furthermore, why the hell mention of Ajit ji&#39;s Safar has made you sick ?                  &lt;br /&gt;He is a admired Blogger, loved one by his atleast 500 regular readers. Any sanity in the world would agree that such dignity can never be acheived on a biased basis. &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#b70000&quot;&gt;Ofcourse, after your narrow angle obsevation, We realized it and feel delighted over ourselve being biased for Him . &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#b70000&quot;&gt;&lt;em&gt;डा. अमर कुमार द्वारा चिट्ठा चर्चा के लिए September 09, 2009 1:00 AM को पोस्ट किया गया&lt;/em&gt;&lt;/font&gt; &lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;&lt;strong&gt;दर्पण साह &amp;quot;दर्शन&amp;quot; ने आपकी पोस्ट &amp;quot;सफर में ख़ो गई मंज़िल,उसे तलाश करो&amp;quot; पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:&lt;/strong&gt; &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;Aapki baat ka uttar dene se pehle ye batana avayashak samajhta hoon ki, shabdon ka safar mera bhi priya(if not, then one of the favourite) blog hai,aur is post pe tippani karne se pehle maine wahan pe tippini ki thi.                  &lt;br /&gt;aapki baat se poorntya sehmat hoon ki aadmi ke apne vichar ho sakte hain kisi bhi blog, post ya koi bhi vastu hetu.                   &lt;br /&gt;main ye bhi manta hoon ki us specific blog(shabdon ka safar) ke liye wo comment katai uchit nahi tha.Aur na hi maine us specific post ke liye wo comment kiya tha, ye to aap bhi samajh gaye honge. Wo Blog bura tha ye anya blog(jinki charcha ki gayi thi) bure the, ya unki post buri thi ya wo bura likhte hain....                   &lt;br /&gt;ye mainie katai nahi kaha.Aur na hi mera arth tha, biased ka arth prakshit blogs se na liya jaiye, biased ka arth aprakashit bolgs ki backlink se liya jaiye                   &lt;br /&gt;is mamle main mujhe chittha charcha blog biased lagta hai aur ye main tab tak kehte rahoonga jab tak mujhe iske ulat koi praman nahi mil jaata. And again i want to justify my words with ur quotation                   &lt;br /&gt;Who are we to challenge his inclination or choice ?. Sir aap bahut padhe likhe hai aur har ek baat ke do pehlu dekte hain...                   &lt;br /&gt;main kisi vivad ko janm nahi dena chahta, aur main koi vivad nahi chahta, piche 9 mahino se blogging main hoon kabhi kisi baat ko tool bhi nahi diya. Aur na hi kisi ek vyakti ke uppar koi akeshep kiya hainbas main chahta hoon vivaad na ho atmmanthan ho ki kya ye blog biased nahi hai. Agar aap thoda sa sochne ke baat dil se keh dein ki hum (ya ye blog) biased nahi hain Main maan loonga.                   &lt;br /&gt;No Personal Grudeges. &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;It is intrigueing to see someone appearing at the last bench, just to put a comment full of annoyance. &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;Meri baat nahi hai par generally &amp;quot;History tells Great Brains came from last banches&amp;quot;                  &lt;br /&gt;Sir ek baat aur kisi ke vichar acche ye tuchcha nahi hote bus hote hain.                   &lt;br /&gt;Main aapko apni baat nahi manwaaonga, balki ho sakta hai ki main galat houon.                   &lt;br /&gt;chittha charcha ek general blog hai, jismein kum se kum kuch naye aur undiscovered blog ke bhi charche hone chahiye, moreover kuch blog aise hain jinke har post ka (note: har post ka) back link diya jaat hai. kya koi blogger itna consistence ho sakta hai? Tell me logically (no emotions please).                   &lt;br /&gt;Kehna bahut kuch chahta hoon, examples bhi bahut de sakta hoon par mera maksad na koi controversy khada karna hai na hi kisi ko dosharopan, bus chahta hun ki sacchai ko log sweekar karein.                   &lt;br /&gt;yahan blog jagat main(aisa US UK ke english blogs main bhi dekha hai aur india main bhi) ek link, back link, comment, followers ki hod hai....                   &lt;br /&gt;theek hai honi chahiye .But these should be secondary things. And you know what should be the primary concerned. Sir mujhe meri baaton ka koi uttar nahi chahiye , Bus aap itna keh dijiye ki chittha charha as in whole biased nahi hai main maan loonga. &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;Who are we to challenge his inclination or choice ? &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;Sir this blog, as far as i know, is for general reader, not for a group of pelple. (i can&#39;t see any moderatorfor specific group)                  &lt;br /&gt;अँतर के ऊदल का कूदल-करतब शुरु हो,                   &lt;br /&gt;इससे पहले ही अपना आल्हा इसी आलाप पर रोक देता हूँ.. &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;Sir maine to kisi bhi individual ke uppar aur uski ability ke uppar koi shque nahi kiya, to fir meri annoyance se aapka kya matlab hai? maine to ye baat tab bhi kahi jab aaj mera backlink aapki post main hai, aur pehle bhi 3-4 links meri post ke chittha charcha ne diye hain. maine to chota sa comment kiya tha taki aap log aatm manthan kar sakein agar aap kehte hain ki aap biased nahi hain ya biased hona accha hai to main maan leta hoon. &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;No reservations whatsover, so Let it be like that way only, nothing more or less. &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;jaldi main office likh raha hoon isliye baaton ki &#39;continiuty&#39; ke liye kshama karein. &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;खुशदीप सहगल ने कहा… ग़ैरों पे करम, अपनों पे सितम                  &lt;br /&gt;ए जाने वफ़ा, ये ज़ु्ल्म न कर...                   &lt;br /&gt;(अनूपजी, कभी हौसला बढ़ाने के लिए नौसिखियों पर भी नज़रें-इनायत कर दिया कीजिए... &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000e6&quot;&gt;&lt;em&gt;दर्पण साह &amp;quot;दर्शन&amp;quot; द्वारा चिट्ठा चर्चा के लिए September 09, 2009 10:09 AM को पोस्ट किया गया&lt;/em&gt;&lt;/font&gt; &lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#00a800&quot;&gt;&lt;strong&gt;Shiv Kumar Mishra ने आपकी पोस्ट &amp;quot;सफर में ख़ो गई मंज़िल,उसे तलाश करो&amp;quot; पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:                    &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;Blog, chitthacharcha is biased. &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#00a800&quot;&gt;Because I am from the far most corner of the last bench, I carry the greatest brain ever. And this greatest brain on the planet earth wants me to announce that the blog chitthacharcha is biased. Greatness of a brain is not proved till it announces someone somewhere biased. &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#00a800&quot;&gt;So, from now onwards, do remember that if I hold someone as biased, its unquestionable since I not only have the greatest brain, I am also from the far most corner of the last bench. &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#00a800&quot;&gt;Unhappy blogging. &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#00a800&quot;&gt;&lt;em&gt;Shiv Kumar Mishra द्वारा चिट्ठा चर्चा के लिए September 09, 2009 10:54 AM को पोस्ट किया गया&lt;/em&gt;&lt;/font&gt; &lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#8000ff&quot;&gt;&lt;strong&gt;cmpershad ने आपकी पोस्ट &amp;quot;सफर में ख़ो गई मंज़िल,उसे तलाश करो&amp;quot; पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:&lt;/strong&gt; &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#8000ff&quot;&gt;&amp;quot;History tells Great Brains came from last banches&amp;quot; &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#8000ff&quot;&gt;Three Cheers for Saha jI from the back bench. He has now donned the mantle of GREAT BRAIN.... so no more argument please:) &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;              &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#8000ff&quot;&gt;&lt;em&gt;cmpershad द्वारा चिट्ठा चर्चा के लिए September 09, 2009 11:06 AM को पोस्ट किया गया&lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;           &lt;/marquee&gt;&lt;/td&gt;       &lt;/tr&gt;     &lt;/tbody&gt;&lt;/table&gt; &lt;/div&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;मन एकदम्मैं किचकिचा गया, ससुरी अँग्रेज़ी का एक शब्द इतना बवाल मचाये है ?&amp;#160; इसका तो है, अर्थ और ही और ! &lt;strong&gt;लाओ तो जरा मुई की बाल की खाल खींची जाये&lt;font size=&quot;5&quot;&gt;….&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;&lt;font size=&quot;5&quot;&gt; &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;blockquote&gt;   &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#575757&quot;&gt;&lt;em&gt;बायस्ड बोले तो पूर्वाग्रह और अनुग्रह दोनों ही          &lt;br /&gt;पूर्वाग्रह बोले तो भाँति भाँति के बिरादरी वाले हैं           &lt;br /&gt;मसलन : शिवकुमार मिश्र या चलिये मैं ही सही, बड़े लड़ाका हैं ।&amp;#160; हर कथन में लड़ाकात्मकता खोजा जायेगा ।           &lt;br /&gt;इसके उलट यदि परसाई जी की कोई किताब दिख गयी, तो खरीदी ही जायेगी । परसाई जी हैं तो अच्छा ही होगा ! जबकि दोनों में से कोई भी ज़रूरी नहीं कि, सदैव अपेक्षित ही मिले । अब आप अपने पूर्वग्रसित होने का दँश बाद में भले सहलाते रहिये ।           &lt;br /&gt;अब अनुग्रह जी को नहीं छेड़ूँगा, यह तो इतनी जगह पर इतने किसिम के भेष बदले हुये परिलक्षित होते हैं कि, जब तक आप सँभले सँभले और लो जी, अनुग्रह हो गया । आपकी टकटकी को ताड़ कर उन्होंने एक मुस्की मार दी, अनुग्रह होय गवा रब्बा रब्बा.. गुनगुनाते हुये आप बायस्ड हो गये कि हो न हो, पक्का है कि, आपका गेट-अप गुटर गूँ खान को मात दे रहा है । मायने कि उनका अनुग्रह आप तक कैच होते होते पूर्वाग्रह बन गया कि नहीं ?&amp;#160; मामला सफा क्लीन बोल्ड !&lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt; &lt;/blockquote&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;असहमत रहना तो जैसे नारी का ईश्वर प्रदत्त अधिकार है, यदि सहमत हों भी जायें तो, “ भाई तुम जानो “ का डिस्क्लेमर तो पक्का ही लगा मिलेगा । सो, मेरा केस यह कह कर ख़ारिज़ हुआ कि, “ बस तुम हर जगह बीच में कूदने की आदत छोड़ दो ।” जब से समीर भाई ने कचोट में, यह बोल क्या&amp;#160; दिया कि, &lt;a href=&quot;http://coffeewithkush.blogspot.com/2009/04/blog-post.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;strong&gt;“ भाई&amp;#160; थोड़ी&amp;#160; बनावट लाओ&lt;/strong&gt;&lt;/a&gt; ” इनका हौसला बुलँद है । गलत का हौसला तोड़ना मेरा मैन्यूफ़ैक्चरिंग डिफ़ेक्ट है, कानजेनिटल एनामली ! का&amp;#160; करें ?&amp;#160; हिन्दी ब्लागिंग से जब पहला पहला प्यार हुआ था, तब ज्ञानदत्त जी ने नवभारत टाइम्स के एक कवरेज&amp;#160; &lt;a href=&quot;http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2357596.cms&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;em&gt;गाजियाबाद में रिश्वत को मिली सरकारी मान्यता&lt;/em&gt;&lt;/a&gt;&amp;#160; पर अपना आलेख दिया था, &lt;a href=&quot;http://halchal.gyandutt.com/2007/09/blog-post_5732.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;strong&gt;वाह, अजय शंकर पाण्डे !&lt;/strong&gt;&lt;/a&gt; तब न जानता था कि, सँक्षिप्त टिप्पणी देना या एकदम्मैं टिप्पणी देना ब्लागरीय शिष्टता है, सो मैनें ताव में एक लम्बी टिप्पणी दे डाली । यह इसलिये बता रहा हूँ&amp;#160; कि गलतफ़हमी&amp;#160; न&amp;#160; रहे कि, मैं शुरु&amp;#160; से ऎसा न था । यह ऎब तो कफ़न दफ़न तक रहेगा,&amp;#160; जी &lt;/p&gt;  &lt;blockquote&gt;   &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;em&gt;&lt;a href=&quot;http://chhaddyaar.blogspot.com/&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;कुछ तो है.....जो कि !&lt;/a&gt; said...         &lt;br /&gt;माफ़ करियेगा बीच मे कूद रहा हू.         &lt;br /&gt;का करियेगा बीच मे कूदना तो हम लोगन का नेशनल शगल है.         &lt;br /&gt;ई अजय जी की दूरदर्शिता समझिये या बेबसी कि उनको यह तथ्य अकाट्य लगा कि ई सब रोक पायेगे तो इसको घुमा के मान्यता दे दिये. वाहवाही बटोरने की क्या बात है ? लालू जी भी तो इस अन्डरहैन्ड खेल का मर्म समझ के घुमा के पब्लिक के जेब से पइसा निकाल रहे है अउर मैनेजमेन्ट गुरु का तमगा जीत रहे है. पब्लिक के जे्ब से धन तो निकल ही रहा है,&amp;#160; बस खजाना गैरसरकारी से सरकारी हो गया&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;em&gt;.हम लोग भी दे-दिवा के काम निकलवाने के थ्रिल के आदी पहले ही से थे अब रसीद मिल जाता है,इतना ही अन्तर है . गलत करिये ,दे कर छूट जाइये,यही चातुर्य या कहिये कि दुनियादारी कहलाता है.&amp;#160; गाजियाबाद का खेला तो हमारी मानसिकता को परोक्ष मान्यता देता है, और सुविधा कितना है, अब दस सीट पर अलग अलग चढावा का टेन्शन नही, फ़ारम भरिये १५ % के हिसाब से भर कर काउन्टर पर जमा कर दीजिये . रसीद ले लीजिये . खतम बात ! दत्त जी क्षमा करेगे, ब्लागगीरी की दुनिया मे आपकी हलचल खीच ही लाती है ,&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;em&gt;एक आपबीती बयान करना चाहुगा, जब पहले पहले शयनयान चला था, बडी अफ़रातफ़री थी नियम कायदा स्पष्ट नही था ( वैसे अभी भी कहा है,अपनी अपनी व्याख्याये है ) तो शिमला से एक अधिवेशन से एम०बी०बी०एस० लौट रहा था , अम्बाला से इस शयनयान मे शयन करता हुआ सफ़र कर रहा था बीबी बच्चे आरक्षण दर्प से यात्रा सुख ले रहे थे, कभी नीचे कभी ऊपर .लखनऊ तक का टिकट था जाना रायबरेली ! बुकिग की गलती, ठीक है भाई.. लखनऊ मे टिकट बढवा लेगे परेशान मत करो का रोब मारते हुये लखनऊ तक आ गये, लखनऊ मे महकमा का काला कोट लोग चा-पानी मे इतना बिजी था कि एक लताड&amp;#160; सुनना पडा अपनी सीट पर जाइये न क्यो पीछे पीछे नाच रहे है&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;em&gt;.चलो भाई ठीके तो कह रहे है ड्युटी डिब्बवा के भीतर है न, घर तक दौडाइयेगा ? बगल से कोनो बोला .चले आये ,मन नही माना बाहर जा कर चार ठो जनरल टिकट ले आये, प्रूफ़ है लखनऊवे से बैठे है, मेहरारु को अपनी समझदारी का कायल कर दिया. रायबरेली बीस किलोमीटर रह गया तो काले कोट महोदय अवतरित हुये. टिखट.. कहते हुये हाथ बढाये , टिकट देखते ही भडक गये, इ स्लीपर है अउर रिजर्भ क्लास है.. जनरल पर चल रहे है, सर..ये देखिये अम्बाला से बैठे है, लखनऊ से टिकट नही बढा तो ये ले लिया. नाही बढा मतलब, इसमे बढाने का प्रोभिजन नही है जानते नही है का ? जानते तो शायद वह भी नही थे, &lt;/em&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;em&gt;असमन्जस उनके चेहरे से बोल रहा था. अपने को सम्भाल कर बोले लिखे पढे होकर गलत काम करते है, टिकटवा जेब के हवाले करते हुए आगे बढ गये. मेरी बीबी का बन्गाली खून एकदम सर्द हो गया ,मेरी बाह थाम कर फुसफुसाइ- ऎ कैसे उतरेगे ? देखा जायेगा -मै आश्वस्त दिखना चाहते हुये बोला. करिया कोट महोदय टट्टी के पास कुछ लोगो से पता नही क्या फरिया रहे थे . अचानक हमारी तरफ़ टिकट लहरा कर आवाज़ दिये- मिस्टर इधर आइये...मेरे निश्चिन्त दिखने से&amp;#160; असहज हो रहे थे. पास गया ,सिर झुकाये झुकाये बोले लाइये पचास रूपये !&amp;#160; काहे के ? बबूला हो गये- एक तो गलत काम करते है, फिर काहे के ? बुलाऊ आर पी एफ़ ?&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;em&gt;बीबी अब तक शायद कल्पना मे मुझे ज़ेल मे देख रही थी, यथार्थ होता जान लपक कर आयी. हमको ये-वो करने लगी. मै शान्ति से बोला सर चलिये गलत ही सही लेकिन इसका अर्थद्न्ड भी तो होगा, वही बता दीजिये. एक दम फुस्स हो गये आजिजी से हमको और अगल बगल की पब्लिक को देखा, जैसे मेरे सनकी होने की गवाहो को तौल रहे हो. धमकाया- राय बरेली आने वाला है पैसा भरेगे ? स्वर मे कुछ कुछ होश मे आने के आग्रह का ममत्व भी था. नही साहब हम तो पैसा ही देगे, रसीद काटिये रेलवे को पैसा जायेगा. सिर खुजलाते हुये और शायद मेरे अविवेक पर खीजते हुये टिकट वापस जेबायमान करते हुये बोले- ठीक है स्टेशन पर टिकट ले लीजियेगा. उम्मीद रही होगी वहा़ कोइ घाघ सीनियर इनको डील कर लेगा.. आगे क्या हुआ वह यहा पर अप्रासन्गिक है. तो मै देने के लिये अड गया और गाजियाबाद के अजय जी सरकार के लिये लेने पर अड गये ..तो इस पर चर्चा क्यो ?&amp;#160; यह सनक ही सही लेकिन आज इसकी जरूरत है...चलता है...चलने दीजिये की सुरती बहुत ठोकी जा चुकी, कडवाने लगे तो थूकना ही तो चाहिये न सर !&lt;/em&gt;&lt;/p&gt; &lt;/blockquote&gt;  &lt;p&gt;तो नो.. नो.. नो.. कर ही लिया न, तुमने ?   &lt;br /&gt;उनका गर्व भाव एकदम से टूट जाता है, जब मैं बेशर्मी से हँस कर कहता हूँ ,    &lt;br /&gt;&amp;quot; वह तो आज सारी दुनिया कर रही होगी, आज 9 सितम्बर 09 है ना, मेरी ज़ान ! &amp;quot;    &lt;br /&gt;मेरा बेशर्मी से हँसना जारी है, ब्लागर जो हूँ ? भले अपने को हिन्दी का सेवक कहता फिरूँ, इससे क्या&amp;#160; !&lt;/p&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/09/blog-post.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsND7tkEFpdUIlz17pmDOgW0APVhz-zvFe34osqXCYa2R-F84dO9pWBLT5iVmZzHILaN4rpbzFOm3O2WlvfC2PG5cnNtETh5wDbSEwfzqe_eEQ88OCqu0ZlUcOmc3VKbaK8mWpOVQAWuCl/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>13</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-4094979003501562311</guid><pubDate>Sat, 15 Aug 2009 22:49:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-08-16T04:26:03.193+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">आब्ज़ेक्शन</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">टिप्पणियों पर</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बात बेबाक</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बेतक़ल्लुफ़</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">संगी साथी</category><title>ज़ाकिर भाई.. ओ ज़ाकिर भाई !</title><description>&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;http://ts.samwaad.com/2009/08/supernatural-power-of-mantras.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;ज़ाकिर भाई, &lt;strong&gt;आपकी पोस्ट&lt;/strong&gt;&lt;/a&gt; देर से देख पाया । सटीक प्रश्न उठाया है, आपने । और मैं आपकी बेबाक दृष्टि का कायल भी हूँ ।&amp;#160; पहले तो मैं स्पष्ट कर दूँ कि, मैं आस्थावान सनातनी हिन्दू हूँ । बहुत सारे वितँडता और प्रत्यक्ष , अप्रत्यक्ष अनुभवों के बाद मैंने पूजा करना छोड़ दिया है । इस पर एक पोस्ट लिखने की इच्छा भी है, पर समय और विषयवस्तु में सँतुलन नहीं बन पा रहा है । &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyesKANEGZ8f_cTov9xegmcygu0gimzKe-_7iNQj0nEd5VKBpA7qsFYr4iF2lUPmZlIiGtU4fwxU7TD6Cw9GYYzkW9ehjt-YHLe595RguKSxCwfFBKZeiRph2Vfwjp203UtT1H9spyu4Qh/s1600-h/1%5B2%5D.gif&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; border-top: 0px; border-right: 0px&quot; title=&quot;1&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;1&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9ZdrjhpDlKO-NkMClPe7E7FKfSutWgEHNNFvgbXAprBcaYCSNn49Rdc6ql__kDAps8ZmCSoG3Ng4EQvrJcpAgEOODaDRNvxHQhoGApfZ-6nBZC2y1ILnCiGcX3yn30eMVD1fwuwShwv_O/?imgmax=800&quot; width=&quot;20&quot; height=&quot;20&quot; /&gt;&lt;/a&gt; आपकी पोस्ट में गायत्री मँत्र का जो अर्थ दिया है, वह वास्तव में इसका अनर्थ है ।    &lt;br /&gt;प्रचोदयात वैदिक सँस्कृत की धातु है, जिसका तात्पर्य &amp;quot; हमें अग्रसर करें.. हमें उत्प्रेरित करें &amp;quot; से समझा जा सकता है ।    &lt;br /&gt;बहुत सारे पौराणिक मँत्रों में &amp;quot; भविष्यति न सँशयः &amp;quot; लगा रहता है । यह भी एक प्रकार की साँत्वना या स्व-आश्वस्ति है&amp;#160; &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&amp;#160;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxI_P9I5ryLighPMImjmCMsj-WDodOkJ-1JZs5MSxQF__aGd9wIDCqW3gCmzc7atIcSIkyzObBKFvjuUaAQogx5RQJ2AQ1A6kouVTwBJNuGe1zAip8PizTs9Zyp6VNM501lsWY7M9uhhlU/s1600-h/2%5B3%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; border-top: 0px; border-right: 0px&quot; title=&quot;2&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;2&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_1T4Pu_ochwLT_jWenedshX1OnYm6XQPBv0YsZCvRFmwUHwMqdBJhCUE5HBBSJxqTgiR_AMSGzcfQZ7Uva98OJNP_jMfnFLG9x6WwFmQqx5EAz0jjxIYR9Kev6Ed6PTn91v0Eczq53dyI/?imgmax=800&quot; width=&quot;20&quot; height=&quot;20&quot; /&gt;&lt;/a&gt; किसी भी पूजा या इबादत की पहली शर्त है, अपने को समर्पित कर दो.. जो भी उपास्य है उसमें लीन हो जाओ ।    &lt;br /&gt;यह आपको सेमी-हिप्नोसिस या सम्मोहन की स्थिति में ले जाती है तत्पश्चात निरँतर एक ही मँत्र का जाप अपने आपमें आटो सज़ेशन है । ऎसा होगा .. ऎसा होगा.. ऎसा ही हो ऎसा ही हो.. आख़िर क्या है ? इन मँत्रों का एक निश्चित सँख्या में दोहराये जाना आपके एकाग्रता और लगन और धैय की परीक्षा है । ऎसी प्रक्रियाओं को एक निश्चित समय पर ही किये जाने का तात्पर्य दिनचर्या को अनुशासित करने से अधिक कुछ और नहीं !    &lt;br /&gt;इन प्रक्रियाओं को नियम सँयम और निषेध से बाँधना भी यही दर्शाता है । &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYhtZwZrJmef-xFd_9OuiKOgsxepr5-Y6jl6AAH_fbtrtn45bkRX3ACzKk25UUq6ZmQaaCOt9FNaA52-OXvTFXBlK-_iAgeuN9AobOFwHYcJjGDCbbgojNoPrTyZAl7l6UIUUKBRayCcvD/s1600-h/3%5B2%5D.gif&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; border-top: 0px; border-right: 0px&quot; title=&quot;3&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;3&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1OzNM1LSzv235VtxYots40dROLAl3a_mKbSdbYs64JaFYurKy8CTvwc09xBYxaj5rzkN2QZpbbTbo6qxNApHIz2bpfS29YXb7LCCRSp0Da2FgYNvEYaUjsY941Hn0T3di27HMFvCs93wc/?imgmax=800&quot; width=&quot;20&quot; height=&quot;20&quot; /&gt;&lt;/a&gt; प्रारँभिक वैदिक मँत्र पूर्णतया प्राकृतिक तत्वों में निहित अतुल शक्तियों को समर्पित हैं । ऋग्वेद इसका उदाहरण है । मानवीय विस्मय से उपजा &lt;font color=&quot;#e67300&quot; size=&quot;5&quot;&gt;&lt;strong&gt;ॐ &lt;/strong&gt;&lt;/font&gt;आज भी अपने अर्थ में उतना ही सार्थक है, जितना&amp;#160; पहली&amp;#160; बार&amp;#160; उच्चरित&amp;#160; होने&amp;#160; पर&amp;#160; रहा होगा । इस्लाम में भी&lt;font color=&quot;#008000&quot; size=&quot;5&quot;&gt;&lt;strong&gt;&lt;em&gt; اَلم&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt;&lt;/font&gt;&amp;#160; अलिफ़ लाम मीम को कोई समझा नहीं पाता । &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZYP-b3CtF033cYJyFrfodDFs_4rEM2YWWJ0Bv_WAbv4S52v9VXHRhZJoRi3jYV7UYa5wTP_5tPr76pqdkrSTbt52-Gbhq_r9ioNTZBgMlievUKfiuSCCKI1jEnvx_6CEqKtLKnVF3Ixtg/s1600-h/4%5B2%5D.gif&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; border-top: 0px; border-right: 0px&quot; title=&quot;4&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;4&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBBlntl0FBld-xGXp3AVHikbCwxm82qPLGhwTLo_sVwe8RR4u_MVBUXcdTvwPqI2m0QYAozsOydckkkYAklE6tVGcCEOdVapK3sTkEZIBeYBnMr2VZZy28_-SdCdhm83vE2ncclpnpPqf8/?imgmax=800&quot; width=&quot;20&quot; height=&quot;20&quot; /&gt;&lt;/a&gt; मनुष्य जब भी हारा है, प्रकृति से ही हारा है । चाहे वह रोग आपदा महामारी बाढ़ सूखा भूकम्प चक्रवात ही क्यों न हो ? प्रकृति अपने नियमों की अवहेलना सहन नहीं करती । आदिम सभ्यता ने&amp;#160; प्रकृति के ऎसे प्रकोप को शैतानी शक्तियों में मूर्त कर लिया । यही कारण है कि, हर धर्म में एक नकारात्मक तत्व शैतान राक्षस और भी न जाने क्या क्या हैं । हर्ष विषाद विस्मय जैसी मूल मानवीय भावनाओं में आत्म रक्षात्मक डर सदैव भारी पड़ा है । एक नवजात शिशु को थप्पड़ दिखाइये, यह प्रत्यक्ष हो जायेगा । &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmXQSOkBRP5zxvZ2fCYYrOc3rP7ACOtf_jVfhRvntOM-dqyjeqDvhfP7VwRYw17IDgZSksQv1vjdvB7j0Nyst9YD61Qs8hZ9kXZx7b0FNcfL5HPyzvfRtl3a-DoKm656ykbVyaE_RSjSlw/s1600-h/5%5B2%5D.gif&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; border-top: 0px; border-right: 0px&quot; title=&quot;5&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;5&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-FJ41HwfpJqFqjBkUr2CrXXz0Q5KKbwwEFpRA_Zxo1Y5_eOHQCnT1n4IIFCNwf20mgPEf2awBMP3uoxGAMcxs3-lFZW9vThv9Y_GPKDHXvoVSbTeUCDVsPkHkq_xSTAiXkTwo3_Im6NRR/?imgmax=800&quot; width=&quot;20&quot; height=&quot;20&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&amp;#160; मँत्रों की शक्ति पर&amp;#160; किसी को निर्भर बना देना, डर की भावना का दोहन है, साथ ही मनुष्य की महत्वाकाँक्षाओं का पोषण भी ! इनको पालन करनें में एक आम आदमी अपने असमर्थ पाता है, तो ज़ाहिर है बिचौलिये पनपेंगे और डरा डरा कर पैसा वसूलेंगे । यही हो भी रहा है । तक़लीफ़ यह है कि, ऎसे तत्व सत्ता के ड्योढ़ी के चौकीदार बहुत पहले ही बन गये थे । चाहे वह सम्राट अशोक के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े हों, या अडवानी के रथ में जलने वाला डीज़ल !&amp;#160; ख़ून तो आम आदमी का ही जाया होता आया है । &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj724VILf6S5b78sDZK1TMeJ-SeZGnrf4_iH7VR97xS_6jRL6D91h32KW0zrFK1my2tFhNHNk0tNybr5qQSecnwCcG-PtKl53uw6CW5Jdo493Snx-q8XE0Vbm07wa41FSl6JzM1aw-i8kzg/s1600-h/6%5B2%5D.gif&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; border-top: 0px; border-right: 0px&quot; title=&quot;6&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;6&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiIZ2CHF-5keAx0FQxw5Nn4Q9SaGAcL9QIdvQq-vWLSiCvxPPMPEGvzorZ4iJfnNolPqwJBplDqGNyaPLSy4W0L9NOBhKOQwgPRlKU8GzcL-9OISS4oi5PYHaAOIZd78O6w3Kh_kAx_A3a-/?imgmax=800&quot; width=&quot;20&quot; height=&quot;20&quot; /&gt;&lt;/a&gt; एक बात जो रही जा रही थी, वह यह कि वैदिक मँत्रों के उच्चारण में आरोह अवरोह और शब्दों का बिलँबित लोप का उपयोग, ध्वनिविज्ञान के नियमों द्वारा आपकी मनोस्थिति को प्रभावित करती है, सकारात्मक प्रेरणा देती है, यह सर्वमान्य सत्य है । इसमें कोई सँशय नहीं ! &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9pt06siZvZf3dO-2o6G44hbOQ1HsiHJB3BQdZhTBpLx1UHeFqoc7XBX3ehWZT7F55udSNzYHqyZ7A86MxbsH-3qjzIHX2Ia_wswH0T9V_70A7uCa2ZM9ZTCfWPSVd3HAUHVWpJoPcSDlj/s1600-h/7%5B2%5D.gif&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; border-top: 0px; border-right: 0px&quot; title=&quot;7&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;7&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEje0pTnuAfGgYy6Eq9NsZPCDjsLeyQ5iU6r6smpWGaxvYrmjRjlyKUx7jD9o_f-7awHlRn7m9awalVlDEAo_U3FUL7BExKt6OUjGDgdwaPW-dIXiz3NcE2AEDWposWoZAllsjMD6s2dlfc2/?imgmax=800&quot; width=&quot;20&quot; height=&quot;20&quot; /&gt;&lt;/a&gt; अँतिम बिन्दु पर मैं यह कहूँगा कि, जिस तरह &lt;strong&gt;मुल्लाओं का इस्लाम&lt;/strong&gt; अल्लाह के इस्लाम पर भारी पड़ने लगा । उसी तरह कर्मकाँडी सँस्कारों ने&lt;strong&gt; निःष्कलुष सनातनी हिन्दू मान्यताओं&lt;/strong&gt; को दूषित कर दिया है । हम प्रतीकों के प्रति उन्मादी हो गये हैं, और मूल्यों के प्रति उदासीन ! &lt;strong&gt;आस्था में तर्क का स्थान नहीं है,&lt;/strong&gt; यह डिस्क्लेमर भी तभी लागू हो पाया । शुक्र है, कि &lt;strong&gt;मनुष्य के विवेक को उन्होंने नहीं लपेटा&lt;/strong&gt;, वह तो हम इस्तेमाल कर ही सकते हैं । आइये इन बहसों को छोड़ कर हम वही करें, जो सहअस्तित्व का विवेक कहता है&amp;#160; । इसका मज़हब याकि किसी ख़ास धर्म से क्या लेना देना ? &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#7d7d7d&quot;&gt;चूँकि&lt;/font&gt; &lt;a href=&quot;https://www.blogger.com/comment.g?blogID=3850451451784414859&amp;amp;postID=7074170208003906882&amp;amp;isPopup=true&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;आपका टिप्पणी बक्सा&lt;/a&gt; &lt;a href=&quot;http://www.geovisite.com/en/#GEOTOOLBAR&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;ज़ियोटूलबार कि वज़ह से&lt;/a&gt; &lt;font color=&quot;#7d7d7d&quot;&gt;दगा दे रहा है, यह स्वतःस्फ़ूर्त असँदर्भित त्वरित टिप्पणी यहीं दे दे रहा हूँ । यदि चाहेंगे तो सँदर्भ भी प्रस्तुत किये जा सकते हैं । अन्यथा न लें ,&lt;/font&gt;&lt;font color=&quot;#787878&quot;&gt; &lt;strong&gt;अल्लाह हाफ़िज़ !&lt;/strong&gt;&lt;/font&gt;&lt;font color=&quot;#626262&quot;&gt;&amp;#160;&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;  &lt;div style=&quot;padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; float: none; padding-top: 0px&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:d1a2efb0-1632-4812-b525-86f02f367461&quot; class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Religions+of+India&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Religions of India&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Supernaturals&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Supernaturals&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Mantras&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Mantras&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Vedic+Era&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Vedic Era&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Doctrine+of+Hinduism&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Doctrine of Hinduism&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Hindi&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Hindi&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/08/blog-post.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9ZdrjhpDlKO-NkMClPe7E7FKfSutWgEHNNFvgbXAprBcaYCSNn49Rdc6ql__kDAps8ZmCSoG3Ng4EQvrJcpAgEOODaDRNvxHQhoGApfZ-6nBZC2y1ILnCiGcX3yn30eMVD1fwuwShwv_O/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>16</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-4493105922495911992</guid><pubDate>Tue, 21 Jul 2009 21:44:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-07-22T23:20:38.098+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">कभी कभी मेरे दिल में...</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">निंदक नियरे राखिये</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बात बेबाक</category><title>पता नहीं क्यों ?</title><description>&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;लगता है, आजकल मैं निष्क्रीय हूँ... पूरी तौर पर तो नहीं,  कम ब कम ब्लागर पर निष्क्रीय तो हूँ ही.. &lt;em&gt;पता नहीं क्यों ?&lt;/em&gt; इस पता नहीं क्यों का ज़वाब तलब करियेगा, तो टके भाव वह भी यही होगा कि, &lt;em&gt;&quot; पता नहीं क्यों ? &quot;&lt;/em&gt; यह पता नहीं क्यों हमेशा एक नामालूम सी कशिश भी लिये रहता है, लगता है कि कहीं कोई जड़ता मुझे जकड़ रही है, जकड़ती जा रही है.. पर आप हैं कि, अपने पर हज़ार लानतें भेजते हुये भी, खामोशी से इस निष्क्रियता को समर्पित रहते हैं, &lt;em&gt;पता नहीं क्यों ?&lt;/em&gt; मुआ पता नहीं क्यों न हुआ कि &lt;a href=&quot;http://anuragarya.blogspot.com/2009/07/blog-post.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;इब्तिदा ए इश्क&lt;/a&gt;  हो गया । है न अनुराग ? &lt;/p&gt;&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfEddaalHtViS33etwJT8M8mbv9_VRxSsGOBxL8iPA0IfHaZRGkP62b-YKd7VRrAnNVrV0_WlQm39yzTNIBLlFtQYbpTYvKeEFLeEHJ5BC1a2oT-gSM8dlLYOVcQdpsYIvzj9Y8o0x57wn/s1600-h/Letter-%5B4%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;BORDER-RIGHT-WIDTH: 0px; DISPLAY: inline; BORDER-TOP-WIDTH: 0px; BORDER-BOTTOM-WIDTH: 0px; BORDER-LEFT-WIDTH: 0px&quot; title=&quot;Letter-&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;Letter-&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgS4Z_Pzxee7V_cvMGIuvJi0QpPit9azQcFKOHPUuu3sLv2pxmnVTkBwaTMMzC2nmVIVFrQ_RwxkH7vdfgWq1tPfLcaMyFaKg5dGlELn26b34tPLLFzPAftnOwSlWQuI5p7p61ROAnKs6kl/?imgmax=800&quot; width=&quot;320&quot; height=&quot;292&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&lt;br /&gt;अबे पहले तय कर ले, &lt;a href=&quot;http://mypoeticresponse.blogspot.com/2009/07/blog-post_21.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;ब्लाग लिखने आया है कि साहित्य रचने ?&lt;/a&gt; &quot; यह कोई और नहीं, अपने निट्ठल्ले सनम जी हैं, अँतर से ललकार रहे हैं । कनपुरिया प्रवास के बाद  साढ़े तीन दशक से  साथ लगे हैं । जब तब मुझे ललकार कर चुप बैठ जाते हैं, गोया पँगे करवाना और उसमें मौज़ लेना ही इनका शगल हो । इनको डपट देता हूँ, ऒऎ खोत्या वेखदा नीं कि असीं लिख रैयाँ, बस्स । &lt;/p&gt;&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;माफ़ करना मित्रों, यह इसी टाइप की भाषा समझते हैं, आप तो जानते ही हैं कि, फ़ैशन की तरह ही ब्लागिंग और ब्लागर की तरह फ़ैशन कितनी तेजी से बढ़ रहे हैं ?  नित नये प्रयोग !&lt;/p&gt;&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;  &lt;em&gt; &lt;span style=&quot;font-size:100%;&quot;&gt;सो ब्लागिंग के इस दौर में साहित्य की गारँटी ना बाबा ना !&lt;/span&gt;&lt;/em&gt; मौज़ूदा दौर तो जैसे गुज़रे ज़माने का बेल बाटम है.. कल यह रहे ना रहे.. पर हम तो रहेंगे, और.. जब रहेंगे तो कुछ ओढ़ेंगे बिछायेंगे भी ! आने वाला कल  साहित्य का कोई धोबी जिसकी भी तकिया चादर गिन ले, उसकी मर्ज़ी ! जैसे यहाँ लाबीइँग में वक्त जाया कर रहे हैं, समय आने पर वहाँ सार्थक कर लेंगे । &lt;/p&gt;&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;अभी से लाइन में लगने की भगदड़ काहे ? चोट-फाट लग जाये तो इससे भी जाते रहोगे । लाइन में लगने की क्या जल्दी थी.. जवाब मिलेगा, &quot; पता नहीं क्यों ? इधर कोई ग्राहक नहीं आ रहा था, तो सोचा खाली बैठने से अच्छा कि अपना ही बँटखरा तौलवा लें, कहीं बाँट में ही तो बट्टा नहीं ?.. ससुर उहाँ भी लाइन लगी थी, घुसे नहीं पाये इत्ती भीड़ रही, पता नहीं क्यों ? “&lt;/p&gt;&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;em&gt;निट्ठल्ला उवाच :&lt;/em&gt; कोई यह न कह दे, &quot; पता नहीं क्यों, ई उलूकावतार इत्ती रतिया में का अलाय बलाय बकवाद टिपटिपाय गये ? याकि  ससुर  छायावाद  की  मवाद  ठेल  गये .. सीधे सुर्रा मूड़े के उप्पर से निकर गवा ! &quot; &lt;/p&gt;&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;तो भईया ई डिस्क्लेमर-वाद है, अर्थ और ही और ! चित्त गिरो या पट्ट.. बाई आर्डर दुईनों एलाउड ! &lt;/p&gt;&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;em&gt;निट्ठल्ला उवाच :&lt;/em&gt; इसका भेद हम बताता हूँ, यह &lt;a href=&quot;http://www.readers-cafe.net/controlpanel/&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;कँट्रोल पैनल&lt;/a&gt; के पुराने पोस्ट खँगाल रहा था.. इतने दिमागदार नहीं हैं, सो एक घँटे बाद से ही इनका सिर भारी होने लगा और एक घँटा पच्चीस मिनट बाद समझदानी के आउटर पर इँज़नवाँ फ़ेल ! &quot; फिर भेजा इनको कि जायके &lt;a href=&quot;http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/07/blog-post_7893.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;आज की चिट्ठाचर्चा&lt;/a&gt; पढ़ा, सो गये बिचरऊ । बढ़िया है.. विवेक बाबू, बढ़िया है.. बोलि के लौट आये । टिप्पणी न दी, ज़रूरी भी न रहा होगा । कल बछड़ों के दाँत गिनना है, यही सब बतियाते भये खाना खाइन । &quot; &lt;/p&gt;&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;आम खाओगे ? &quot; पँडिताइन जी पूछिन.. &quot; नहीं ! &quot; मुला मुँह से बोले नहीं, मूड़ हिलाय दिहिन, बड़बड़ लगाय रहे आम खाऊँगा तो गुठलियाँ भी देखनी पड़ेंगी । पेड़ कौन गिनेगा, पर गुठली ?&lt;/p&gt;&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;em&gt;मेरा प्रतिवाद :&lt;/em&gt; &quot; चुप्पबे, खुद मेरा ही मन न था... आम जो है..  वह एक मीठा फल होता है ! &quot;&lt;/p&gt;&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;strong&gt;&lt;em&gt;अब ?&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt; कुछ ही पन्ने बच रहे थे.. सो, नँदीग्राम डायरी लेकर बैठा और दो सफ़े बाद ही कुछ लाइनें ऎसी मिली  कि, अपने आपसे घृणा के प्रयोग करने लग पड़ा । आपको भी बताऊँ ? &lt;/p&gt;&lt;blockquote&gt;&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;em&gt;लेकिन पहले श्री पुष्पराज जी से क्षमा माँग लूँ । क्योंकि मैं उनकी लिखी कुछ ही लाइनें शब्दालोप के साथ उद्धरित कर रहा हूँ ..&lt;/em&gt; &lt;em&gt;&lt;span style=&quot;color:#0000ce;&quot;&gt;&quot; हमें नई बात समझ में आयी कि, जो (............) कहलाने के प्रचार से घृणा नहीं करते थे, वे ही (........ ) होने के प्रचार से आपसे घृणा कर रहे हैं । घृणा की यह चेतना जब ख़त्म हो जायेगी कौन किसके क्या होने से दुःखी होगा ? हम उनके कृत्तज्ञ हैं, जो हमारी चूकों पर नज़र रखते हैं और तत्काल घृणा करना भी जानते हैं । आपकी घृणा ने ही हमें शनैः शनैः इंसानियत की तमीज़ सिखायी है ! &quot; &lt;/span&gt;&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;&lt;/blockquote&gt;&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;em&gt;निट्ठल्ला&lt;/em&gt; : आप ई सब काहे लिख रहे हैं, जी ? &lt;/p&gt;&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;भईय्या, भाई जी, मेरे दद्दू..  अपनी सुविधानुसार, आप ही  रिक्त स्थानों में ब्लागर और साहित्यकार भर कर देखो न । जो निष्कर्ष निकासो, तनि हमहूँ का बताओ । इतने दिमागदार नहीं हैं, सो इत्ती टिपटिपाई में ही मूड़ भारी हुई रहा है । तो अपुन चलें ? घृणा के साथ मेरे प्रयोग अभी कुछ बाकी रह गये है, फ़िलवक्त तो आप हमें निष्क्रीय ही समझो ।&lt;br /&gt;&lt;em&gt;&lt;span style=&quot;color:#0000ce;&quot;&gt;&quot; पावस देखि ’रहीम’ मन कोयल साधे मौन ।&lt;br /&gt;  जित दादुर वक्ता भये इनको पूछत कौन ॥ &quot;&lt;/span&gt;&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;</description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/07/blog-post_22.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgS4Z_Pzxee7V_cvMGIuvJi0QpPit9azQcFKOHPUuu3sLv2pxmnVTkBwaTMMzC2nmVIVFrQ_RwxkH7vdfgWq1tPfLcaMyFaKg5dGlELn26b34tPLLFzPAftnOwSlWQuI5p7p61ROAnKs6kl/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>17</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-4609574163390577076</guid><pubDate>Wed, 08 Jul 2009 16:41:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-07-09T10:54:04.120+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">टिप्पणियों पर</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">निंदक नियरे राखिये</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बेतक़ल्लुफ़</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">संगी साथी</category><title>जिन्दगी की रेल कोई पास कोई फेल</title><description>&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;आज अभी चँद मिनटों पहले एक पोस्ट पढ़ी.. &lt;a href=&quot;http://rajsinhasan.blogspot.com/2009/06/blog-post.html&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#0000ca&quot;&gt;निठल्ले , सठेल्ले और ............ठल्ले :)&lt;/font&gt;&lt;/a&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;उब दिनों एक गाना सुना करता था, उसे अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ भी लिया &lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#aeaeae&quot;&gt;( अभी&amp;#160; &lt;a href=&quot;http://hindini.com/eswami/?p=173&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;ईस्वामी&lt;/a&gt;&amp;#160; की टिप्पणी के बाद यह अँश जोड़ा है.. &lt;a href=&quot;http://eswami.blogspot.com/2005/03/blog-post_27.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;धन्यवाद स्वामी&lt;/a&gt; ! )&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;तो एक गाना सुना करता था.. &amp;quot; जिन्दगी की रेल कोई पास फेल.. अनाड़ी है कोई खिलाड़ी है कोई &amp;quot; बस इसी को पकड़ लिया, &amp;quot; रेल जब हुईहै, तौनि डब्बवा भी हुईबे करि... डब्बवा मा जब हुईहैं जगह तो सवारिन केरि लदबे करी… , सवारिन केरि लदबे करीऽऽ भईया सवारिन केरि लदबे करीऽऽ &amp;quot;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;बस इसी को पकड़ लिया, इसके दर्शन को आत्मसात कर लिया.. लगे हुये डिब्बों को परखा, फ़र्स्ट किलास.. सेकेन्ड किलास, जनता, पैसेन्ज़र,&amp;#160; बाटिकट सवारी, बेटिकट सवारी, इस भीड़ में धँसे ज़ेबकतरे, डिब्बे के हाकिम भ्रष्ट टी. टी. वगैरह वगैरह !&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;बस हर डिब्बे के माहौल को बारी बारी से अपने जीवन का हिस्सा देता हूँ, अउर कौन ससुर ईहाँ से कछु ले जाय का है, यहीं जियो और यहीं छोड़ जाओ ।    &lt;br /&gt;आज तक कोई सवारी अपनी यात्रा खत्म होने के बाद… .. डिब्बवा खींच के अपने साथ न ले जा सका है । जउन लेय गवा होय तो बताओ !&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;तो पार्टनर अपनी चाट में अकड़ लचक बकैत विनम्र भदेस अभिजात्य सबै मसाला की गुँज़ाइश रहती है ! फ़ारसी पढ़वावा चाहोगे तो पढ़ देंगे.. और तेल बिकवाना चाहोगे तो वहू बेच देंगे ।&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNzoC3JBNwLgteTiT0LbVbC3vw1eweIfd-bQmuM2clOnMPFcuh2Wj26I8PZD2DppYznTemUe9rSYQp0hFmtqGu9Cv4qt9M0f3DPcaXyTPB_btaTce_jTPy_L5LUFDmsFkhJgUI2ZWjGjMp/s1600-h/anibl3.gif&quot;&gt;&lt;img style=&quot;display: inline; margin-left: 0px; margin-right: 0px&quot; title=&quot;anibl&quot; alt=&quot;anibl&quot; align=&quot;right&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVMxj8eSO13Y7eSYBKTqJLbZ4UXcv1f47PVgKzQs3U0hVeMr9an-fFT6x4E0zjVcwTSu91jvSh4fz15QTxtFPTLIt0ZexRB-LnSmaK3PfhJPAcwfaS9-ygpwffie_hudqKKhp9qHPUF3uU/?imgmax=800&quot; width=&quot;149&quot; height=&quot;240&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;लेकिन ये न होगा कि अमर कुमार जब डाक्टर साहब बन कर जियें तो ब्लागर प्रेमी अमर कुमार&amp;#160; उनका सतावै और जब डाक्टर जी को जीना न चाहें, तो डाक्टर साहब ज़बरई अमर कुमार में प्रविष्ट हो जायें ! इसी तरह अमर कुमार अपने को जीवित रख पायेंगे ! कुछ लोगों को देखता हूँ, वह अपने पद या अफ़सरी को इस तरह आत्मसात कर लेते हैं, कि&amp;#160; यही&amp;#160; अफ़सरी&amp;#160; उनके&amp;#160; अपने ही स्व&amp;#160; को&amp;#160; उभरने&amp;#160; ही नहीं देती , फिर&amp;#160; वह&amp;#160; दूसरों को&amp;#160; मस्त&amp;#160; देख&amp;#160; बिलबिलाते&amp;#160; हैं । &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;जीवन में वेदाँत और वेद प्रकाश कम्बोज दोनों आवश्यक है, कुछ भी त्याज्य नहीं है ! ज़रूरत उसके एक निश्चित मिकदार को समाहित करने भर की हुआ करती है । अउर आपन पोस्ट हम निट्ठल्लन को डेडिकेट न किया करो, ग़र दिमाग ख़राब हो जाय तो फिर न कहना कि... बईला गवा है, बईलान है !&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;लेकिन आपौ जउन है कि तौन एकु राबचिक फँडे का अँडा लाके इहाँ&amp;#160; झक्कास राखि दिहौ …वा वा वाऽ वाह ! बड़ा सक्रिय चिंतन बड़े निष्क्रीय निर्विकार भाव से प्रस्तुत किया भाई !    &lt;br /&gt;&lt;a href=&quot;https://www.blogger.com/comment.g?blogID=5799893798490696697&amp;amp;postID=1236368481551140153&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#4242ff&quot;&gt;&lt;u&gt;मुला हँइच के दिहौ ब्लागरन का !&lt;/u&gt;&lt;/font&gt;&lt;/a&gt;     &lt;br /&gt;मेरी यह पोस्ट एक तरह से आपकी पोस्ट पर टिप्पणी है !&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;अगर अबहूँ समझ मा नाहिं आवा तो, ई सुनि लेयो.. &lt;embed src=&quot;http://amarindia1.fileave.com/Hum Hain Rahi Pyar Ke.mp3 &quot; width=&quot;140&quot; height=&quot;40&quot; autostart=&quot;false&quot; loop=&quot;FALSE&quot;&gt;  &lt;/embed&gt;&lt;/p&gt;  &lt;div style=&quot;padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; float: none; padding-top: 0px&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:0c837448-314e-4dc7-9315-f1fb2bceaef4&quot; class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Hindi+Blog&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Hindi Blog&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Dr.Amar+kumar&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Dr.Amar kumar&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Blogging+Ethics&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Blogging Ethics&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Individualism&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Individualism&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Blogger&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Blogger&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&amp;#160;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&amp;#160;&lt;font color=&quot;#0000df&quot;&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/07/blog-post_08.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVMxj8eSO13Y7eSYBKTqJLbZ4UXcv1f47PVgKzQs3U0hVeMr9an-fFT6x4E0zjVcwTSu91jvSh4fz15QTxtFPTLIt0ZexRB-LnSmaK3PfhJPAcwfaS9-ygpwffie_hudqKKhp9qHPUF3uU/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>20</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-8003385217370340714</guid><pubDate>Sat, 04 Jul 2009 20:42:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-07-05T02:19:40.836+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">कुछ ख़ास मौकों पर</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">धूप छाँव</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">संगी साथी</category><title>हाँ, बात डाक्टर्स डे की हो रही है</title><description>&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt; यह है जुलाई का महीना, और&amp;#160; इस महीने की पहली तारीख़ हम डाक्टरों के लिये एक ख़ास मायने&amp;#160; रखती है । इन&amp;#160; पँक्तियों के लेखक को&amp;#160; विश्वास है कि, आप में से&amp;#160; अधिकाँश&amp;#160; कुछ कुछ&amp;#160; ठीक पकड़ रहे हैं । यदि ऎसा है तो, आप इन्टेलिज़ेन्ट कहे जा सकते हैं ।&lt;em&gt; हाँ, बात डाक्टर्स डे की हो रही है ।&lt;/em&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;यदि इस सेवा को जनता मानवतासेवा के रूप में देखना प्रारँभ करती है, तो&amp;#160; इस&amp;#160; दिवस&amp;#160; पर&amp;#160; डाक्टरों द्वारा निःशुल्क जनसेवा का विचार सराहनीय ही नहीं बल्कि अपेक्षित है । मेरे गृहनगर रायबरेली&amp;#160; में यह&amp;#160; प्रतीक्षित&amp;#160; दिवस&amp;#160; त्रयदिवसीय&amp;#160; स्वास्थ्य&amp;#160; मेले&amp;#160; के&amp;#160; उपराँत&amp;#160; आज&amp;#160; की&amp;#160; सुविधाजनक&amp;#160; तिथि&amp;#160; पर&amp;#160; &lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#888888&quot;&gt;( यानि 4 जुलाई को )&lt;/font&gt;&lt;/em&gt; मनाया&amp;#160; जा रहा है । &lt;em&gt;हाँ, बात डाक्टर्स डे की हो रही है । &lt;/em&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;’ इण्डिया दैट इज़&amp;#160; भारत ’ में इसे डाक्टर स्व० बिधानचन्द्र राय जन्मदिवस पर एक जुलाई को मनाया जाता है । सँयोगवश यह तिथि उनकी निर्वाण-दिवस भी है । सो,&amp;#160; इस&amp;#160; दिन&amp;#160; डाक्टर्स डे&amp;#160; मनाया जाता है । मनाया क्या जाता है, हम&amp;#160; स्वयँ&amp;#160; ही&amp;#160; मना मुनू&amp;#160; लेते हैं । हर वर्ष स्थानीय स्तर पर आई० एम० ए० की शाखा एक वरिष्ठ चिकित्सक को खड़ा कर सम्मानित भी कर देता है । भाषण देने वाले माइक पकड़ लेते हैं, और बाकीजन अपने मित्रों द्वारा उनकी स्वयँ की प्रशस्ति सुनते हुये भोज खाने में व्यस्त हो जाते हैं,&amp;#160; फिर गुडनाइट वगैरह भी होता है । &lt;em&gt;हाँ, बात डाक्टर्स डे की हो रही है ।&lt;/em&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;तत्पश्चात सब अपने अपने घर चले जाते हैं । कुछ लोग गुडनाइट से पहले ही वुडनाइट हो जाते हैं, इतने&amp;#160; जड़ और मदहोश&amp;#160; कि&amp;#160; उनको अपने घर&amp;#160; भिजवाना&amp;#160; पड़ता&amp;#160; है । एक दो दिन&amp;#160; तक सम्मानित होने वाले की ईर्ष्यात्मक प्रसँशा की जाती है, उनकी&amp;#160; अनुसँशा&amp;#160; करने&amp;#160; वाले&amp;#160; की भर्त्सना की जाती है, फिर&amp;#160; अगले&amp;#160; वर्ष&amp;#160; तक&amp;#160; के&amp;#160; लिये&amp;#160; सब&amp;#160; ठीक ठाक हो जाता है । हाँ, बात डाक्टर्स डे की हो रही है । &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;सबके&amp;#160; सब&amp;#160; डाक्टर&amp;#160; एक&amp;#160; दूसरे&amp;#160; से&amp;#160; बेख़बर&amp;#160; अपने&amp;#160; अपने&amp;#160; काम&amp;#160; में&amp;#160; लग&amp;#160; जाते&amp;#160; हैं, एकता&amp;#160; की&amp;#160; यह अनोखी मिसाल अन्यन्त्र कहीं देखने&amp;#160; में&amp;#160; कम&amp;#160; ही आती है । हाँ, बात डाक्टर्स डे की हो रही है । &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;उल्लेखनीय है कि,अपने उत्सव मनाने में हम कितने स्वालम्बी हैं, इस तथ्य की अनदेखी कर मोहल्ला सभासद, अपने भारतविख़्यात शायर ’ बेहिसाब कस्बाई जी,’ और उभार&amp;#160; लेती&amp;#160; हुई&amp;#160; इन्डियन&amp;#160; आइडल प्रतियोगी वगैरह अपना सम्मान वा अभिनँदन समारोह मनाने के लिये नाहक ही प्रचार पाते रहे है ।&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;सामान्य जन द्वारा ऎसी डाक्टरी घटनाओं&lt;em&gt; &lt;font color=&quot;#888888&quot;&gt;( पढ़ें, महत्वपूर्ण अवसरों )&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;font color=&quot;#888888&quot;&gt; &lt;/font&gt;के&amp;#160; प्रति&amp;#160; उदासीनता&amp;#160; निश्चय&amp;#160; ही निन्दनीय है । अवश्य ही हम शर्म करो दिवस या हाहाकार दिवस जैसा कोई आयोजन नहीं कर पाते, पर इस उदासीनता की निन्दा की जानी चाहिये । हम&amp;#160; मानवतासेवी&amp;#160; तो&amp;#160; अभी&amp;#160; तक&amp;#160; ठीक&amp;#160; से&amp;#160; निन्दा&amp;#160; भी&amp;#160; नहीं&amp;#160; कर&amp;#160; पाते । हाँ, बात डाक्टर्स डे की हो रही है । &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;हर व्यावसायिक सेवा में किन्हीं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कारणों से एक ख़ास वर्ग असँतुष्ट रहा करता है, यह लघु प्रतिशत यहाँ भी उपस्थित है । &lt;font color=&quot;#7c7c7c&quot;&gt;वैसे मैंने तो लगा रखा है &amp;quot;प्रवेश पूर्व कृपया यह सुनिश्चित कर लें&amp;#160; कि, आप रोगी&amp;#160; हैं&amp;#160; या&amp;#160; जनता का हक&amp;#160; मारने वाले समाजसेवी, लोभी पत्रकार या दँभी अफ़सर ? &amp;quot;&lt;/font&gt; पर मीडिया द्वारा केवल इन्हीं को इस तरह प्रचारित किया जाता है, जैसे मानव सेवा के नाम पर चल रहे इस पेशे में चहुँ ओर दानव ही व्याप्त हों ! सच तो यह है कि, जीवन अमूल्य है का मानवीय मूल्य केवल यहीं जीवित है । &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;बहुतेरे सुधी पाठक न जानते होंगे कि, यह दिन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर डाक्टर्स डे के रूप में नहीं जाना जाता है । यह भारतीय डाक्टरों के लिये चुना गया एक अखिल भारतीय दिवस है । ई० सन 1933 में डा० चा अलमान्ड की विधवा यूडोरा ब्राउन अलमान्ड को ख्याल आया कि 30 मार्च 1842 को ही उनके स्वर्गीय पति ने जनरल एनेस्थेसिया के रूप में ईथर का प्रयोग करके विश्व की पहली शल्य चिकित्सा की थी । &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;सर्वप्रथम यह 30 मार्च 1933 को उनके पैतृक निवास बैरो काउँटी, अमेरिका में स्थानीय स्तर पर मनाया गया । 30 मार्च 1958 को अमेरिकी काँग्रेस ने इसे राष्ट्रीय दिवस के रूप में स्थापित करने का प्रस्ताव पास किया :&lt;/p&gt;  &lt;blockquote&gt;   &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#0000df&quot; size=&quot;2&quot;&gt;&lt;em&gt;Whereas society owes a debt of gratitude to physicians for their contributions in enlarging the reservoir of scientific knowledge, increasing the number of scientific tools, and expanding the ability of professionals to use the knowledge and tools effectively in the never ending fight against disease and death.&lt;/em&gt;&lt;/font&gt;       &lt;br /&gt;जी हाँ, बात डाक्टर्स डे की हो रही है । &lt;/p&gt; &lt;/blockquote&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;ई०&amp;#160; सन 1 जुलाई 1962&amp;#160; को&amp;#160; डा०&amp;#160; बिधानचन्द्र राय&amp;#160; के&amp;#160; देहावसान&amp;#160; और&amp;#160; चीन से&amp;#160; मोहभँग के&amp;#160; बाद, अमेरिका&amp;#160; की&amp;#160; तर्ज़ पर&amp;#160; प्रधानमँत्री&amp;#160; ज़वाहरलाल नेहरू&amp;#160; ने 1963 जुलाई से इसे डाक्टर्स डे के रूप में मनाये जाने की घोषणा की थी । सँभवतः यह तत्कालीन महामनाओं को उनके व्यक्तित्व के अनुरूप सम्मान न दे पाने के असँतोष को शमन करने की उनकी नीति रही हो । यह मेरे व्यक्तिगत गवेषणा का विषय है कि,पँ० ज़वाहरलाल नेहरू किस सोच के अन्तर्गत व्यक्ति विशेष के जन्मतिथियों को राष्ट्रीय पर्व घोषित कर दिया करते थे । &lt;em&gt;जी हाँ, आप ठीक पढ़ रहे हैं, बात डाक्टर्स डे की हो रही है ।&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;अमेरिकी सीनेट और राष्ट्रपति जार्ज़ बुश ने 1990 में&amp;#160; डाक्टर्स डे&amp;#160; को&amp;#160; कानूनी&amp;#160; ज़ामा&amp;#160; पहनाया&amp;#160; और इसे&amp;#160; अनिवार्य&amp;#160; राष्ट्रीय दिवस&amp;#160; की&amp;#160; मान्यता दे दी । &lt;/p&gt;  &lt;blockquote&gt;   &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#0000df&quot; size=&quot;2&quot;&gt;Whereas society owes a debt of gratitude to physicians for the sympathy and compassion of physicians in administering the sick and alleviating human suffering. Now, therefore, be it resolved by the Senate and House of Representatives of the United States of America in Congress as follows:          &lt;br /&gt;1. March 30 is designated as National Doctors Day.           &lt;br /&gt;2. The President is authorised and requested to issue a proclamation calling on the people of the United States of America to celebrate the day with appropriate programmes, ceremonies and activities.           &lt;br /&gt;The enactment of this law enables the citizens of the United States to publicly show their appreciation to the role of physicians in caring for the sick, advancing medical knowledge and promoting health.&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;       &lt;br /&gt;जी हाँ, बात डाक्टर्स डे की हो रही है । &lt;/p&gt; &lt;/blockquote&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgd4eNUUQ-rB0q3W5Ks5g_1FD-iCgRUFillQZwExAbbDTB9PJGKpsZKAaSbJ6hyphenhyphenvZBnLy5D3gmQNZY2FuQ3nVxFEbC-2Gfn1qMxQ8JRHWdvTyFN8G3KwFh6W2xn1JnBXWnUlA7HL7Cco4c4/s1600-h/docday2%5B5%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px&quot; title=&quot;docday2&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;docday2&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjeeTjvOzoc9QzR24-sIzuPOTXdiMlOT8DF2XVMLR0Xp8e2jlcpNAijjv3uZWb4XeEbwiqU0DomT5heFDSX6bKDd4SvU_KnNi-2NuOTfH_CpsYrkZTPlXl5hgYb6yw_2wVrSUUO9_6o0SXh/?imgmax=800&quot; width=&quot;506&quot; height=&quot;134&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000df&quot;&gt;बस यहीं पर&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt; मेरा असँतोष मुखर होता है, क्योंकि डाक्टरों में कोई राजनैतिक भविष्य हो, या ना हो पर, डाक्टर्स डे को लेकर जनसमाज में निरँतर बसी उदासीनता मन में एक क्षोभ या अलगाव पैदा करती है । चलो फिर भी, कम से कम यह कहने को तो है कि, इवन अ डॉक हैज़ हिज ओन डे !&amp;#160; &lt;br /&gt;&lt;font size=&quot;3&quot;&gt;&lt;em&gt;जी हाँ, अब तक बात डाक्टर्स डे की ही हो रही थी ।&lt;/em&gt;&lt;/font&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQ-LXIiN9PIqe-jzhzyy_uZuCKVyq8HOsH5SieqLjTeOFv0GFpcGFRJu9rRcIkkaiL9tGi_Y5IJVDrQUcJQZNLVf33Vpm_2rHkFAuE1eMBzWLwKX_QZZTYl5UhQ58eg2Dqrxs0qIpD5eQj/s1600-h/009xx%5B11%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px&quot; title=&quot;DrBC Roy -composed by Amar&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;DrBC Roy -composed by Amar&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEib-FgcziPRhReTq1PUd2qcyRNU7NNIQu4Z8e_xlcSMHPqKv8pAzFjncvtsg-Kd2EkqnpDyegv8LDTbDSOtrlLPnkcQV9-SWdpwPw3adMzLNakWSngziRZJSfQi1oMOc-EH3PE-ERnJLMth/?imgmax=800&quot; width=&quot;477&quot; height=&quot;480&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;strong&gt;&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#0000df&quot;&gt;&lt;a href=&quot;http://chhaddyaar.blogspot.com/2008/02/blog-post_23.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; margin-left: 0px; border-top: 0px; margin-right: 0px; border-right: 0px&quot; title=&quot;tn_doc&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;tn_doc&quot; align=&quot;left&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi84AbHzv4lmNpJhGA7k9o8yJ6JBAHt1k64WR22Z3IQ9-YyTvpg2P4H9ERbtH4zuFr4fIUeMDvpNy9skcc0BdDj1aOHj7gkNTvsBRUeFcjQv_64elSvbqh3QLTsU9u2aLReU4GYQTwMaZba/?imgmax=800&quot; width=&quot;223&quot; height=&quot;155&quot; /&gt;&lt;/a&gt;चलते चलते :&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;जरा इन डाक्टर साहबान से भी मिलना न भूलियेगा.. &lt;a href=&quot;http://chhaddyaar.blogspot.com/2008/02/blog-post_23.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;सीरियसली भई, एक बार मिल तो लें, पछताना न पड़ेगा !&lt;/a&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&amp;#160;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&amp;#160;&lt;/p&gt;  &lt;div style=&quot;padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; float: none; padding-top: 0px&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:cfc69383-4767-4585-82cf-d8a1ea1f9d58&quot; class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Dr.B.C.Roy&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Dr.B.C.Roy&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/RaeBareli&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;RaeBareli&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Dr+Cha+Almond&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Dr Cha Almond&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Doctors%e2%80%99+Day&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Doctors’ Day&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/gratitude+to+physicians&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;gratitude to physicians&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e2%80%98National+Doctors%e2%80%99+Day%e2%80%99IMA&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;‘National Doctors’ Day’IMA&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Bidhan+Chandra&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Bidhan Chandra&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Dr.Amar+Kumar&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Dr.Amar Kumar&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Hindi+Blog&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Hindi Blog&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/07/blog-post.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjeeTjvOzoc9QzR24-sIzuPOTXdiMlOT8DF2XVMLR0Xp8e2jlcpNAijjv3uZWb4XeEbwiqU0DomT5heFDSX6bKDd4SvU_KnNi-2NuOTfH_CpsYrkZTPlXl5hgYb6yw_2wVrSUUO9_6o0SXh/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>12</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-8181613736936585656</guid><pubDate>Sat, 13 Jun 2009 21:56:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-06-14T10:45:42.949+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">आब्ज़ेक्शन मी लार्ड</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">कुछ तो है</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">निंदक नियरे राखिये</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">संगी साथी</category><title>विस्मृत बिस्मिल और ब्लागर च तनवीर</title><description>&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;strong&gt;पहले तो यह बता दूँ कि,&lt;/strong&gt;यह पोस्ट भँग की तरँग में नहीं लिखी जा रही है । मानता हूँ कि शीर्षक बड़ा अटपटा बन पड़ा है, बल्कि यदि मुझे स्वयँ ही टिप्पणी देनी होती, तो उसे फ़कत एक लाईन में समॆट देता, &amp;quot; तेली के सिर पर कोल्हू ! &amp;quot; पर इस शीर्षक के पीछे एक मज़बूरी भी है , कृपया इसे &lt;a href=&quot;http://sarathi.info/archives/2223&quot;&gt;&lt;strong&gt;सारथीय टोटका&lt;/strong&gt;&lt;/a&gt; न मानें । मँगलवार 9 जून को सायँ चँद सतरें मरहूम हबीब तनवीर साहब पर पोस्ट करने का इरादा था कि, अचानक एक पारिवारिक आपदा आन पड़ी । मेरे बहनोई देवाशीष नहीं रहे,अब वह स्वर्गीय देवाशीष के नाम से याद किये जाते रहेंगे । अस्तु, यह रह ही गया । &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;कल वृहस्पतिवार 11 जून को हुतात्मा बिस्मिल जी की जयँती थी । पूरे दिन उन पर दो शब्द सुमन अर्पित न कर पाने का मलाल बना रहा । रात में कुछ समय चुरा कर ब्लागर पर आया, तो आते ही बहक गया । शिव-भाई की पोस्ट ऎसी न थी कि, देख कर टहल लिया जाय ।    &lt;br /&gt;आज लिखते वक़्त यह भान भी न हुआ कि, इनको एक मँच देखना कितना कठिन है ? इस तरह द्राविड़, उत्कल, बँगा-नुमा इस पोस्ट को एक पँक्ति का यह शीर्षक देना पड़ा, मानों जाट और तेली की तकरार हो रही हो.. सो, बन&amp;#160; गया&amp;#160; &amp;quot; तेली के सिर पर कोल्हू ! &amp;quot; इनमें तुक मिलाना आपका काम है, पर लगता है कि, शीर्षक मे वज़न है&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#009b00&quot; size=&quot;4&quot;&gt;&lt;strong&gt;اَلہمدُلِّاہ ربدِلآلمین اَلرہمانے رہیم&lt;/strong&gt;&lt;/font&gt;     &lt;br /&gt;&lt;font color=&quot;#009b00&quot; size=&quot;4&quot;&gt;&lt;strong&gt;مالِک یومیتّدین ایدنت پھِراتل مُتّکیم&lt;/strong&gt;&lt;/font&gt;&amp;#160; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#009b00&quot; size=&quot;2&quot;&gt;अलहमदुल्लिाह रबदिलआलमीन अलरहमाने रहीम        &lt;br /&gt;मालिक योमेत्तदीन एदनत फिरातल मुत्तकीम&lt;/font&gt;&lt;/em&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;हबीब तनवीर साहब को यूँ इन लफ़्ज़ों से रुख़सत कर देना मौज़ूँ रहेगा ? नहीं, क्योंकि अब तक उनकी शख़्सियत पर तकरीरें लिख कर कई कालमिस्ट चेक की रकम ज़ेब के हवाले कर चुके होंगे । मेरी उनसे कोई ऎसी मुलाकात भी न थी कि, उसका दम भरा जाय । एक इन्सान के तज़ुबों में दस मिनट कम नहीं होते । बहुत कुछ हासिल किया और खोया जा सकता है, उनसे&amp;#160; मेरी&amp;#160; मुलाकात&amp;#160; दस&amp;#160; मिनटों&amp;#160; की&amp;#160; ही&amp;#160; रही है । पर उन मिनटों ने साफ़गोई के मेरे&amp;#160; ऊसूल में&amp;#160; बेइख़्तियार इज़ाफ़ा किया , बल्कि&amp;#160; समझिये&amp;#160; कुछ&amp;#160; और पुख़्ता&amp;#160; ही हुआ । आमीन !&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;उन दिनों मुझे मुगालता बना रहता , कि मैं ही एक तन्हा साफ़गो हूँ । यह एक ज़िद थी, जो बढ़ती ही जा रही थी, तभी तनवीर साहब से मुलाकात का एक सबब बन गया । सुना कि, वह लखनऊ में हैं, और हम निकल पड़े &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;हम यानि कि मेरे बालसखा सँतोष डे और मै । इन्होंने मेरे रुझान को देखते हुये इप्टा में शामिल कर लिया । और मेरी निष्क्रियता से आज़िज़ होकर मुझे स्थानीय यूनिट के सँरक्षक होने का प्रस्ताव भी पारित करा लिया, आजकल वह इप्टा के प्रान्तीय यूनिट के कार्यकारी उपाध्यक्ष हैं, अविवाहित भी हैं, लिहाज़ा&amp;#160; खुल कर सक्रिय हैं । &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;तो.. हम पहुँचे लखनऊ । सँतोष आगे चलते और मैं कार्यकर्तानुमा एक चमचे सरीखा उनके पीछे लगा रहता । अल्ला अल्ला ख़ैर सल्लाह, मुलाकात हुई । वह बैठे थे, सोफ़े पर इस कदर पसरे हुये कि आपको एकबारगी यह इहलाम हो कि उस पर देवदार की एक शहतीर टिकी हुई हिल सी रही है । उन्होंने अपने को सीधा किया, और पाइप का धुँआ खिड़की की तरफ़ मुँह करके बाहर को उगला । सलाम के उत्तर में सँतोष डे के लिये होठों पर एक स्मित रेख, और मेरे लिये आँखों में&amp;#160; जैसे &amp;quot; जी कहिये ? &amp;quot; अपनी प्रश्नवाचक भँगिमा और मुस्कुराते होंठों को इस बखूबी बाँट रखा था, कि साफ़ ज़ाहिर होता, कौन किसके लिये है । मेरे मित्र ने मेरा तवार्रुफ़ उनके पेश ए नज़र की, &amp;quot; यह डाक्टर... &amp;quot; ताकि आइँदा मैं परिचय का मोहताज़ न रहूँ । ज़वाब में सिर की एक ज़ुँबिश.. और वह फिर खिड़की से बाहर देखने लग पड़े, पाइप के क़श के साथ । दो सेकेन्ड भी न बीते होंगे कि, मैं बेहाल सा होगया, मेरे चेहरे ने घूम कर सँतोष का चेहरा देखा &amp;quot; यह कुछ बोलते क्यों नहीं ? &amp;quot; शायद रँगमँच को लेकर व्याप्त उदासीनता ने उनको तल्ख़ बना दिया होगा, &amp;quot; तो.. कुमार साहब आपकी हम नौटँकी वालों में दिलचस्पी कैसे हुई ? &amp;quot; मैं भला क्या कहता, बस एक ठहरे हुये इँज़िन की तरह ढेर सा स्टीम बटोर कर कुछ अटक फटक ही कर सका । और&amp;#160; उसी तरह ठिठक कर रुक भी गया ।&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#7f7f7f&quot;&gt;&lt;strong&gt; &lt;/strong&gt;&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#7f7f7f&quot;&gt;&lt;strong&gt;अ&lt;/strong&gt;&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#7f7f7f&quot;&gt;&lt;strong&gt;ब&lt;/strong&gt;&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&amp;#160;&lt;font color=&quot;#7f7f7f&quot;&gt;&lt;em&gt; इससे आगे&amp;#160; बढ़ता हूँ, तो आपका पढ़ने का टेम्पो जाता रहेगा । इसलिये यह मुलाका्ती ब्यौरा यहीं पर छोड़ें,&lt;/em&gt;&amp;#160; &lt;font color=&quot;#000000&quot;&gt;किस्सा कोताह यह कि उस दिन से मैं उनकी साफ़गोई और पारेषण क्षमता का आशिक व शागिर्द&amp;#160; हूँ ।&lt;/font&gt;&amp;#160;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;/p&gt;  &lt;div align=&quot;center&quot;&gt;&lt;a href=&quot;http://img35.imageshack.us/i/bimilbyamar12june2009.jpg/&quot;&gt;&lt;img border=&quot;0&quot; src=&quot;http://img35.imageshack.us/img35/5206/bimilbyamar12june2009.jpg&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;  &lt;p&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;श्रद्धेय श्री रामप्रसाद ’ बिस्मिल ’ को भला कौन नहीं जानता ? पर यह भी सच है कि, बहुत से जन उन्हें नहीं जानते । क्योंकि उन्हें जानने का मौका ही न दिया गया । &lt;a href=&quot;http://amar2you.blogspot.com/2008/06/blog-post_15.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;अचपन के एक मुख्य पात्र तन्मय जी,&lt;/a&gt; जो आजकल रायबरेली आये हुये हैं ।&amp;#160; मैं बिस्मिल जी का जन्मदिन उनसे पूछ बैठा, ऎसे&amp;#160; कठिन&amp;#160; क्षणों&amp;#160; में&amp;#160; भी&amp;#160; &lt;strong&gt;&lt;a href=&quot;http://kakorikand.wordpress.com/2009/01/13/130113/&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;मेरे&amp;#160; मन&amp;#160; में उनका&amp;#160; जन्मदिन&amp;#160; घुमड़&amp;#160; रहा&amp;#160; था&lt;/a&gt;&lt;/strong&gt; । वह तो बिस्मिल नाम से ही अनभिज्ञ&amp;#160; थे, लेकिन &lt;a href=&quot;http://kakorikand.wordpress.com/2008/12/28/28121/&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&amp;quot; सरफ़रोशी की तमन्ना &amp;quot;&lt;/a&gt; में निहित रुमानियत के दीवाने हैं । उनका तर्क है, &amp;quot; जब कोर्स में ही नहीं है, तो मेरी चिन्ता नाज़ायज़ है । &amp;quot; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#000000&quot;&gt;इस कड़ी में, यही प्रश्न मैं कई किशोरों से पूछता रहा, वह सिर खुज़ला कर प्रतिप्रश्न दाग बैठे कि, “ अग़र मह्त्वपूर्ण जयँती होती , तो आज छुट्टी क्यों नहीं है ? “ तभी निरुत्तर हो, मैं यह पोस्ट लिखने को बैचैन हो उठा &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#000000&quot;&gt;हर वर्ष &lt;strong&gt;छुट्टीट्यूड &lt;/strong&gt;से ग्रसित देश के लिये एक नये जयँती की घोषणा हो जाती है । व्यक्तिगत&amp;#160; और&amp;#160; राजनैतिक हितों को जनजागृति से ऊपर रखने की शुरुआत तो बहुत पहले ही हो गयी थी । ओह,&lt;a href=&quot;http://www.aryasamaj.com/enews/jan08/bismil.htm&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;strong&gt;यह क्या कह रहा है ?&lt;/strong&gt;&lt;/a&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;blockquote&gt;   &lt;p&gt;&lt;em&gt;&lt;font size=&quot;1&quot;&gt;The three appellants Ram Prasad, Rajendra Nath Lahiri and Raushan Singh, who were sentenced to death and subject to confirmation by this Court, became entitled, under a practice&amp;#160; of the local Government which has been in force for some years, to legal assistance at the expense of the Crown. The appellants, who had not been sentenced to death, were not entitled to legal assistance at the expense of the Crown. But as a special case the Crown had allowed them legal assistance &amp;amp; paid for it.&lt;font color=&quot;#0000b0&quot;&gt; &lt;strong&gt;Ram Prasad in his petition of appeal, demanded as of right to select his own counsel. He stated that he would only be satisfied if he was represented by a Gentleman called Mr Gobind Ballabh Panth …..&lt;/strong&gt;&lt;/font&gt; The Crown approached Mr Gobind Ballabh Pant and offered him the brief. He refused to accept it on the fee that the Crown was ready to pay.”&amp;#160; &lt;font color=&quot;#0000b0&quot;&gt;&lt;strong&gt;Gobind Ballabh Pant, who had refused to defend the great freedom fighter only because of less money&lt;/strong&gt; went on to become the Home Minister of India &amp;amp; the longest serving Chief Minister of Uttar Pradesh.&lt;/font&gt;&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;/p&gt; &lt;/blockquote&gt;  &lt;p&gt;परसों यानि कि 11 जून को बिस्मिल जयँती थी । कहीं कोई हलचल नहीं, कहीं कोई उल्लास नहीं, उनके गाँव वाले घर &lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#7f7f7f&quot;&gt;( जो अब बिक गया है )&lt;/font&gt;&lt;/em&gt; उत्सव के माहौल में भी आक्रोश का स्वर था । शायद ज़ायज़ भी है, मँचासीन होकर “ भगत सिंह, बिस्मिल, अशफ़ाक जैसे सपूतों की धरती “ की दहाड़ लगाना अलग बात है । मैं नहीं समझता कि झलकारी, लोहिया, या पँत ने इन सिरफ़िरों से अधिक त्याग किया होगा कि स्मारक के हकदार हों&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;center&quot;&gt;ऎसे सिरफ़िरों को श्रद्धाँजलि देने के लिये, मेरे पास शब्दों का भँडार है । पर, यह मेरी पहुँच से बाहर है । क्योंकि इनके ज़ज़्बों के सम्मुख हर भारतवासी बौना है , मैं उनको बस स्मरण ही कर सकता हूँ ।&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;मृत्यु पूर्व होशो हवास में लिखे हुये इन ज़ज़्बों को भला कौन छू सकता है, एक्स-वाई-ज़ेड सेक्यूरिटी पाने वाले ?&lt;/p&gt;  &lt;blockquote&gt;   &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjosILFz7mE2PPFBtSn6HZL05yQtTdGZ0U1c390sFZ_yhnFZVkz9sAIM7F0EoA3pW0yj89nZwy_CRdUgtcNtgbSQnCHrKsQfwg8SlRTxKt_TDz0D4-1iYtw4Kyn9CjGSOgI_3jmxen4PjFB/s1600-h/Pandit_Ram_Prasad_Bismil11.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-right-width: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: 0px; border-left-width: 0px; margin-right: 0px&quot; title=&quot;Pandit_Ram_Prasad_Bismil&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;Pandit_Ram_Prasad_Bismil&quot; align=&quot;right&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgocR-l4ZO1OuyNrWxDtJgFoZFF-_bJ_qOVDu9t0sw0qsa_cikEybzehppsuB8IuFSmoxzRbpahNavERp2wdtGLweKrZIkWnYoGGCotKqflGgd5g1bU9cxZ79Goy4EJ7-FIschoi8iZcds6/?imgmax=800&quot; width=&quot;66&quot; height=&quot;87&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/p&gt;    &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000b0&quot;&gt;19 तारीख को जो कुछ होगा मैं उसके लिए सहर्ष तैयार हूँ।        &lt;br /&gt;आत्मा अमर है जो मनुष्य की तरह वस्त्र धारण किया करती है।&amp;#160; &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000b0&quot;&gt;यदि देश के हित मरना पड़े, मुझको सहस्रो बार भी ।        &lt;br /&gt;तो भी न मैं इस कष्ट को, निज ध्यान में लाऊं कभी ।।         &lt;br /&gt;हे ईश! भारतवर्ष में, शतवार मेरा जन्म हो ।         &lt;br /&gt;कारण सदा ही मृत्यु का, देशीय कारक कर्म हो ।। &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000b0&quot;&gt;मरते हैं बिस्मिल, रोशन, लाहिड़ी, अशफाक अत्याचार से ।        &lt;br /&gt;होंगे पैदा सैंकड़ों, उनके रूधिर की धार से ।।         &lt;br /&gt;उनके प्रबल उद्योग से, उद्धार होगा देश का ।         &lt;br /&gt;तब नाश होगा सर्वदा, दुख शोक के लव लेश का ।। &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000b0&quot;&gt;&lt;em&gt;सब से मेरा नमस्कार कहिए,&amp;#160; तुम्हारा- बिस्मिल&lt;/em&gt;&amp;quot; &lt;/font&gt;&lt;font color=&quot;#7f7f7f&quot; size=&quot;2&quot;&gt;&lt;em&gt;( यह एक पुर्ज़े पर लिखा हुआ पत्राँश है.. )&lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt; &lt;/blockquote&gt;  &lt;p&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;पर उन्हें यही सँतोष रहा किया कि,    &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;शहीदों की चिता पर लगेंगे, हर बरस मेले । वतन पर मिटने वालों का यही आख़िरी निशाँ होगा.. &lt;/strong&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&amp;#160; &lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhagLmD3LlGUqbIottCmyfHWRpG0u2PXClwGU58iHrRIw5LJCFf6w6hitVnWvIsJg5_N9QERXuJSOVq6nWjUCtzz-30BaZvSO7xk23gBNmGVyM924jEvS-nY8C8rp_Iq9THB3lsRBrzjmp9/s1600-h/AADDEEFFHHHH7.gif&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-right-width: 0px; margin: 0px 15px 0px 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px&quot; title=&quot;AADDEEFFHHHH&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;AADDEEFFHHHH&quot; align=&quot;left&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDM2b_L23p3peDtKypKJrhjUT46wZLMhqQiV0pNpQXH9tTqp7qjbxUrLdbpI80UmmF4HQS0xHdXqDXkNbF7JK4V8YOUtyXwOjBtN1gUksRVgg1AeT2rZMrBRNs-JCbdXcf2MBJmxoDgHvp/?imgmax=800&quot; width=&quot;237&quot; height=&quot;244&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;http://binavajah.blogspot.com&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;यूँ ही निट्ठल्ले&lt;/a&gt; के सँग कुछ न कुछ तो है.. कि &lt;em&gt;जाते थे जापान पहुँच गये चीन समझ लेना ! यान्नि यान्नि यानि ..&lt;/em&gt; इतने झँझावात के बावज़ूद भी, मैं मौका पाते ही नेटायस्थ होता भया, कि चलों मेला वेला देखि आयें, ऎसे किसी मेले का ब्लागर पर निशाँ तो क्या, नामो-निशाँ भी न था । &lt;a href=&quot;http://shiv-gyan.blogspot.com/2009/06/blog-post_11.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;दिख गया शिवभाई का एक टटका पोस्ट !&lt;/a&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;समय निकाल आया तो था,&amp;#160; बिस्मिल जी को उनकी जयँती पर याद करने.. लेकिन&amp;#160; शिवभाई की पोस्टिया ने जैसे लपक कर रास्ता छेंक लिया । उसे&amp;#160; पढ़ा, फिर गौर से पढ़ा और&amp;#160; यही&amp;#160; समझा&amp;#160; कि, यहाँ पर भी स्वतँत्रता जैसा&amp;#160; कुछ&amp;#160; कुछ&amp;#160; हो गया&amp;#160; था&amp;#160; और वह&amp;#160; गुज़र&amp;#160; चुका&amp;#160; है&amp;#160; ।&amp;#160; &lt;strong&gt;लाओ हम तनिक लकीरै पीटि देंय&lt;/strong&gt;     &lt;br /&gt;तब का बुद्धिजीवी अँग्रेज़ों के भ्रुकुटि का गुलाम था, आज का बुद्धिजीवी अँग्रेज़ी सोच की मानसिकता का ताबेदार है, पिछले छः दशक से भारतीयता और देसी सँदर्भों पर यह कैटरपिलर अवस्था से बाहर आना ही नहीं चाहता ।&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;सशँकित भी है,&amp;#160; न जाने कौन सी चिड़िया उसे चुग जाये ? उस पर तुर्रा यह कि इस कैटरपिलर केंचुवे को खुल्ले में आने की, चर्चित होने की ललक भी है ।&amp;#160; नोटिस किये जाने व टी.पी.आर. की दुश्चिन्ता को वह छिपाये भी रखना चाहता है, यह बाद की बात है । फ़िलहाल दिखलाता यही है कि,वह रचनाधर्मिता की बग्घी को सँवेदनाओं की सँटी से हाँकने को अभिशप्त है । ऎसी बग्घियाँ आपको हर सर्वहारा टाँगा स्टैन्ड पर सस्ते में मिल जायेंगी ।&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;देखो अपुन का फ़ँडाइच अलग बैठेगा, शिवभाई ! डर कर लिखना.. दबाव में लिखना.. समझौतों पर लिखना.. पाठकों की पसँद के हिसाब से लिखना.. यानि कि अपने ही विचारों और शब्दों का गला घोंटना, एक तरह की हाराकिरी है । यह अपने अँदर के एक लेखक बटा ब्लागर की आत्महत्या है ।&amp;#160; क्या यह मौलिक कहलायेगा ?    &lt;br /&gt;बेहतर है कि,अभिव्यक्ति के स्वतन्त्रता की मानसिक नौटकीं की स्क्रिप्ट राइटिंग करते रहना !&amp;#160; यही पर एक गड़बड़&amp;#160; भी है, कि ब्लागरीय ठुमके हिट और फ़िट हैं, लेकिन वह फिर कभी.. वरना अपुन के हलके के भाई लोग इसे जलेली-कुड़ेली कुँठित पोस्ट कह कर सरक लेंगे ।&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;इदर ब्लागर का लफ़ड़ाइच डिफ़रेन्ट है, सच्ची&amp;#160; लिकेगा तन कौव्वा काटेगा ! अईसा किस माफ़िक चलेंगा ? जब लिखेला, सच्ची बात लिखेला तण डरने का लोचाइच क्या ? अपुन तो फ़ुल्ल टाइम राइटर बी नईं है, पण अपना लिखा कब्भी से कब्भी भी नहीं हटाया । एडीटर नईं छापता, कोई वाँदा नईं.. अपुन को रोकड़े का चेक नईं मिलेंगा, तो चलेंगा । पण, चित्रगुप्त साहब के खानदानी को कुच लिक के हटाने का प्रेंसिपल बनताइच नईं, जी ! &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;पँडित दिनेशराय द्विवेदी जी मेरे टाप टेन मित्रों में हैं,मैं उन्हें खोना भी नहीं चाहता । वह चाहते तो टिप्पणी बक्से में ही पर्याप्त ऊधम मचा सकते थे, जो उन्होंने नहीं किया । पर मिस्टर डिलीट जी, मित्रवत राय देना एक अलग बात है.. उस पर विचार करके अमल में लाना उससे ज़्यादा अहम बात है ।&amp;#160; आपसे पूछ कर कौन पँगा लेगा कि आप ब्लागर को&amp;#160; महत्व दे रहे हैं, या उसके पेशे को ? अपनी सोच को या मित्रवत राय की पसँद को ?&lt;/p&gt;  &lt;blockquote&gt;   &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#0000b0&quot;&gt;अपने डाक्टर साहब जब दूभर मचाते हैं,&lt;/font&gt; तो सबसे पहले&amp;#160; मैं&amp;#160; उनको&amp;#160; ही खूँटी&amp;#160; पर&amp;#160; टाँग&amp;#160; कर कीबोर्ड&amp;#160; के&amp;#160; सम्मुख&amp;#160;&amp;#160; &lt;font color=&quot;#0000b0&quot;&gt;“ प्रथम&amp;#160; वन्दहूँ&amp;#160; बरहा..&amp;#160; लाइवराइटर ,&amp;#160;&amp;#160; पुनि ब्लागर&amp;#160; सुमिरैं&amp;#160; गूगलदेव “&lt;/font&gt;&amp;#160; गायन के बाद ही ब्लागियाना आरँभ करता हूँ ।&amp;#160; वरना&amp;#160; तो&amp;#160; जीना&amp;#160; ही&amp;#160; मुहाल&amp;#160; हो जाता,&amp;#160; इतनी बार इतनी जगह इतनी पोस्टों पर &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000b0&quot;&gt;डाक्टर कि डकैत&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt; की गुहार सुन चुका हूँ , कि खिड़की के बाहर देख कर&amp;#160; खुद तस्दीक करनी पड़ती है कि, कहीं&amp;#160; मैं ही तो किसी मन्त्री आवास में नहीं घुस आया ?&amp;#160; &lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#0000b0&quot;&gt;पण श्शाब जी, अईसा है ना कि, जब हम बोलेगा तो बोलेंगे कि चोलता है !&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;/p&gt; &lt;/blockquote&gt;  &lt;p&gt;वईसे अँदर की बात है कि, एक बार &lt;a href=&quot;http://c2amar.wordpress.com/2008/07/24/2407/&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;“ बेचारा सफ़ेद एप्रन काले कोट से बहुत डरता है, “&lt;/a&gt; से काला कोट मैंनें भी हटा दिया था, क्योंकि तब हिन्दी ब्लागरीय तहज़ीब ( ? ) से इतना परिचित न था कि तू ये हटा, मै वो हटाता हूँ&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;वईसे पँडित जी खुद्दै कहिन है,कि, &lt;a href=&quot;http://pangebaj.com/?p=407&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&amp;quot; कोई भी सिरफिरा वकील मीडिया में सुर्खियाँ प्राप्त करने के चक्कर में.. &amp;quot;&lt;/a&gt; यानि कि उसकी सँवैधानिक पात्रता और मोटिव दोनों ही उनके इस अदने से ज़ुमले रेखाँकित होते हैं । अगर सिरफ़िरे का साट्टिफ़ीकिट चाही, हमरे लगे पठाओ । हम सबको जब इसी समाज में एक साथ ही जीना है तो, वह भी मुहैय्या करवाया जायेगा । सिरफ़िरेज़ आर द हैपेनिंग थिंग । बँदरबाँट वालों को उनकी ज़रूरत रहती है&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;एक बार तरकश पर मेरे आलेख को किसी ने भद्दी से भद्दी टिप्पणियों से नवाज़ा था, दो दिन तक उसे माडरेट न होते देख सज्जन कुँठित हो उठे । रोमन में प्रारँभ हुये, इससे पहले कि, वह ग्रीक तक पहुँचते, मैंनें उन्हें ललकार दिया कि, मानहानि का दावा ठोंकि दे यार.. चाहे मैं जीतूँ या तू हारे.. वकील सहित तेरा हिस्सा पक्का ! ज़नाब मुकर गये यानि कि चुप मार गये । तब से मैं उनके पीछे लगा हूँ, बहुत अनुयय भी किया, &amp;quot; भाई साहब, प्लीज़ ... प्लीज़ मान भी जाओ, एक केस डाल दो..। &amp;quot; प्यारे मिरचीलाल जी, आप जहाँ कहीं भी हों, यदि यह पोस्ट पढ़ रहें हों, तो एक बार पुनः निवेदन है कि, कृपया एक मिसाल कायम करने में&amp;#160; मेरी सहायता करें ।&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;यदि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर कुछ यथार्थ लिखा है, तो कुठाराघात को तैयार रहिये । अच्छी बुरी खरी खोटी पसँद नापसँद ही सही आपकी पोस्ट आपका मानसपुत्र है (&amp;#160; चलिये, कविताओं&amp;#160; को भी मानसपुत्रियाँ&amp;#160; मान लीजिये ) । थोड़ी आहट क्या हुई, इसे, अपने सृजित को, कुरूप&amp;#160; ही&amp;#160; सही, पर&amp;#160;&amp;#160; अपने&amp;#160; ही&amp;#160; हाथों ( एक अदने से चूहे की मदद से ) ज़िबह कर दो । पोस्ट हटा लो, पुनर्लारवाचः भव,&amp;#160;&amp;#160; पुनः लारवे के खोल में लौट जाओ,&amp;#160; यह क्या&amp;#160; है ?&amp;#160; फिर तो,&amp;#160; हिन्दी ब्लागिंग पँख पसार चुकी ? कर जोरि हम मिलि बैठि लारवा कैटरपिलर में विचरते रहें&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;यह परस्पर सौहार्द व आदर का&amp;#160; दोहन है, जो हर एक ईमानदार ब्लागर की मँशा पर प्रश्न उठाता है । अभी तो, यहाँ पर समय और श्रम के व्यर्थ ही दुरुपयोग की बात ही नहीं की जा रही है । नतीज़ा यह कि, हम जहाँ हैं वहीं पर घूमते रह जाते हैं.. मातृभाषा के आगे न बढ़ पाने में यह अस्वस्थता कितनी बाधक है, यह&amp;#160; तो अभी नहीं लिखूँगा । आप तो जानते ही हैं कि, &lt;a href=&quot;http://binavajah.blogspot.com/2008/10/blog-post_20.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;अभी टैम नहीं है, शिवभाई&lt;/a&gt; !&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#ff0000&quot;&gt;ऊड़ी बाबा !&lt;/font&gt; &lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgMrI-PtzB9HZmmqxSGx-k6KwsfM0dr3V0njMtL8X6yL9Fo1zigk1PVxJEijfGkiQhuaHc2SU89LxdzwuBYwnsQ9YPw9iNNjMe8tY-NCT5qFx5YoDM3RQ-8S-1_O9GJ4cVyKMC7gnqLDETV/s1600-h/mouse_quiet_shh_sm_nwm3.gif&quot;&gt;&lt;img style=&quot;display: inline; margin-left: 0px; margin-right: 0px&quot; title=&quot;mouse_quiet_shh_sm_nwm&quot; alt=&quot;mouse_quiet_shh_sm_nwm&quot; align=&quot;left&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMyuYq_Bmjg2vm7CGvojmNpQn9EcXfKqS7RwKFdh-f-StCu1Jf7OKbBb7t_ErxvLoojw7VNkvODdQ0YaxxMeHFZOC9mRkwgJfF9NepsFb6U_zVsm1kY734DPIP7MpY-IBdwiYeqXpDe_-N/?imgmax=800&quot; width=&quot;90&quot; height=&quot;90&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/strong&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#ff0000&quot;&gt;मात्र 8095 शब्दों की पोस्ट ?&lt;/font&gt; कुछ पता ही न चला । भँग की तरँग तो गुज़रे ज़माने की यादें हैं, यह ब्लागर की तरँग थी । कोई ज़रूरी नहीं कि, आप नेट पर उपलब्ध हर आम और ख़ास को पढ़ें, मुझे तो यह लिखना ही था । सो,यहाँ दर्ज़ कर दिया । बाकी आप जानो ।&amp;#160; वैसे दर्ज़ तो यह भी&amp;#160; होना&amp;#160; चाहिये&amp;#160;&amp;#160; कि&amp;#160; परस्पर यह क्यों&amp;#160; याद&amp;#160; दिलाया&amp;#160; जाय&amp;#160; कि, &lt;/p&gt;  &lt;blockquote&gt;   &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#000000&quot;&gt;हममें&amp;#160; से&amp;#160; कोई&amp;#160; भी&amp;#160; इतना&amp;#160; शक्तिशाली&amp;#160; नहीं&amp;#160; है, जितना&amp;#160; कि&amp;#160; हमसब&amp;#160; एक&amp;#160; होकर&amp;#160; होंगे । हमारे सँसाधनों, सोच, व्यय&amp;#160; किये&amp;#160; गये&amp;#160; समय&amp;#160; एवँ&amp;#160; श्रम&amp;#160; की&amp;#160; &lt;strong&gt;पहचान&amp;#160; होनी&amp;#160; अभी&amp;#160; बाकी&amp;#160; है&lt;/strong&gt;, तभी&amp;#160; आप हम&amp;#160; सुने&amp;#160; और&amp;#160; स्वीकारे&amp;#160; जायेंगे ।&lt;/font&gt;&amp;#160;&lt;em&gt;&lt;strong&gt;नमस्ते&lt;/strong&gt;&lt;/em&gt; &lt;em&gt;भले ही आप हम निट्ठल्लों को कुछ नहीं समझते&lt;/em&gt;&lt;/p&gt; &lt;/blockquote&gt;  &lt;div style=&quot;padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; float: none; padding-top: 0px&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:d18b8012-dd19-4954-bfc8-f5d4866b4521&quot; class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/c2amar&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;c2amar&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%a6%e0%a5%80+%e0%a4%ac%e0%a5%8d%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%b0&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;हिन्दी ब्लागर&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%ae%e0%a4%bf%e0%a4%b2&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;बिस्मिल&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%b9%e0%a4%ac%e0%a5%80%e0%a4%ac+%e0%a4%a4%e0%a4%a8%e0%a4%b5%e0%a5%80%e0%a4%b0&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;हबीब तनवीर&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Blogger&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Blogger&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%85%e0%a4%ad%e0%a4%bf%e0%a4%b5%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%bf&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;अभिव्यक्ति&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Hindi&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Hindi&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Dr.+Amar+Kumar&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Dr. Amar Kumar&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/06/blog-post.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgocR-l4ZO1OuyNrWxDtJgFoZFF-_bJ_qOVDu9t0sw0qsa_cikEybzehppsuB8IuFSmoxzRbpahNavERp2wdtGLweKrZIkWnYoGGCotKqflGgd5g1bU9cxZ79Goy4EJ7-FIschoi8iZcds6/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>10</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-9135891686751967558</guid><pubDate>Tue, 26 May 2009 22:42:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-05-27T04:38:53.052+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">अपठनीय</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">कमज़ोर सरकारों कीपरंपरा</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">कुछ तो है</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बात बेबाक</category><title>नँगे सच में नहायी बहना</title><description>&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;देख भाया, मेरी गलती नहीं हैं । आजकल हाल है कि, &lt;a href=&quot;http://binavajah.blogspot.com/2009/05/blog-post_26.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;’ जाते थे जापान .. पहुँच गये चीन समझ लेना ’&lt;/a&gt; तो पढ़ा ही होगा । अपनी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल एक मिन्नी सी,&amp;#160; सौम्य.. लजायी हुई पोस्ट देकर अपने जीवित होने की गवाही देनी पड़ी । बताइये भला.. मेरी एक चिरसँचित इच्छा पूरी हुई, &lt;strong&gt;&amp;#160;&lt;a href=&quot;http://deshbandhu.co.in/newsdetail/323/6/0&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;दादा विनायक सेन&lt;/a&gt;&lt;/strong&gt; रिहा हुये,&amp;#160; और&amp;#160; मैं&amp;#160; ब्लागर होकर&amp;#160; भी&amp;#160; अपनी खुशी की चीख-पुकार खुल कर न मचा सका । बिजली की आवाज़ाही, अफ़सरों का विदाई और स्वागत समारोह एटसेट्रा करीने से एक पोस्ट भी न लिखने दे रहा है !&lt;font color=&quot;#9a9a9a&quot;&gt;कुश जी,&amp;#160; अब तुम न कह देना, कि पहले ही कौन सा करीने से लिखा करते थे । मुझे यूँ छेड़ा ना करो, मैं ठहरा&amp;#160; रिटायर्ड नम्बर !&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;भूमिका इस करके बन रही है कि, आज बड़ी जोर की ठेलास लगी है.. और बुढ़ाई हुई बिजली नयी माशूका की तरियों कब दगा दे जाये कि अपुन कोई रिक्स लेने का नहीं ! लिहाज़ा, आज अपनी एक &lt;a href=&quot;http://c2amar.blogspot.com/2008/04/blog-post_08.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;पुरानी वाली&lt;/a&gt; को ही ठेल-ठाल कर सँतोष किये लेते हैं,का करें ?&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;strong&gt;&lt;a href=&quot;http://c2amar.blogspot.com/2008/04/blog-post_08.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;अप्रैल 2008, एक नया राष्ट्रीय मुद्दा उठा रहा, कि युवराज राहुल विदेशी साबुन से नहाते हैं :&lt;/a&gt;&lt;/strong&gt; और समय का फेर देखो कि पट्ठा खुदै धूल फ़ाँक के सबैका धूल चटाय दिहिस । हमरी हिरोईन तिलक तलवार तराज़ू के तिपहिये पर दिल्ली कूच करते करते रह गयीं !&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;पहले तो यह बतायें कि इस पोस्ट का उचित शीर्षक क्या होना चाहिये था , नंगे सच की माया या&amp;#160; माया का नंगा सच ? जो भी हो, आपके दिये शीर्षक में &lt;strong&gt;एकठो नंगा&lt;/strong&gt; अवश्य होना चाहिये, वरना आपको भी मज़ा नहीं आयेगा ! वैसे राजनीति पर कुछ कहने से मैं बचता हूँ । एक बार संविद वाले &lt;strong&gt;चौधरी के बहकावे में, मै &#39; अंग्रेज़ी हटाओ &#39; में कूद पड़ा था, अज़ब थ्रिल था, काले से साइनबोर्ड पोतने का !&lt;/strong&gt; लेकिन इस बात पर, मेरे बाबा ने अपने&amp;#160; इस चहेते पोते को धुन दिया था, पूरे समय उनके मुँह से इतना ही निकलता था, &amp;quot;भले खानदान के लड़के का बेट्चो &lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#8f8f8f&quot;&gt;( किसी विशेष संबोधन का संक्षिप्त उच्चारण, जो तब मुझे मालूम भी न था )&lt;/font&gt;&lt;/em&gt; पालिटिक्स&amp;#160; से&amp;#160; क्या मतलब ? &amp;quot; यह दूसरी बार पिटने का सौभाग्य था, पहली बार तो अपने नाम के पीछे लगे श्रीवास्तव जी&amp;#160; से पिंड छुड़ाने पर &lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#8f8f8f&quot;&gt;( वह कहानी, फिर कभी )&lt;/font&gt;&lt;/em&gt; तोड़ा गया था । खैर.... &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;आज़ तो सुबह से माथा सनसना रहा है, लगा कि बिना एक पोस्ट&amp;#160; ठेले काम नहीं चलेगा, सो ज़ल्दी से फ़ारिग हो कर &lt;strong&gt;&lt;em&gt;( अपने काम से )&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt; यहाँ पहुँच गया.. पोस्ट लिखने । पीछा करते हुये पंडिताइन&amp;#160; भी&amp;#160; आ&amp;#160; धमकीं, हाथ में छाछ का एक बड़ा गिलास (&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#8f8f8f&quot;&gt; मेरी दोपहर की खोराकी का लँच ! )&lt;/font&gt;&lt;/em&gt; ,तनिक व्यंग से मुस्कुराईं, &amp;quot; फिर यहाँऽ ऽ , जहाँ कोई आता जाता नहीं ? &amp;quot; इनका मतबल शायद पाठक सँख्या&amp;#160; से&amp;#160; ही&amp;#160; रहा होगा । बेइज़्ज़त कर लो भाई, अब क्या ज़वाब दूँ मैं तुम्हारे सवाल का ? अब थोड़ी थोड़ी ब्लागर बेशर्मी मुझमें भी आती जारही है, पाठकों का अकाल है, तो हुआ करे ! ज़ब भगवान ने ब्लागर पैदा किया है, तो पाठक भी वही देगा , तुमसे मतलब ?&amp;#160; आज़ तो लिख ही लेने दो कि..&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;सुश्री मायावती, नेहरू गाँधी के बाथरूम में साबुन निहारती मिलीं, किस हाल में मिली होंगी&amp;#160; यह न पूछो ! कभी कभी यह पंडिताइन बहुत तल्ख़ हो जाती हैं,&#39; जूता खाओगे, पागल आदमी !&#39; और यहाँ से टल लीं । मुझको राहुल बेटवा या मायावती बहन से क्या लेना देना, लेकिन यह लोकतंत्र का तीसरा खंबा मायावती की मायावी माया में टेढ़ा हुआ जा रहा है, इसको थोड़ा अपनी औकात भर टेक तो लूँ, तुम जाओ अपना काम करो । &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;मुझसे यानि एक आम आदमी से क्या मतलब, कि राहुल अपने घर में इंपीरियल लेदर से नहाते हैं या रेहू मट्टी से ? चलो हटाओ, बात ख़त्म करो, हमको इसी से क्या मतलब कि वह नहाते भी हैं या नहीं ? हुँह, खुशबूदार साबुन बनाम लोकतंत्र ! लोकतंत्र ? मुझे तो लोकतंत्र का मुरब्बा देख , वैसे भी मितली आती है, किंन्तु ... !&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;सुश्री मायावती का सार्वज़निक बयान कि &amp;quot; यह राजकुमार, दिल्ली लौटकर &lt;strong&gt;&lt;em&gt;ख़सबूदार&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt; &lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#757575&quot;&gt;( &lt;strong&gt;मायावती&lt;/strong&gt; &lt;strong&gt;उच्चारण !!&lt;/strong&gt; )&lt;/font&gt; &lt;/em&gt;&lt;strong&gt;&lt;em&gt;साबुन&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt;&amp;#160; से नहाता है ।&amp;quot; मेरी सहज़ बुद्धि तो यही कहती है, बिना राहुल के बाथरूम तक गये ,&lt;strong&gt; ई सबुनवा की ख़सबू उनको कहाँ नसीब होय गयी ?&lt;/strong&gt; अच्छा चलो, कम से कम उहौ तो राहुल से सीख लें कि दिन भर राजनीति के कीचड़ में लोटने के बाद, कउनो मनई खसबू से मन ताज़ा करत है, तो पब्लिकिया का ई सब बतावे से फ़ायदा&amp;#160; ? दलितन का तुमहू पटियाये लिहो, तो वहू कोसिस कर रहें हैं ! दलित कउन अहिं, हम तो आज़ तलक नही जाना । अगर उई इनके खोज मा घरै-घर डोल रहे है, तौ का बेज़ा है ? &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;माफ़ करना बहिन जी,&lt;strong&gt; चुनाव के बूचड़खाने में दलित तो वह खँस्सीं है, वह पाठा है, कि जो मौके पर गिरा ले जाय, उसी की चाँदी !&lt;/strong&gt; दोनों लोग बराबर से पत्ती, घास दिखाये रहो । जिसका ज़्यादा सब्ज़ होगा, ई दलित कैटेगरी का वोट तो उधर ही लपकेगा । ई साबुन-तेल तो आप अपने लिये सहेज कर रखो, आगे काम आयेगा । अब आप जानो कि&amp;#160; न जानि काहे..&amp;#160;&amp;#160; चुनाव पर्व&amp;#160; के&amp;#160; नहान&amp;#160; के फलादेश पर बज्रपात कईसे हुई गवा .. रामा रामा ग़ज़ब हुई गवा .. चोप्प, मैं कहता कहती हूँ चौप्प ! &lt;strong&gt;चुप हो जाओ, चुप्पै से !&lt;/strong&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;   &lt;p&gt;लो भाई, चुपाये गये.. अब तो राम का नाम लेना भी गुनाह हो गया । लोग&amp;#160; सँदिग्ध निगाह से&amp;#160; घूरते हैं, कि&amp;#160; अडवाणी&amp;#160; से अब भी सबक&amp;#160; नहीं ले रहे.. राम&amp;#160; का&amp;#160; नाम&amp;#160; बदनाम&amp;#160; करके&amp;#160; ऊहौ&amp;#160; कुँकुँआत&amp;#160; फिर&amp;#160; रहे&amp;#160; हैं,&amp;#160; फिर&amp;#160; तो&amp;#160; कोई&amp;#160; रावणै&amp;#160; इनका&amp;#160; भला&amp;#160; करी..&amp;#160;&amp;#160; &lt;br /&gt;करै दो यार,&amp;#160; भलाई&amp;#160; के&amp;#160; नाम&amp;#160; पर&amp;#160; कोई&amp;#160; तो कुछ&amp;#160; करे, भले&amp;#160; ही&amp;#160; वह प्रजापालक रावण होय ! सीताहरण तो अबहूँ होबै करी ..&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; जस नेता रहियें तौ सीताहरण होबै करी.. चुनविया का हुईहै अगन परिच्छा तौ धमक हुईबे करी…       &lt;br /&gt;एक कुँवारी-एक कुँवारा ! बेकार में, काहे को खुल्लमखुल्ला तकरार करती हो ? भले मोस्ट हैंडसम के गालों के गड्ढे में आप डूब उतरा रही हो, लेकिन पब्लिकिया को बख़्स दो । सीधे मतलब की बात पर आओ, हम यानि पब्लिक मदद को हाज़िर हैं ।&amp;#160; अब दुनिया&amp;#160; भर&amp;#160; का&amp;#160; ई साबुन - तौलिया वाला…&amp;#160; टिराँस्फ़र पोस्टिंग की नँगी माया .. काहे ?      &lt;br /&gt;सोनिया बुआ, उधर अलग बड़बड़ा रही हैं, &amp;quot; मेरा लउँडा होआ बैडनेम, नैस्सीबन तिरे लीये...ऽ ..ऽ&lt;/p&gt;    &lt;p&gt;&amp;#160;&lt;/p&gt;    &lt;div style=&quot;padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; float: none; padding-top: 0px&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:ba8d86a8-0f0b-4ea6-8e3e-134aa4661c8b&quot; class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Political+Anarchy&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Political Anarchy&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Dalit&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Dalit&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Indian+General+Election&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Indian General Election&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Mayawati&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Mayawati&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Tantrums+of+Aftermath&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Tantrums of Aftermath&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Hindi+Blog&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Hindi Blog&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;&lt;/p&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/05/blog-post_27.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><thr:total>19</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-3424990873571152817</guid><pubDate>Sun, 17 May 2009 19:05:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-05-18T03:28:06.211+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">आब्ज़ेक्शन मी लार्ड</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">कुछ तो है</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">संदर्भहीन व्याख्यायें</category><title>जीवनदास को कड़ी से कड़ी सजा दी जाये</title><description>&lt;p&gt;बड़े दिनों से यह “ चलता रहे.. चलता रहे.. “ देख व सुन रहा हूँ । यूँ तो मैं &lt;a href=&quot;http://binavajah.blogspot.com/2009/05/he-is-obselete-who-is-he.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;’ निट्ठल्ला इफ़ेक्ट ’&lt;/a&gt; से इतना पका हुआ हूँ कि, टेलीविज़न बहुत ही कम देखता हूँ । एक म्यान में दो तलवारें वैसे भी कहाँ रह पाती हैं ? अरे, निगोड़ी ब्लागिंग को शामिल न भी करें, तो भी आप यही समझ लीजिये कि “ बुद्धू को कहाँ बुद्धू बक्सो सों काम ? “ फिर भी.. कुछ तो है,&amp;#160; कि आज&amp;#160; एक बेकार सा मुद्दा पकड़ कर बैठा हूँ, कि&amp;#160; न्याय मिले&amp;#160; &lt;br /&gt;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; &lt;font color=&quot;#aa2bd5&quot;&gt;&amp;#160; &lt;/font&gt;&lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#aa2bd5&quot;&gt;पहले तो आप इन जीवनदास से मिलिये&lt;/font&gt;      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; &lt;object width=&quot;500&quot; height=&quot;405&quot;&gt;&lt;param name=&quot;movie&quot; value=&quot;http://www.youtube-nocookie.com/v/k9gcwyzr91c&amp;amp;hl=en&amp;amp;fs=1&amp;amp;rel=0&amp;amp;border=1&quot;&gt;&lt;param name=&quot;allowFullScreen&quot; value=&quot;true&quot;&gt;&lt;param name=&quot;allowscriptaccess&quot; value=&quot;always&quot;&gt;&lt;embed src=&quot;http://www.youtube-nocookie.com/v/k9gcwyzr91c&amp;amp;hl=en&amp;amp;fs=1&amp;amp;rel=0&amp;amp;border=1&quot; type=&quot;application/x-shockwave-flash&quot; allowscriptaccess=&quot;always&quot; allowfullscreen=&quot;true&quot; width=&quot;500&quot; height=&quot;405&quot;&gt;&lt;/embed&gt;&lt;/object&gt;    &lt;br /&gt;मिल भये… क्या समझे ? अभी फ़िलवक़्त मुझे प्लाई-व्लाई तो लेनी नहीं है, सो मैं तो यही समझ रहा हूँ, कि भारतीय न्याय-वयवस्था इतनी धीमी और लचर है कि, “ चलता रहे… चलता रहे…. ! “ है कि, नहीं ?    &lt;br /&gt;    &lt;br /&gt;इस मख़ौल की पराकाष्ठा तो यह है कि, ’ बैल से दँगा करवाने के ज़ुर्म में .. ’ जैसा आरोप और बैल को अदालत में तलब किये जाने की माँग, जैसा अदालत का बेहूदा कैरीकेचर खींचा गया है, सो तो अलग !    &lt;br /&gt;    &lt;br /&gt;आदरणीय &lt;a href=&quot;http://teesarakhamba.blogspot.com/2009/05/blog-post_17.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;दिनेशराय द्विवेदी जी&lt;/a&gt; से आग्रह है कि, या तो वह जीवनदास को न सही, पर उसके आरोपी &lt;strong&gt;बैल को ही&lt;/strong&gt; कड़ी से कड़ी सज़ा दिलवायें, और इस नाटक का पट्टाक्षेप करवाने का प्रयास तो कर ही लें !&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;मुआ ग्रीनवुड प्लाई न हो गया, राम-मँदिर का मुद्दा हो गया ! मुझे तो इसमें आख़िरी बार बोले जाने वाला ’ चलता रहे.. चलता रहे ’ में पिटे हुये अडवाणी की आवाज़ सुनायी दे रही है.. या यह&amp;#160; मेरा भ्रम है ?   &lt;br /&gt;&lt;/p&gt;  &lt;div style=&quot;padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; float: none; padding-top: 0px&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:b8373469-b9f0-4fe6-b684-67d5f13d70f2&quot; class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%95%e0%a5%9c%e0%a5%80+%e0%a4%b8%e0%a5%87+%e0%a4%95%e0%a5%9c%e0%a5%80+%e0%a4%b8%e0%a4%9c%e0%a4%be&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;कड़ी से कड़ी सजा&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Greenwood+Ply&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Greenwood Ply&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%9a%e0%a4%b2%e0%a4%a4%e0%a4%be+%e0%a4%b0%e0%a4%b9%e0%a5%87&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;चलता रहे&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Indian+Judiciary&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Indian Judiciary&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%9c%e0%a5%80%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b8&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;जीवनदास&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;  </description><enclosure type='text/html' url='http://teesarakhamba.blogspot.com/2009/05/blog-post_17.html' length='0'/><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><thr:total>6</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-486559355753262192</guid><pubDate>Tue, 12 May 2009 01:04:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-05-13T01:45:17.450+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">धूप छाँव</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बेतक़ल्लुफ़</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">संगी साथी</category><title>अक्षरश:</title><description>&lt;p&gt;कई दिनों से ब्लागर पर सक्रिय नहीं हूं। इधर-उधर एक इक्का-दुक्का &lt;a href=&quot;http://shabdavali.blogspot.com/2009/05/blog-post_10.html#comments&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;टिप्पणी ठोकी&lt;/a&gt; व &amp;quot; धन्यवाद&amp;#160; देने की आवश्यकता नहीं है &amp;quot; की औपचारिकता निभाते हुए &lt;a href=&quot;http://nanhaman.blogspot.com/&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;नन्हा मन का टेम्पलेट&lt;/a&gt; तैयार कर दिया ।&amp;#160; अब क्या&amp;#160; करें ?&amp;#160;&amp;#160; नये-नये इन्सटाल किये &lt;a href=&quot;http://www.microsoft.com/windows/windows-7/default.aspx&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;विन्डो – 7&lt;/a&gt;&amp;#160; के नयनाभिराम विशिष्टतायें व नयी सहूलियते संगाल रहा हूं । इधर दो दिनों से पूरी तैय्यारी से आ बैठता, कि&lt;font color=&quot;#0000d2&quot;&gt; &lt;strong&gt;1857&lt;/strong&gt;&lt;/font&gt; के ग़दर की सालगिरह ( &lt;font color=&quot;#0000d2&quot;&gt;10 और 11 मई&lt;/font&gt; )&amp;#160; पर पोस्ट लिखूँ&amp;#160; । पर ऎसा है न कि,&amp;#160; अभी हम अपने&amp;#160; शैशव को भरपूर जी तो लें..&amp;#160; फिर क्राँति व्राँति की बातें बाद में देखी&amp;#160; जायेगी । सो कोई भी पोस्ट लिखना ही टाल गया, क्या पता यह भी ’ बिस्मिल ’ की तरह उपेक्षित हो जायें, और कोई इन्हें भी &amp;quot; पीछा करो Follow Me का सँदेश डाल जाय, सो नहीं लिखा ।&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgRAh_MvkQIQwwMZnvyOU2uP6mdwG6X7ck6V_vfmwQbF590yaxEFDNhDK04rKabqVrx1BuJuPA86HH6F5mnPF5wSZdWapmHMzZ9HsdqgLPlvygdTd46Sw2vYkOUnU-6eDBRerF1FIUiahh/s1600-h/1857amar37.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-right-width: 0px; margin: 5px auto; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px&quot; title=&quot;1857-amar&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;1857-amar&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_n88Lo3fIrZ5FGCKZsUO2KbIqClDxvEQkbnRGIDoCQBlzgSwyTyGZkEcx6Dt8zw_9Lj8RRRK-E9PPu8bL1loQVdv4uU9-4ZdN04mwnymunyHNmJI1pn04-QH4VcxxVl2LD1oDNE9wkIY5/?imgmax=800&quot; width=&quot;553&quot; height=&quot;413&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;आज की &lt;a href=&quot;http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/05/blog-post_11.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;चिटठा चर्या&lt;/a&gt; देखी । अनूप जी की चर्चा अधिक सामयिक होती है । ग़ुँज़ाइश होने के बावज़ूद भी आज की चर्चा पर मैंने कोई टिप्पणी न दी, क्योंकि आज &lt;a href=&quot;http://www.backtype.com/vinay/comment/66273997&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;मेरे पास कोई अनूकूल लिंक&lt;/a&gt; ही न था । मुझमें साहित्यिक समझ हो न हो, ब्लागरीय समझ बिल्कुल नहीं है । लगातार एक के बाद एक फ़्लाप पोस्ट देने के बाद लगता है कि ज्ञान स्कूल आफ ब्लागर्स में प्रवेश लेना ही पड़ेगा । यदि ताउ फैकल्टी&amp;#160; के दिग्गज़ या प्रोफेसर&amp;#160; फुरसतिया&amp;#160; पढ़ाय देंय, तो बेड़ा पार समझो ! तब&amp;#160; शायद उपकुलपति&amp;#160; समीर लाल जी का दिया एक सार्टिफिकेट&amp;#160; इहां साइडबार में&amp;#160; चिपकाने को मिल सकेगा । यदि उसके बाद,&amp;#160; बात बन जाये तो कुलपति के रिक्त पद पर मैं स्वयं ही काबिज़ हो लूंगा । मेरे फतवे ब्लागर पर वेद वाक्य माने जायेंगे । तब मेरी लिखाई के अजदकायमान होने पर भी&amp;#160; लोगबाग अश अश कर उठेंगे । &lt;a href=&quot;http://c2amar.blogspot.com/2009/05/blog-post_07.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;अप्रासंगिक स्वगत कथन&lt;/a&gt; में से तब &lt;strong&gt;&lt;font size=&quot;4&quot;&gt;अ&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt; हट जाया करेगा । अंग्रेजियत के नियमों के प्रति आदर भाव व हिन्दी वाले के आग्रह मात्र पर तू-तू&amp;#160;&amp;#160; मैं-मै&amp;#160; होने की&amp;#160; व &lt;a href=&quot;http://c2amar.blogspot.com/2009/04/blog-post.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;चर्चा पर लिंक देने के सुझाव पर&lt;/a&gt; कोई विचार कर सकेगा ।&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiR2Cn2_pzUaXR2QfuDPDkvL-aopAw_xLsbq5C82Om9gqNuNE71Jd8FMFQ67DQadlZWsgceJpXbNqrKOk4ZP3T1zgBJ1rFg_QEL8SXw4KF0gzYT4m8oqyIZQmrVvuPQgN1pvrqH3bLR4zUw/s1600-h/motherthrpotraitpoem24.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto&quot; title=&quot;mother-thr potrait poem&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;mother-thr potrait poem&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0ZgLrHJyQnP2rlpYajmQDhkkfoPYUjaVNk0k7MAPT70tl9nuFLfibzgpbOd22Fh2CdVeDHXC0WczS27Ym_IOvpqDwoxPtl9AOyKgjSBgCAG-5fO48UAZKIVw-3xxKshisjZkSaA2crCZr/?imgmax=800&quot; width=&quot;549&quot; height=&quot;545&quot; /&gt;&lt;/a&gt; चुनाँचें, माता पर एक पोस्ट लिखने का मन बना कर बैठा हूं । तो.. कम्प्यूटर जी पर अपनी निगाहें लाक किये हुए, मेरा मनन चल रहा है, कि मातृ, माता, मां, अम्मा जैसे किसी विषय पर एक पोस्ट लिखना है, जो मेरे मातृप्रेम की सनद रहेगा । पर,&amp;#160; कैसे लिखूंगा ? हम्म, क्या लिखा जाय... मेरा यह कलम सप्रयास&amp;#160; तो &lt;a href=&quot;http://uchcharan.blogspot.com/2009/03/blog-post_22.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;कविता की गहराई&lt;/a&gt; तक उतरने से रहा,&amp;#160;&amp;#160; ठठेरी,&amp;#160; चितेरी, लुटेरी&amp;#160; जैसे काफिये भिड़ाये जाने&amp;#160; तक ही&amp;#160; बात नहीं है&amp;#160; । क्योंकि&amp;#160; मुझे तो भाई, यह ग्राह्य न हुआ कि समाज के एक नकारात्मक खल तत्व,&amp;#160; लुटेरे&amp;#160; से माता जी को नवाजने&amp;#160; की&amp;#160; नौबत तक कोई रचना दी जाय,&amp;#160; &lt;a href=&quot;http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/04/blog-post_14.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;समीर जी क्षमा करें&lt;/a&gt; । फिर ?&amp;#160; फिर, एक लेख तैयार करें &lt;font color=&quot;#800000&quot;&gt;&amp;quot; मातृ दिवस पर समकालीन भारत के युवावर्ग का उफनता ज्वार &amp;quot;,&lt;/font&gt; शायद&amp;#160; यह ठीक रहेगा ? नहीं, यह ठीक न होगा, कोई अकेली &lt;a href=&quot;http://kvachaknavee.spaces.live.com/&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;डा0 वाचक्नवी&lt;/a&gt;&amp;#160; मेरी&amp;#160; पाठक थोड़े ही हैं ? फिर...बचपने के दिनों में घूम फिर कर माँ को ही गोहरा लिया&amp;#160; जाय ? लेकिन मेरा बचपन तो अभी गया ही नहीं है । फिर., एक मारात्मक प्रभाव वाली एक तिकड़मी इमेज लगा कर और माँ तुझे नमन का कैप्शन लगा कर ही इतिश्री कर ली जाय ? लेकिन यह स्वयं मुझे ही गवारा नहीं, तो भला आप क्यों बर्दाश्त करें ? की बोर्ड पर मेरी उंगली घिसाई जाया हो जाय, वह अलग !&amp;#160;&amp;#160; इसी असमँजस में डूब&amp;#160; और उतरा रहा हूँ,&amp;#160;&amp;#160; कि ?&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&amp;#160;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4QU04_nYOSvDeYKNm9dQY1bGCT1C6Lv7t27HmOmV1mrZF5RKT7aQcYcUYkLnGGJuwFgDw61G9EPN4qEjYi9fMlhlZCmZXHYN1MW0noCRdroa7dQTcuJHfnjQGHChrrx8NJOVH5Ia-aXJo/s1600-h/ammabachcha6.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-right-width: 0px; margin: 5px 15px 0px 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px&quot; title=&quot;amma-bachcha&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;amma-bachcha&quot; align=&quot;left&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgs0bv3hMtsrOeYtK9U4Jft-oLXoFiAjFTXh1AygCcM2oS39OuOYj7c_b6p-AiKYdKOurlZivqnNVpiCuRsYtwLJXsOQSHuNyJiHryLk4XXgyeKzHXoEwXDvgoSZzS7Fx2qoKEuZETcelHz/?imgmax=800&quot; width=&quot;94&quot; height=&quot;77&quot; /&gt;&lt;/a&gt; सहसा&amp;#160; आना... एक आवाज का,&lt;strong&gt; &amp;quot; ऎई तुम कुछ कर रहे हो क्याऽऽ ? &amp;quot;      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;&lt;font color=&quot;#606060&quot;&gt;मैं चुप रहा । भला&amp;#160; इन्हें क्या जवाब दें, यह तो पहले से ही पंडिताइन हैं ।      &lt;br /&gt;चुप रहने में भलाई हो या न हो, इस समय मुंह में बाबा श्री 120, कुमारी रजनी के संग कल्लोल&amp;#160; कर रहे हैं,&amp;#160;&amp;#160; और&amp;#160;&amp;#160; इनके एकाकार होते&amp;#160; जाने&amp;#160; का रस जैसे मन में घुलता सा&amp;#160; जा रहा है । यह&amp;#160; तुम क्या जानो..&lt;/font&gt; इतने में दुबारा,&lt;strong&gt; “&amp;#160; ऐईऽऽ , ऎई तुम कुछ कर रहे हो क्याऽऽ ? &amp;quot;&lt;/strong&gt;&amp;#160; &lt;br /&gt;&lt;font color=&quot;#626262&quot;&gt;इस बार का संबोधन पंचम स्वर में आरोह के साथ सम पर स्थिर है !      &lt;br /&gt;इन्हें क्या जवाब दें ? प्लास्टर बंधे हाथ को देख कर भी कोई पूछे कि फ्रैक्चर हो गया क्या ? आप क्या कहेंगे....शौकिया बाँध रखा है, या घर में बासन मांजने से छुट्टी पाने का यही बेहतर जरिया बचा है, या ऐसा ही कुछ न ?&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; ऎंवेंईं जिज्ञासाओं के ऎंवेंईं समाधान.. का करियेगा ई अपुन का इन्डिया है !       &lt;br /&gt;&lt;/font&gt;&lt;strong&gt;सुनो तो.. तुमसे एक बात कहनी थी !&lt;/strong&gt; &lt;font color=&quot;#626262&quot;&gt;लो जी, बिना पूछे तो दस बातें सुना डालती है, आज अनुमति मांगने का कारण ? मन मेरा आशँकित हो गया । यदि हाँ बोलू, तो पंडितइनिया मारेगी, ना बोलूं तो भी पंडितइनिया ही मारेगी । बीच का रास्ता यदि कुछ है, तो क्या है ?      &lt;br /&gt;&lt;/font&gt;सो,&lt;strong&gt; कुछ न बोल अपनी गरदन एक विशेष कोण पर आगे पीछे कर अपनी मजबूर सहमति दे दी ।&lt;/strong&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;वह बोलीं, &lt;strong&gt;&amp;quot; न हो तो, अम्मा को आगरा न छोड़ आओ ?&lt;/strong&gt;&lt;font color=&quot;#626262&quot;&gt;&lt;strong&gt; &amp;quot; &lt;font color=&quot;#a6a6a6&quot;&gt;सदके जावाँ व्याकरणाचार्य, न पश्यन्ति प्रश्नम तदोपि न जानामि कथोपकथन !&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt; यह प्रश्न है, या व्यक्तव्य है, याकि अपरोक्ष सुझाव है ? अहो, तो यह है, फ़्यूचर इनडिफ़ेनिट इन्ट्रोगेटिव सेन्टेन्स !&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; बहुत छकाये रहे हमका&amp;#160; पी सी रेन साहब के गिरामर ने ।&lt;strong&gt; &lt;/strong&gt;&lt;/font&gt;&lt;strong&gt;मैं&amp;#160; सचेत&amp;#160; होता हूँ,&lt;/strong&gt; किन्तु&amp;#160; बाबा-रजनी&amp;#160; युगल को&amp;#160; मुख&amp;#160; से बहिस्खलन&amp;#160; करवाना ही पड़ेगा । उनके असमय बहिर्गमन से थोड़ी कोफ़्त होती है,&amp;#160; मुखारविन्द खाली करके उन्मुख होता हूँ,&lt;strong&gt; &amp;quot; क्यों भला ? &amp;quot;&lt;/strong&gt;     &lt;br /&gt;इस बार निराधार चिन्ता की एक ज़ायज़ आतुरता थी     &lt;br /&gt;&amp;quot; ऎसे ही.. &lt;strong&gt;उनका, तुम्हारा, हम सबका कुछ बदलाव हो जाता । &amp;quot;      &lt;br /&gt;&amp;quot; छोड़ आओ बोले तो,आगरा छोड़ आओ, जँगल में छोड़ आओ, यानि कि कहीं भी, बस इन्हें छोड़ आओ&lt;/strong&gt;&amp;#160; &lt;strong&gt;|&amp;#160; &lt;/strong&gt;रूँआसी हो उठीं, &lt;strong&gt;&amp;quot; बेकार बातें मत करो । मैंनें जँगल कब कहा, आगरा में चुन्नु भैय्या रहते हैं, उनके पास तीन चार महीने रह आतीं ।&amp;quot;      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;मैं असँयतली भी सँयत बना रहा,&lt;strong&gt; &amp;quot; यानि कि, मैं माता श्री को नगरी नगरी द्वारे द्वारे बाँटता फिरूँ ? &amp;quot;      &lt;br /&gt;&amp;quot; बात मत बढ़ाओ, नगरी नगरी द्वारे द्वारे बाँटने की क्या बात है ? वहाँ आगरा में तुम्महारा भाई रहता है । &amp;quot;&lt;/strong&gt;&amp;#160;&amp;#160; इस बार खाँटी झनझनौआ अँदाज रहा, मैं भाँप गया, अब ऎसी तैसी होने वाली है ।     &lt;br /&gt;सो वन स्टेप बैकवार्ड होता भया । &lt;strong&gt;&amp;quot; अरे यार, मैंनें मना कब किया है, वह सहर्ष आकर ले जाये न ! &amp;quot;      &lt;br /&gt;&amp;quot; उनको तो फ़ुरसत ही नहीं है, एक फोन तक तो करते नहीं, कि अम्मा कैसी हैं ! &amp;quot;       &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;उछल पड़ा&amp;#160; मैं, &lt;strong&gt;&amp;quot; बस यही तो बात है, माँ तो आग्रह से या हक़ जता कर, लड़ झगड़ कर हासिल की जाती है, और उन्हें समय नहीं है ! &amp;quot; &lt;/strong&gt;एक असहज चुप्पी... मात्र सत्रह सेकेन्ड काटना असह्य हो गया,     &lt;br /&gt;मैंने निर्णय दिया&lt;strong&gt;, &amp;quot; अमर कुमार अम्मा को कहीं छोड़ने नहीं जा रहे ! &amp;quot;      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;वह कातर हो उठीं, &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#a6a6a6&quot;&gt;&amp;quot; मैं तो तुम्हारे लिये कह रही हूँ । अभी मार्च में तो उनकी लैट्रीन तक तुमको साफ़ करनी पड़ी,&amp;#160; तुमको यह सब करते मुझसे नहीं देखा जाता । &amp;quot;        &lt;br /&gt;&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;मैं अब बोर हो रहा हूँ,&lt;strong&gt; &amp;quot; क्यों,&amp;#160; क्यों नहीं देखा जाता ?      &lt;br /&gt;&lt;font color=&quot;#a6a6a6&quot;&gt;कभी उन्होंनें भी तो खाना पीना छोड़ कर मुझे साफ किया होगा,&lt;/font&gt; तब आपने क्यों नहीं देखा ? &amp;quot;&amp;#160; &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;अब शायद अश्रुप्रपात होने वाला है, क्योंकि इसके पहले का उनका रौद्र गर्जन आरँभ हो चुका है,     &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;&amp;quot; ज्यादा बनो मत !&lt;/strong&gt; &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#a6a6a6&quot;&gt;आख़िर कब तक यूँ रात रात भर जागते रहोगे,&amp;#160; कुछ अपनी भी सोचो ?&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;&amp;#160;&amp;#160; एक नर्स ही रख लो । &amp;quot; आह, यह तो स्वयँ ही मुझे कोमल स्थल पर ले आयीं,&lt;strong&gt; &amp;quot; अच्छा जी.. मैं अपनी सोचूँ ?&lt;/strong&gt; तुमने अपनी सोचा था जब जाड़ों की रात में उठ कर बाबू और मुनमुन को दूध गर्म करके देती थीं ।     &lt;br /&gt;उनका गीला बिस्तर बदलती थीं ! तब क्यों न कहा कि एक दाई रख दो । &amp;quot;&amp;#160; &lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZNwgLOdkzDXbNd11on7Nyp-rNuOwNLuEp8mmWNjXxrFY_rg8AGdEd0G1g1G1HZ3IcAcvmMoNoZLGdA1g-LBxeZXbX6hv2Bq_zFf6egiOXWJdcFtV7NrRfCyfqwMOcmK_J27EA_8_tdv6U/s1600-h/Amma-11.5.09%5B4%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto&quot; title=&quot;Amma-11.5.09&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;Amma-11.5.09&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhkB5LQEBdakpjEOTjZnL1QeobIop-OzJKbBH36pO4At16aGhk45G9Pme1lo6OkI0e-alNRzJ5IKNmL_I77huBQ1WQq0uaGOVnwKnh-P0jl0Lp3WnD5_HfOmo5piO3Vqqt-f-e2vcbhuiwS/?imgmax=800&quot; width=&quot;523&quot; height=&quot;423&quot; /&gt;&lt;/a&gt; तीर निशाने पर पड़ा, क्योंकि अब किंचित इतराहट थी, &amp;quot; वह तो मेरा कर्तव्य था । &amp;quot;&amp;#160; &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;अब लगे हाथ एक और पातालभेदी बाण चला तो दे, अमर बाबू !      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;&amp;quot; तो यह भी तो मेरा कर्तव्य है । इन्होंने भी तो माघ पूस में मेरे लिये यही सब तो किया होगा ! तब तो बिजली भी न थी,&amp;#160; कि फट्ट रोशनी हो गयी, और बुरादे की चिमनी खास तौर पर गर्म&amp;#160; रखना&amp;#160; पड़ता था वह&amp;#160; अलग । &amp;quot; सुबह छः बजे उठ कर कोयलें की धुँआती अँगीठी भरना तो&amp;#160; सोच भी न सकतीं हैं ।&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;strong&gt;न तुम मानो ना हम..&lt;/strong&gt; ई लेयो, चलो कुट्टी हो गयी ! अपनी तो दो तीन दिनाँ की छुट्टी हो गयी । लेकिन ना, वह ज़नानी ही क्या, जो अपने मियाँ को चैन के चार दिन नसीब होने दे ? इस समय रात्रि के ग्यारह बज कर छियानबे मिनट हुये हैं,&amp;#160; यानि&amp;#160; कि घड़ी में&amp;#160; तीन का&amp;#160; समकोण बनने&amp;#160; में अभी&amp;#160; दो घँटे&amp;#160; से&amp;#160; कुछ ज्यादा ही मिनट शेष है । यह बिस्तरा-कक्ष से प्रकटती हैं, झाँकने की नौबत ही नहीं, अम्मा की तस्वीर दूर से ही चमक रही&amp;#160; है । &amp;quot; यह क्या…&amp;#160; मदर्स डे पर अब लिख रहे हो, बुद्धू कहीं के ? &lt;strong&gt;समीर लाला ठीक ही कहते हैं, रहे तुम वही के वही ..      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;अमाँ यार, यह सब लटका मैं नहीं जानता । सबै भूमि गोपाल की.. हमरे लिये तो सभी दिन हेन तेन लालटेन डे है । वह कौतुक से हँस पड़ती हैं, &amp;quot;&amp;#160; वाह,&amp;#160; लालटेन डे ! &amp;quot; मुझे आगे बढ़ने का हौसला मिलता है, &amp;quot; और क्या ? जरा तुम ही बताओ, आज बरसात हुयी है, मौसम बड़ा अच्छा हो रहा है । कम्प्यूटर स्क्रीन से छन कर आती रोशनी में तुम भी अच्छी लग रही हो.. अब कहो तो, अमर कुमार बईठ के फ़रवरी वाले वैलेन्टाइन बाबा की राह जोहें ? इसपर इनकी सारी विद्वता धरी रह गयी, कुछ कन्फ़्यूज़ हो गयीं, &amp;quot; हाँ, बात तो तुम सही कह रहे हो.. &amp;quot; और..&amp;#160;&amp;#160; और..&amp;#160;&amp;#160; और क्या &lt;strong&gt;&lt;font size=&quot;4&quot;&gt;?&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;&amp;#160;&amp;#160; और हममें फिर से मिल्ली हो गयी । &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;सब ठीक ठाक हो गया, हम सुख से रहने लगे ।    &lt;br /&gt;अम्मा भी जी रही हैं, बस जिये जा रहीं हैं,&amp;#160;&amp;#160; कुछ&amp;#160; अनमनी सी !&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&amp;#160;&lt;/p&gt;  &lt;div style=&quot;padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; float: none; padding-top: 0px&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:836b6e26-b1af-4011-9f0f-1715dfa6abc6&quot; class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%85%e0%a4%ae%e0%a5%8d%e0%a4%ae%e0%a4%be+%e0%a4%95%e0%a5%80+%e0%a4%a4%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a5%80%e0%a4%b0&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;अम्मा की तस्वीर&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Mother&#39;s+Day&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Mother&#39;s Day&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Blogger&quot; 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target=&quot;_blank&quot;&gt;आदत के मुताबिक आज भी पलटाया तो ..&lt;/a&gt;&amp;#160; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&amp;quot; उपस्थित श्रीमान /&amp;#160; मैडम&amp;#160; साथ एक बेहतरीन लिंक लेकर अनूप जी को पाता हूँ, ” &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;जो कि स्वयँ में चर्चाकार का ही टैगलाइन है, &lt;a href=&quot;http://meenakshi-meenu.blogspot.com/&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;और बहुत अच्छा है&lt;/a&gt;&amp;#160;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;बड़ा भला लग रहा है, चुहल सूझ रही है..कि   &lt;br /&gt;एक पोस्ट लिखूँ, &amp;quot; आओ सखि, लिंक मिलि बाँटैं &amp;quot;     &lt;br /&gt;कौन जानता है, कब समय मिल पाय...     &lt;br /&gt;अभी ही लिख लेता.. लेकिन सिंह साहब की पत्नी नीरू किसी काम से पँडिताइन से मिलने आयीं हैं,    &lt;br /&gt;और जम कर बैठ गयीं, क्योंकि &lt;a href=&quot;http://binavajah.blogspot.com/2008/10/blog-post_20.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;उनके पास टैम नहीं है&lt;/a&gt;&amp;#160; (यदि&amp;#160; होता.. तो शायद एक अदद बिस्तर और डोलची के संग पधारतीं ! ) अपना प्रिय विषय ’ रिशि का अँग्रेज़ी स्कूल ’ पर सराहना भरे अँदाज में बिसूर रहीं हैं ..&amp;quot; देखिये न भाभी .. इत्ती गर्मी में सभी स्कूल बंद हैं, इनलोगों ने बँद न किया,    &lt;br /&gt;और तो और, ज़ूते साफ़ नहीं थे, तो आज स्कूल से लौटा भी दिया ! &amp;quot;     &lt;br /&gt;पँडिताइन की टिप्पणी भी सुन लीजिये, &amp;quot; सही बात है..    &lt;br /&gt;डिसिप्लिन तो होना चाहिये, न ?&amp;#160; भला कब तक&amp;#160; बच्चे बने रहेंगे ?    &lt;br /&gt;अँग्रेज़ी स्कूल है, कोई मज़ाक बात थोड़े है ? &amp;quot;     &lt;br /&gt;मेरा मन कर रहा, मैं इन ज़नानियों के बीच टपक पड़ूँ..    &lt;br /&gt;मुझे भी तो मऊ नाथ भँजन वाले स्कूल में बैठने के लिये अपने संग टाट-पट्टी ले जानी होती थी ! &amp;quot;    &lt;br /&gt;पर, दोपहर के बारह बजने को हैं । मुझे भी क्लिनिक जाने की देर हो रही है,    &lt;br /&gt;अपने मरीज़ों की मैंने इसी समय की आदत डाल रखी है ! &amp;quot;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&amp;#160;&lt;/p&gt;  &lt;div style=&quot;padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; float: none; padding-top: 0px&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:8d4b845c-0d60-4fa0-8439-a04764987d8a&quot; class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%9a%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%a0%e0%a4%be%e0%a4%9a%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9a%e0%a4%be&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;चिट्ठाचर्चा&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%aa%e0%a4%a3%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%81&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;टिप्पणियाँ&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%85%e0%a4%a8%e0%a5%82%e0%a4%aa+%e0%a4%b7%e0%a5%81%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b2&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;अनूप षुक्ल&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Profile&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Profile&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Blogger&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Blogger&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/05/blog-post_07.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><thr:total>10</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-8313620945979624909</guid><pubDate>Sun, 03 May 2009 00:40:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-05-03T07:14:51.576+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">जात न पूछौ साधु की</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">संगी साथी</category><title>एक एक्कनम एक,  दो दूनी चार,  तीन तियाँ नौ.. ..</title><description>&lt;p&gt;ई लेयो, दुनिया चैन से रहने भी न दे.. और पूछे ’ बेचैन क्यों रहते हो ? &amp;quot;    &lt;br /&gt;हम पहले ही ब्लागर से मोहोबत करके सनम.. रोते भी रहे.. हँसते भी रहे गुनगुनाय रहे थे, कि आजु एकु मोहतरमा हमसे पूछि बैठीं, &lt;strong&gt;&amp;quot; क्षमा करें डाक्साब, आप काहे के डाक्टर हैं ? &amp;quot;      &lt;br /&gt;      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;अब जानवरों के डाक्टर होते तो अपने प्रिय ब्लागर भाईयों के लिये क्यों लिखते ? हम भी किसी चुनावी जनसभा में भाड़े की जुटी भीड़ में शामिल मिमिया रहे पब्लिक से मुख़ातिब होते, या अपनी पढ़ाई-लिखाई का भरपूर दुरुपयोग करते हुये कहीं चैनल-नवीसी कर रहे होते ! और कुछ नहीं तो.. ’ नखलऊ लायब्रेरी&amp;#160; में लोकसाहित्य की अनुपब्धता ’ पर एक्ठो शोध का जुगाड़ करके मेहता अँकल के गाइडेन्स में एक दूसरे किसिम की डाक्टरी का जुगाड़ बना लेते ! और..&amp;#160; अब तक हिन्दी जी के बीमार दिल में कई प्राकृत , अपभ्रँश इत्यादि के शब्दों का प्रत्यारोपण भी कर चुके होते ?&amp;#160;&amp;#160; पर,&amp;#160; हाय री फूटी किस्मत.. इतनी घिसाई के बाद एक अदद &lt;strong&gt;’ पब्लिक प्रापर्टी डाक्टर ’ बनना ही नसीब में रहा, सो होय गये !      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;    &lt;br /&gt;इत्तेफ़ाक़ से.. चढ़ती उमिर में एक बुरी सँगत होय गयी । पँडिताइन के शासनकाल के बहुत पहले की बात है,&amp;#160; लेकिन वुई भी एक ठँई ज़नानिये रहीं.. यानि कि वह कोमल भावनायें&amp;#160; अउर मैं फूटी कौड़ी&amp;#160; भी नहीं !     &lt;br /&gt;फिर भी रँग था, कि जम ही गया ! तब यह ’ खूब जमेगा रँग ’ वाला विज्ञापन नहीं चला था.. सो हम साहित्य-वर्चा&amp;#160; करके ही मदहोश हो लिया करते थे ! ग़र मदहोश हो बैठे, तो कुछ लिखने-ऊखने का गुनाह भी त होबे करेगा, एक किताब मयखाना नाम से पढ़ा तो था .. पर, मयखाना होता कहाँ है, यही न जानता था&amp;#160; ! थोड़ा बहुत सुलेखा रोशनाई खरच करके हल्के हो लेते थे । &lt;strong&gt;मत याद दिलाओ, वह सब !      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;दिन भर की मगज़मारी के बाद ज़ीमेल खोला, . 384 अनपढ़े मेल &lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#9d004f&quot;&gt;( ये अपुण का इनबाक्स है, भिडु ! अक्खा यूनिवर्स अपुण का भेज़ाफ़्राई करनाइच माँगता )&lt;/font&gt;&lt;/em&gt; साहस ज़वाब दे इससे पहले ही देवनागरी फ़ान्ट वाले सभी मेल खोलकर अपने कच्चे-पक्के ढंग से बाँच मारे, कुछ का उत्तर भी दे दिया । आगे एक मेल और देखा , बड़े नाज़ुक अँदाज से पूछा गया है, &lt;strong&gt;&amp;quot; आप काहे के डाक्टर हैं ? &amp;quot;      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;    &lt;br /&gt;उनके शब्दों की सौजन्यता, मानों कह रहीं हों, &amp;quot;&amp;#160; ग़ुस्ताख़ी माफ़ ! चेहरे पर झुकी ज़ुल्फ़ें हटा दूँ तो...... &amp;quot;     &lt;br /&gt;मैडम जी, बहुत देर हो चुकी है, अब वोह चेहरा.. वोह ज़ुल्फ़ें.. सब बीते लम्हों में कैद हैं !     &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;अब क्या ज़वाब दूँ, मैं तुम्हारे सवाल का ?      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;    &lt;br /&gt;एक दफ़ा यही सवाल , यही सवाल ’ चिट्ठाकार ’ से भी फेंका गया था । मैंने किसी तरह इसको गली में सेफ़ ड्राइव करके, अपने को आउट होने से बचाया ! जी हाँ, मैडम जी.. हमरा दिमाग हर बेतुकेपन पर&amp;#160; आउट होने वाला लाइलाज़ ट्यूमर पाले है ! हालाँकि, &lt;a href=&quot;http://udantashtari.blogspot.com/2009/05/blog-post.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;समीर भाई आश्वासन दे गये हैं,&lt;/a&gt; कि वह कनाडा जाते ही जल्द ब जल्द मुझे इलाज़ के लिये बुलावेंगे ! अब देखो, उनके आश्वासन का क्या होता है ? सुना है, वह राजनीति में भी कभी सक्रिय रहे हैं । यह और बात है, कि तब&amp;#160; उनके घाघ साथियों ने आपके टँकी चढ़ते ही सीढ़ी गायब कर दी ! &lt;strong&gt;उतरने के प्रयास में लेखन की डाल पर अटक कर रह गये ।      &lt;br /&gt;      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000d2&quot;&gt;पर्याप्त मनोरँजन हो चुका हो, तो फिर अपने पुराने पहाड़े पर आया जाय , या टाला जाय । अब तो मैं भी वरिष्ठ में घुस सकता हूँ । सो, चुप मार लिया जाय ? &lt;/font&gt;&lt;strong&gt;अब क्या ज़वाब दूँ, मैं तुम्हारे सवाल का ?      &lt;br /&gt;      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;या फिर, मेहरबान कद्रदानों की तरफ़ टिप्पणी बक्से की चौकोर टोपी घुमा कर, क्रमशः लिख, इसे कभी न पूरा करने को यहाँ से सरक लिया जाय ?&amp;#160; वैसे भी आजकल मेरा &lt;strong&gt;’वृहद-पोस्ट लेखन कलँकोद्धार व्रत ’&lt;/strong&gt;&amp;#160; चल रहा है !&amp;#160; अपना सेहरा स्वयं ही पढ़ना तो शोभा न देगा, सो सकल प्रोटोकाल,&amp;#160; शिष्टाचार तज एक &lt;font color=&quot;#ae0057&quot;&gt;पोस्ट में मामला आज लगे हाथ यहीं सलटा दिया जाय ? &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;उत्सुकता एकदम ज़ेनुईन है, बहुतेरे डाक्टर घूम रहे हैं । ज़रूरी नहीं कि शोध करके ही Ph.D. शोधा हो, मानद भी तो बाँटी जा रही है । कई रंगबाज तो &lt;strong&gt;अपने को ऎसे ही डाक्टर लगाते हैं और लगभग ज़बरन आपसे मनवाते भी हैं ।&lt;/strong&gt; कच्छे से लेकर लंगोटावस्था तक आपने उनको गर्ल्स कालेज़ के इर्द गिर्द ही पाया होगा , फिर अचानक ही उनके नेमप्लेट पर एक अदद डाक्टर साहब नाम बन के टँगे दिखने लग पड़ते हैं,&amp;#160; डा.&amp;#160; हुक्का, ए. ट. पो. री. &lt;a href=&quot;http://draft.blogger.com/home&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;( हि. ब्ला.)&lt;/a&gt;&amp;#160; ,&amp;#160; क्या करियेगा ? ये अपुण का इंडिया है, भिडु ! आपका मेरे &#39; कुछ &#39; होने पर संदेह नाज़ायज़ नहीं है । होना भी नहीं चाहिये,&amp;#160; माहौल ही ऎसा है ! &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;strong&gt;एक एक्कनम एक      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#757575&quot;&gt;reply-to&amp;#160; dramar21071@yahoo.com        &lt;br /&gt;to Chithakar@googlegroups.com         &lt;br /&gt;date 6 Feb 2008 01:02         &lt;br /&gt;subject&amp;#160; Re: [Chitthakar] Re: याहू पर माईक्रोसॉफ्ट की बोली         &lt;br /&gt;mailed-by gmail.com &lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#757575&quot;&gt;प्रिय बंधु,        &lt;br /&gt;ब्लागीर अभिवादन         &lt;br /&gt;विदित हो कि &lt;font color=&quot;#0b0b0b&quot;&gt;मैं डाक्टर अमर कुमार एततद्वारा घोषित करता हूँ कि मैं          &lt;br /&gt;पेशे से कायचिकित्सक बोले तो फ़िज़िशीयन हूँ&lt;/font&gt; ,अतः मेरी भाषा या लेखन की         &lt;br /&gt;त्रुटियों पर कत्तई ध्यान न दिया जाय । ईश्वर प्रदत्त आयू में से 55 बसंत को         &lt;br /&gt;पतझड़ में बदलने के पश्चात अनायास ही हिंदी माता के सेवा के बहाने से         &lt;br /&gt;कुछेक टुटपुँजिया ब्लागिंग कर रहा हूँ । वैसे युवावस्था की हरियाली में ही         &lt;br /&gt;हिंदी, अंग्रेज़ी,बाँगला &lt;font color=&quot;#151515&quot;&gt;साहित्य के खर पतवार चरने की लत लग गयी थी ,          &lt;br /&gt;और अब तो लतिहरों में पंजीकरण भी हो गया है ।           &lt;br /&gt;&lt;/font&gt;गुस्ताख़ी माफ़ हो तो अर्ज़ करूँ... इन उत्सुक्ताओं को देख मुझे दर-उत्सुक्ता         &lt;br /&gt;हो रही है कि आपकी उत्सुक्ता के पीछे कौन सी उत्सुक्ता है ? मेरी हाज़त         &lt;br /&gt;का खुलासा हो जाय, वरना कायम चूर्ण जैसी किसी उत्पाद के शरणागत         &lt;br /&gt;होना पड़ेगा । आगे जैसी आपकी मर्ज़ी..         &lt;br /&gt;सादर - अमर&lt;/font&gt;&lt;/em&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;ज़ाहिर है कि उपरोक्त रिप्रोडक्शन से व्यक्तिगत प्राइवेसी का हनन हो रहा है ,तो विवाद भी उठेंगे । उचित अनुचित पर सिर धुने जायेंगे । पर सनद तो सनद ही रहेगा ... यह इंटरनेट भी झक्कास चीज है भिडु , जो लिख दिया सो लिख दिया, दीमक के चाटने का लोचाईच नहीं इधर को !&amp;#160; बड़े बड़े को फँसायला है, बाप.. सोच के लिखने का इधुर को !    &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;दो में लगा भागा&lt;/strong&gt;     &lt;br /&gt;तो सज्जन और ….?,&lt;em&gt;&lt;font size=&quot;2&quot;&gt; ( सज्जन का स्त्रीलिंग ? मेरे को नईं मालूम, नाहर साहब से पूछो ! )&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; &lt;br /&gt;अमिं जी०एस०वी०एम० मेडिकल कालेज, कानपुर से चिकित्सा स्नातक इत्यादि इत्यादि हूँ, और सम्प्रति राहू सरीखा हिंदी ब्लागिंग से बरसने वाला अमृत चखने &lt;strong&gt;आप देव व देवियों की पंगत में&lt;/strong&gt; चुपके से&amp;#160; आय&amp;#160; के ठँस गया हूँ । महादशा का अँदेशा तज दें, और इससे ज्यादा और कुछ भी तो नहीं     &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;चोर निकल के भागा&lt;/strong&gt;     &lt;br /&gt;अब यहाँ से फूट रहा हूँ,&amp;#160; आप इस राहू के शान्ति का आयोजन करें । &lt;font color=&quot;#0000d2&quot;&gt;नमस्कार !      &lt;br /&gt;&lt;/font&gt;&lt;font color=&quot;#bf0060&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOlPpXxi_ZgZkU1IyN2asuN5dGetr8fPEnTqtfHKdQxXigZQjuta5JT-VG2K1Df0tjvtgzCXiICzylaxGHZ5B5fY22yGaH0Dhem8qSvLCa0jKUh0AXz4VIH97_v9CAbQuLBvvNfk2Krm6z/s1600-h/us-thy%5B4%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-right-width: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px&quot; title=&quot;us-thy&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;us-thy&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6Jfzdq3nEozZr2YIuxyvuoc8BRiY7zttU7Oc8-viYMfABqjRJhJTeDAZDVTXTssZGtQAWKVyPRLJ6cMHzznBjU-B9jmH_1aKftxN2l12PHa6GqBhDtBh80FIcUpD3f044tOLBE2nEfyuf/?imgmax=800&quot; width=&quot;445&quot; height=&quot;569&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmScqqsC7x-LhgCm4u2aW8lMXbuWr422gN-thyphenhyphenWcuer7HULLEd4W1mXJuCbbcAl2GvVG2c3ozbh4gLuXDo12etlkKUEm3neKRczp9fA_dWJQfBdkNLE_MJ7GIv0AuOvBl27MZdP5oDvGoZ/s1600-h/outline%5B5%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-right-width: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: 0px; border-left-width: 0px; margin-right: 0px&quot; title=&quot;outline&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;outline&quot; align=&quot;right&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbqxzhkjNQd2W_AdQE8V8K8CSsoQVtwSUkjiPP0190kw4mawesLAYw721DJOuYI_wizQClRHtKp7Vwk6hkkv17NjXydcW8b4e16mPqTEa-Gog6W__yxrNjLmroS9uiceEudGil_JvzJ9N0/?imgmax=800&quot; width=&quot;360&quot; height=&quot;470&quot; /&gt;&lt;/a&gt;       &lt;br /&gt;पर, सुराग क्या मिला भला ?       &lt;br /&gt;&lt;/font&gt;सुराग़ पुख़्ता या ख़स्ता जो भी मिला हो, पँडिताइन जाँच समिति ने 24 वर्षों बाद आज रिपोर्ट दी है.     &lt;br /&gt;कि मैं कड़वी दवाई-दारू वाला घिसा हुआ असली टाइटलर&amp;#160; हूँ ।     &lt;br /&gt;ओह,&amp;#160; लगता है &lt;a href=&quot;http://sarathi.info/archives/2122&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;सारथी जी&amp;#160; से स्लिप आफ़ माँइड ,&lt;/a&gt; स्लिप होकर यहाँ&amp;#160; भी हिन्दी की निगरानी करने&amp;#160; आ पहुँचा है ! हाँ तो , मैं&amp;#160; अँग्रेज़ी&amp;#160; दवाई&amp;#160; वाला असली डाक्टर हूँ ! अँग्रेज़ी में दवाई लिखता हूँ, फिर&amp;#160; मुई&amp;#160; इसी&amp;#160; &lt;strong&gt;अँग्रेज़ी से गद्दारी&amp;#160; कर&amp;#160; के हिन्दी में बिलाग लिखता हूँ !      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;अलबत्ता कोई दलबदलू नेता नहीं हूँ !     &lt;br /&gt;अपने डाक्टर होने का हवाला देने में,&amp;#160; व्यक्तिगत मेल बिना इज़ाज़त सार्वजनिक कर दिये, तो क्षमा किया जाय । वैसे भी मैं आप सब की दया का पात्र हूँ । &lt;font color=&quot;#bf0060&quot;&gt;बड़ी बदतर हालत है मेरी,&amp;#160;&amp;#160; न घर का - न घाट का !&lt;/font&gt; मेरे मरीज़ भी सहज कहाँ विश्वास करते हैं कि मैं नुस्ख़े के अलावा कुछ और भी लिखने की अक्लियत रख सकता&amp;#160; हूँ ! &lt;strong&gt;&amp;#160; जय हिन्द ! &lt;/strong&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;em&gt;&lt;a href=&quot;http://c2amar.blogspot.com/2009/05/blog-post.html?showComment=1241229600000&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;अनूप भाई पूछिन हैं,&amp;#160; कि पिछली पोस्ट कित्ते बजे लिखी गयी है !&lt;/a&gt;&amp;#160;&lt;/em&gt; वहू वतावेंगे गुरु, जरा&amp;#160; टैम तो मिले ? ब्लागजगत का &lt;a href=&quot;http://hindini.com/fursatiya/?p=609&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;फ़ुरसत&lt;/a&gt; तो आप हथियाये बैठे हो । ’ अथ तीन बजे रहस्यकम ’ जो केवल &lt;a href=&quot;http://www.blogger.com/profile/04654390193678034280&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;कुश&lt;/a&gt; जानते हैं, आप सब पब्लिक को कब लीक किया जाय ?&amp;#160; डेढ़ – दो&amp;#160; सौ&amp;#160; ग्राम&amp;#160; फ़ुरसत&amp;#160; कभी&amp;#160; इधर&amp;#160; भी&amp;#160; वाया&amp;#160; उन्नाव ट्राँस्फ़र करो न ? वहू बतावेंगे !&amp;#160; &lt;font color=&quot;#bb005e&quot;&gt;दुबारा से, जय हिन्द !&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&amp;#160;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;/p&gt;  &lt;div style=&quot;padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; float: none; padding-top: 0px&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:8e37045d-68d9-4cdd-b59b-0ee092a235d1&quot; class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Dr.Amar&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Dr.Amar&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%a6%e0%a5%80+%e0%a4%ac%e0%a5%8d%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%b0&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;हिन्दी ब्लागर&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%d9%82%db%8c%d9%81%db%8c+%d8%a2%d8%b2%d9%85%db%8c&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;قیفی آزمی&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Profile&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Profile&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%a0%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%b2%e0%a4%be&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;निट्ठल्ला&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Blogger&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Blogger&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%a1%e0%a4%be%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%b0&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;डाक्टर&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%d8%b4%d8%a7%db%8c%d8%b1+%d9%82%db%8c%d9%81%db%8c+%d8%a2%d8%b2%d9%85%db%8c&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;شایر قیفی آزمی&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/05/blog-post_03.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6Jfzdq3nEozZr2YIuxyvuoc8BRiY7zttU7Oc8-viYMfABqjRJhJTeDAZDVTXTssZGtQAWKVyPRLJ6cMHzznBjU-B9jmH_1aKftxN2l12PHa6GqBhDtBh80FIcUpD3f044tOLBE2nEfyuf/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>10</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-7143884363724068555</guid><pubDate>Fri, 01 May 2009 02:10:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-05-02T01:03:25.592+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">टिप्पणियों पर</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बुरबकई</category><title>अनटाइटिल्ड !</title><description>&lt;p&gt;आज यहाँ मतदान का दिन था । हुँह, मतदान .. हम करें दान, ताकि वह कर सकें जनकल्याण !&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; बेहन माया ने सुबह सुबह मतदान किया ! मीडिया ने पर्याप्त कवरेज़ भी दिया ! अभी स्पष्ट ही नहीं है, 16-17-18-19 मई ( मोटामोटी बाद के बाद यह तीन दिन कुछ मोलभाव के रखिये न, भाई ! )जाने कौन प्रकट कृपाला - दीनदयाला आ जाँय और इन्हें नये सिरे से उनकी विरुदावली रचनी पड़ जाये ! फाइलों में कुछ तो रिकार्ड यह भी रखेंगे कि नहीं ? यही तो है, इनके&amp;#160; तरकश के तीर !    &lt;br /&gt;खैर.. मुझे क्या, यह उनकी प्रोब्लेम है ! &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;   &lt;br /&gt; सो, मतदान महापर्व पर आज पूरी छुट्टी मनाई ! ब्लागर से विद्रोह कर आज एक भरी पूरी पिक्चर भी देख डाली, क्योंकि अपुन ने तो डाक से अपना मत भेज दिया था ! कैसे, जब यह ब्लागर ट्रिक्स में आयेगा.. तो आपको भी&amp;#160; दिया जायेगा ! मत तो देना ही था !&amp;#160; ब्लागिंग करने से ही क्या होता है,&amp;#160; पर उनसे सहमत होने की मज़बूरी में अपना साधुवाद तो ज़ाहिर करना ही पड़ता है, भले ही कोई लाख कुपात्र हो ! खैर.. छोड़िये, यह मेरी प्रोब्लेम है !&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;   &lt;br /&gt;62 वर्ष के बीमार बूढ़े को ज़िन्दा रखने साथ ही उसकी रक्षा भी करने की अपीलें लगातार आ रही थीं !&amp;#160; ज़ाहिर है, किसने कैसे वोट डाला, क्या क्या न हुआ ! इसपर पोस्ट आना शुरु भी हो चुका होगा, साथ कैमरा भी होता तो पोस्ट में चार चाँद लग जाते ! वह हेलीकाप्टर से उड़ उड़ कर आते रहे, चार पहिया स्कार्पियो&amp;#160; में दूर दराज के अँधेरों तक विचरते रहे ! अपनी पँचसाला खुराक नहीं, बल्कि भीख माँगने आये थे ! सो, आप धूप में घिसट कर ,अपने महापर्वों पर अन्नदान, द्रव्यदान, स्वर्णदान देने की तरह मतदान के लिये भी गये होंगे । वह&amp;#160; एक बार बढ़िया तरीके से , भारतमाता के नाम पर गौदान करना चाहते हैं । यह महापर्व कोई ऎसे ही नहीं है, हम तो पूरी आस्था के साथ इसके साथ हैं ! अब आप ही क्यों, मतदान करने को आतुर धूप में तपते घिसते रहे ।     &lt;br /&gt;यह तो भाई आपकी प्रोब्लेम है !&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;बेहन माया जी, सुबह ’ फ़िरेस ’ होते ही मतदान को निकल पड़ीं, पिरेस मेडिआ वगैरह के कैमरे के सामने अपने खाली पेट होने की दुहाई भी दे डाली ! खाली रहना ही चाहिये, जनसेवा कोई हँसी ठट्ठा नहीं है, मित्रों ! खाली पेट निकली हैं, बताने की कौन ज़रूरत ? शायद यही उनकी निगाह में लोकतंतर के लिये किया जाने वाला त्याग है ! खाली पेट.. आखिर कब तक खाली रखेंगी, बेहन जी, वह तो जनसेवा के चूरे से शनैः शनैः&amp;#160; भर ही जायेगा । उनका पेट कभी भरेगा भी कि, नहीं ?    &lt;br /&gt; यही तो पूरे देश की प्रोब्लेम है ! &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;ई क्या तब से प्रोब्लेम प्रोब्लेम किये जा रहा है, कुछ हल्की-फुल्की बेहतरीन टी. पी. आर. वाली पोस्ट लिख न भाई, मेरे.. टिप्पणियाँ प्यारी नहीं है, क्या ? ना ना, मित्रों.. यह पन्डिताइन नहीं, बल्कि निट्ठल्ले महाराज अँदर से कुड़्कुड़ा रहे हैं ! &amp;quot; चुप कर ऒऎ खोत्ते,&amp;#160; इस समय सुँदरम नक्षत्र अस्ताचल पर है, सो गूगल-गुरु के घर में बैठा हुआ मँगल अनायास ही ब्लागर को टिप्पणी-वैल्यू के शनि भाव से देखने लग पड़ा है, शाँत हो लेने दो । तब तक तू निट्ठल्ला ही बैठा रह ! &amp;quot;    &lt;br /&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;शायद मति मारी गयी है, तभी यह पोस्ट बिना किसी विषय के ही लिखने लग पड़ा हूँ ! इसको आप कितना पढ़ पाते हैं, यह तो अब एडसेन्स की भी प्रोब्लेम न रही । बेचारों का स्टैटिक्स ही गड़बड़ा गया, किसी पेज़ पर कोई एक मिनट से अधिक तो ठहरता नहीं, ट्रैफ़िक बढ़ रही है , और क्लिक एक्को नहीं ? जनहित में जारी किये जाने वाले मोफ़त के प्रलोभनों पर तो कोई क्लिक करता नहीं, और ये अँटी ढीली करवाने वाले विग्यापनों की बाट जोह रहे हैं, चिरकुट !&amp;quot;&amp;#160; रहना नहीं देस बेगाना रे ..   &lt;br /&gt; शायद अब&amp;#160; हम सभी लोग एडसेन्स की ही प्रोब्लेम हैं !&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;अब कुछ कुछ ज्ञानोदय हो रहा है.. टी. पी. आर. पर टाइमखोटी करना था ! सोचा कि, जब तक&amp;#160; गूगल बाबा हिन्दी ब्लागिंग के भविष्य और संभावित, प्रोजेक्टेड टी. पी. आर.&amp;#160; पर सेमीनार करने में व्यस्त हैं, लाओ कुछ पोस्ट ही पढ़ डाली जाये । इस समय रात है, सभी सो चुके होंगे ! अभिषेक जी ने ऎसा पिलाया, कि मैं मदहोश होकर स्वाइन फ़्लू पर कुछ लिख आया, यह और बात है, कि यहाँ भी मुझे डम्प ड्रग डिस्पोज़ल की नीति दिख रही है !   &lt;br /&gt;&amp;#160;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;तो, यदि कोई नवाब या को.. &amp;quot;&amp;#160; छड्डयार, वो मन्तरी बन जावेंगे, तुस्सीं देखदे रहियो &amp;quot;    &lt;br /&gt;ई डिस्टर्बिंग एलिमेन्ट कोई और नहीं, पँडिताइन हैं !    &lt;br /&gt;अंतिम शब्दों तक की बोर्ड छीना जा रहा है, मैं उसे बचाने के प्रयास में रिरिया रहा हूँ,     &lt;br /&gt;&amp;quot; रहम कर मेरी एक्स. अनारकली.. अभी अपने दिमाग का बग तो यहाँ डाला ही नहीं.. ! &amp;quot;     &lt;br /&gt;ई मरदानी भला काहे सुनें ? जौ सुन लेतीं, तो आज हमरी ज़नानी होतीं ! &amp;quot;     &lt;br /&gt;ईह्ह, लेयो बग डाल दिया, प्रणाम ब्लागिंग बग जी !! &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3X5Dm_l5h452bAcBYrqsb_DucdZ_WsfC5XlLJVbusE8Cigp6UvWnr5ZuNRaCU6qAcrBAp5E0TN_77Z5BP8UZ2ppdUZVt1hlZbdt3MOk9Jyy_8Ou0LG4ZNdA1nXseRQURVv3o_P-_9vlBA/s1600-h/2842%5B4%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; border-top: 0px; border-right: 0px&quot; title=&quot;2842&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;2842&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHObtFTwX8wYKLa5x1NpD97lH-jXCaM3r2bEbfzxWJOckvLj_Y9iiterpMRbzbNgdjPCaBUf5xrqQoRa9nV_UMJWwPjJS4kFko13ZjJB5VLXDXSPigQJBpBD0tW9FhGHK5GUFTyY6AWYTB/?imgmax=800&quot; width=&quot;247&quot; height=&quot;252&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&lt;/p&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/05/blog-post.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHObtFTwX8wYKLa5x1NpD97lH-jXCaM3r2bEbfzxWJOckvLj_Y9iiterpMRbzbNgdjPCaBUf5xrqQoRa9nV_UMJWwPjJS4kFko13ZjJB5VLXDXSPigQJBpBD0tW9FhGHK5GUFTyY6AWYTB/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>9</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-8275027701271339512</guid><pubDate>Wed, 29 Apr 2009 04:17:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-04-29T09:48:12.945+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">कभी कभी मेरे दिल में...</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">टिप्पणियों पर</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बेतक़ल्लुफ़</category><title>कभी कभी मेरे दिल में..</title><description>&lt;p&gt; ….&amp;#160; यह ख़्याल आता है कि, ब्लागिंग में मुआ ब्लागर आख़िर करता क्या है ...&amp;#160; क्या केवल यही तो नहीं,&amp;#160;&amp;#160; कि&amp;#160;&amp;#160; &lt;strong&gt; &amp;quot; रमैया तोर दुल्हिन लूटै बजार &amp;quot; ?      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;शायद ऎसा नहीं ही होगा.. काहे कि सदियन पाछै कबीरौ पलटि के ठोकिं गये रहें, &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;strong&gt;&amp;quot; हम तुम तुम हम और न कोई । तुमहि पुरुष हम ही तोर जोई ॥ &amp;quot;      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;ब्लागर के जोई का कोई सगा सम्बन्धी क्यों न हो ? सो, ब्लागस्पाट की मेहरारू और पाठकों की भौजाई बने बिना ब्लागिंग&amp;#160; करना दिनों दिन जैसे दुष्कर होता जा रहा है..&amp;#160; &lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhy-m3EJJXLmY2Z_XCEBKmwL5oLgJhIYJINWaVg2Q2ZTw0KojUFVmhzaM_pnH6kBhKcVleu5FCoZsvfnPuQgHrPN6fiOIgvFM5klGfjp4HTg8hjne7MWJDCpXql2bqKDatkV3Hgm26hzbO7/s1600-h/sambhal%20ke-%20nitthalle%5B11%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; margin: 15px 20px 0px 0px; display: inline; border-top: 0px; border-right: 0px&quot; title=&quot;sambhal ke- nitthalle&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;sambhal ke- nitthalle&quot; align=&quot;left&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBQR33dfX4S5GptIGg4SyBLZZ57Himq8qvMJpHkNXHntuRMxkFC6NzizX4rbgHlUiT84dwDgCMGlUj1vCUjGF-V44KVxWJhh9VddFIwfCLl6Sc8C9Flaa7iw5srSFq07PxnXCBiJB8pn76/?imgmax=800&quot; width=&quot;196&quot; height=&quot;279&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&lt;em&gt;&lt;font size=&quot;2&quot;&gt;( छिमा करो, माता ! )&lt;/font&gt;&lt;/em&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;जौन मज़बूरी में भौजाई बने हो.. तौनै मा ननद जी की गारी भी सुनो । वर्ड-वेरीफ़िकेशन&amp;#160; का नेग माफ़ करवा लेने से ही&amp;#160; काम&amp;#160;&amp;#160; न चलेगा ..&amp;#160; बस जरा, आती हुई टिप्पणियों पर निगाह रखो । &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;क्या पता, कोई गरियाने की आड़ में कहीं सच ही न उगल रहा हो ?&amp;#160; गरियाओ.. नेता को... अभिनेता को .. सराहो सतयुग को.. त्रेता को.. अर्थात,&amp;#160; कुल ज़मा अर्क-ए-ब्लागिंग यह है, &lt;/p&gt;  &lt;p&gt; कि &amp;quot; हे तात तुस्सीं सत्यम ब्रूयात प्रियं ब्रूयान्न .. चँगी चँगी मिठियाँ गल्लाँ कीत्ता कर ! &amp;quot; मेरी भाषा ही गड़बड़ है क्या, दिल ने धिक्कारा, &amp;quot; ई का लिख रहा है, बे ? &amp;quot;&amp;#160; दिमाग ने ऊपरी मँज़िल से अलग दहाड़ लगायी, &amp;quot; जितना कहना था कह दिया, अब इससे आगे एक भी लैन नहिं लिखने का ! &amp;quot; ठीक है, श्री व्यवहारिकता जी.. इतने ही पर छोड़ देते हैं.. &lt;strong&gt;सत्यम ब्रूयात प्रियं ब्रूयान्न !&lt;/strong&gt; अर्थात हे पशु, पुच्छविहीना .. तुम सच ही बोलो , और प्रिय ही बोलो !&amp;#160; अब इससे आगे एक लफ़्ज़ भी निकालने की कौनो ज़रूरत नाहीं है ! &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;तो,&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; फिर यहीं छोड़ते हैं.. आगे की लाइनें आज रहने देता हूँ, कि    &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;सत्यम ब्रूयात प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यमप्रियम      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;&lt;em&gt;&lt;font size=&quot;2&quot;&gt;सत्य बोलो प्रिय बोलो । अप्रिय सत्य ( काने को काना ) मत बोलो ।       &lt;br /&gt;&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;strong&gt;प्रियं च नानृतं ब्रूयादेव धर्म सनातनः ॥&lt;/strong&gt;     &lt;br /&gt;&lt;em&gt;&lt;font size=&quot;2&quot;&gt;पर, ऎसा ठकुरसुहाती प्रिय भी न बोलो, जिससे धर्म की हानि हो !&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvdbeiNS0omfkxuh94KAeWPdMZXW8fO3LR3-NPa9fDhnc1s60OrQKZkF1dBN0GhR1tmhQx28-71NE2WX2G-7J_48R_WLg7o8FJeamnPc8cl2fQ1WrTcx_rbtoQw15fK3NsNaLFyTRe5-NQ/s1600-h/kabhi%20kabhi%5B5%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img style=&quot;border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; margin-left: 0px; border-top: 0px; margin-right: 0px; border-right: 0px&quot; title=&quot;kabhi kabhi&quot; border=&quot;0&quot; alt=&quot;kabhi kabhi&quot; align=&quot;right&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgorWqTlfnoUc3E6wfrOX5Qp0-JH7iEWkjsLrkrxAo46C6StvP5tQZAck5FuB82J4xFGka4CdBocMzTzHcf0wtn-hLgfL866mXyFZwjBaBBvvJlhViHKvmk_jKf8ifHR39vLZarJ5iaDzy5/?imgmax=800&quot; width=&quot;252&quot; height=&quot;292&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;अधूरी जानकारी और अधूरे उद्धरण बड़ा सुख देते हैं !&amp;#160;&amp;#160; नो हाय हाय.. एन्ड आफ कोर्स नो चिक चिक !   &lt;br /&gt;तब्भीऽऽ…&amp;#160; ऊपर वाला डाँट रहा था, कि दूसरी लैन मत पकड़ना,&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; अवश्य ही यह कोई स्पैम है ! &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;लो,&amp;#160; स्थूलकाया मधु्रवाणी आपकी भौज़ी यानि पंडिताइन प्रकट हो कर, बरजती हैं,&amp;#160; “ तुम भीऽऽ.. ना,&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; क्या सुबह सुबह इस मुई को लेकर बैठ गये ? “ मैं विहँस पड़ा, ’ कुछ नहीं.. भाई,&amp;#160; जरा मैं भी दो लाइना मार दूँ,&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; यहाँ तो नित नये अनुभव हो रहे हैं ! &amp;quot;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; फिर तो उधर से सीधा एक लिट्टाई हमला,&amp;#160; “ तो .. तुम अनुभव की कँघी पर लपकते रहो.. जब तक यह हाथ आयेगी, तुम खुद ही गँज़े हो चुके होगे ? &amp;quot; मुझे तो आज तक सैन्डिल भी नसीब न हुई, और यह मुझे ज़ूते का भय दिखा रहीं हैं ! भला&amp;#160; आपही&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; बताइये..&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; शब्दबाणों से कभी कोई गँज़ा हुआ है,&amp;#160;&amp;#160; क्या ?&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; मैं तो आलरेडी पहले से ही सेमीगँज़ा हूँ !&amp;#160;&amp;#160; शायद इसीलिये, कभी कभी मेरे दिल में...&lt;/p&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/04/blog-post_29.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBQR33dfX4S5GptIGg4SyBLZZ57Himq8qvMJpHkNXHntuRMxkFC6NzizX4rbgHlUiT84dwDgCMGlUj1vCUjGF-V44KVxWJhh9VddFIwfCLl6Sc8C9Flaa7iw5srSFq07PxnXCBiJB8pn76/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>13</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-8541108141794868147</guid><pubDate>Wed, 15 Apr 2009 21:31:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-04-29T01:27:34.071+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">निंदक नियरे राखिये</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बात बेबाक</category><title>कँघा आरक्षण के लिये ग़ँज़ों की गणना</title><description>&lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  2. बड़ा बेहूदा शीर्षक है, न ? मुझे भी लग रहा है, पर समय के पैंतरेबाजी के आगे सभी नतमस्तक.. तो मैं भी नतमस्तक !&amp;nbsp; हालाँकि ऎसे समय लोकतंत्र के हज़्ज़ाम सबसे ज़्यादा नतमस्तक हैं ! &lt;/div&gt;
  3. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  4. जरा ध्यान से.. आचार संहिता जारी आहे .. गड़बड़ लिखोगे तो माफ़ीनामें पर दस्तख़त करने को हाथ भी न बचेंगे । यह कोई और नहीं.. बल्कि मेरी स्वतंत्र अभिव्यक्ति की पहरेदार पंडिताइन हैं !&amp;nbsp;&amp;nbsp;&amp;nbsp; थोड़ा सा दिनेश जी का लिहाज़ है, वरना गंज़ों से अधिक धर्म-निरपेक्ष, वर्ग निरपेक्ष सदियों से उपेक्षित मुझे तो कोई अन्य वर्ग न दिखता ! किसी मीडिया वाले ने ध्यान ही न दिया, इनपे ! &lt;/div&gt;
  5. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  6. हाँ तो बात “&amp;nbsp; तू मेरा चाँद.. मैं तेरी चाँदनी “ के श्री चँदा जी की हो रही थी ! अच्छा तो चलिये जरा आप ही बताइये, आपके शहर में कितने होंगे ? इस अनुपात से आपके जिले में इनकी संख्या कितनी होगी ? फिर तो पूरे प्रदेश में इनकी जनसंख्या का आकलन करना भी आपके लिये बहुत ही सुगम होगा । न होय तो ज्ञान दद्दा से पूछि लेयो । लो, अपना तो&amp;nbsp; बन गया काम ! &lt;/div&gt;
  7. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  8. तो अब एक छोटी सी सहायता और,जरा यह जानकारी भी एकत्रित कर लें कि इनमें से अधिकांश का रूझान किधर है,&amp;nbsp; कंघा पार्टी की तरफ़ या आईना पार्टी की तरफ़ ? यह भंग की तरंग नही है, यह मश्शकत तो हमारे मीडियाकर्मी कर तो&amp;nbsp; रहे हैं । आपौ बुड्ढीजीवी कहात हो, अपने दालान बैठ के आपौ ई चुनाव सार्थक कर लेयो । &lt;/div&gt;
  9. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  10. मुला,उनके इस वर्गीकरण का खाका कुछ अपनी ही तरह का होता है । अगड़े, पिछड़े, सवर्ण, जनजाति, मुस्लिम, हिंदू , सिक्ख इत्यादि इत्यादि । इतने पर भी संतोष नहीं,तो फिर इनकी शाखायें और परिशाखाओं पर सिर खपाऊ रिपोर्ट उछाली जाती हैं । अगड़े मानी ब्राह्मण ( घर में खाने को नहीं है ) , क्षत्रिय कुलीन वर्ण , पिछड़े बोले तो .. कोनो मँहगी कार का नाम बताओ भाई, हाँ तो, उसी में घूमते यादव जी सहित&amp;nbsp; कुर्मी ,पासी जैसे मलिन वर्ण । हमारी छोड़ो.. हम कायस्थ तो खैर त्रिशंकु जैसे टंगे हैं वर्ण निरपेक्ष ! काहे में हैं, आज तलक यहि पता नहिं.. कोनो कहत है, तुम तो आधे ऊई मा हो !&amp;nbsp; मतलब हम धरम से भी गये ! &lt;/div&gt;
  11. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  12. किंतु इस प्रकार के जाति एवं वर्णव्यस्था को लेकर चलने वाले जद्दोजहद की कोई मिसाल इस सदी में कहीं और भी है ?&amp;nbsp; हमारे&amp;nbsp; यहाँ तो है.. आओ देखो इनक्रेडिबल इन्डिया ! अब आप भी वक़्त की नज़ाकत पहचानो.. और जरा अपने पितरों के गोत्र और पुरखों के ठौर ठियाँ का पता लगा के रखो । अब अगले के अगले के अगले के पिछली बार यही होने वाला है । वँशावली तलाशी होगी.. फिर न कहना कि आगाह न किया था ! सरम काहे का.. हमरे मर्यादा देशोत्तम यूएसए का तो यही चलन है.. मेड इन यू.एस.ए. भाई साहब आपन झोला उठाइन और चल दिये हिन्दुस्तान दैट्स इन्डिया.. भटक रहे मालेगाँव तालेगाँव टिंडा भटिंडा .. जाने कहाँ कहाँ ! क्या कि अपना रूट्स तलाश रहे हैं ! &lt;/div&gt;
  13. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  14. हद्द खतम है, हमरे सुघढ़ मीडिया वाले इतने थोथी बुद्धि के कैसे निकले ? कैच इट गाय.. जस्ट बिफ़ोर एनिवन एल्स टेक्स द क्रेडिट । माफ़ करना,&amp;nbsp; ऊ लोग भी अँग्रेज़िये में सोचते हैं, बोलते भी वोहि मा हैं ( धुत्त ! लालू झाँक रिया था ! ) क़ाफ़ी हाउस के बाहर आकर हिदी उचारना उनकी मज़बूरी है.. पैसा मिलेगा तो हिन्दी चनलों में ताक जाँक करने वालों की दया से ! &lt;/div&gt;
  15. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  16. यह इनकी लोमड़पँथी है, यदि यह आंकड़े न पैदा करें, तो हमारे स्वयंभू भारत भाग्यविधाता ऎसी नितांत अप्रासंगिक समीकरण कैसे बैठायेंगे ? लोगों के &#39; माइंडसेट &#39; में अपनी गणित कैसे आरोपित की जाये, यही इनकी मुख्य चिंता है । आख़िर वह कौन से लोकतांत्रिक सरोकार हैं, जो इनको इस मुद्दे में अपनी मथानी चलाने को बाध्य करती हैं ? उनके सरोकार किसी को लेकर नहीं हैं किंतु उनका संदेश स्पष्ट है, &quot;अरे ओ भारतवासियों , बहुत नाइंसाफ़ी है रे, पोंगापंथी सेकुलर सरकार में !&quot; इस मंथन से नवनीत कैसा निकलता रहा है, आप स्वयं साक्षी हैं ! &lt;/div&gt;
  17. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  18. जनतंत्र का चौथा स्तम्भ कितना लचर होता जा रहा है क्या किसी गवाह सबूत की वाकई ज़रूरत है ?&amp;nbsp; क्या हम गँवारों को यह सब गणित पढ़ने समझने की जरूरत है ? कहां से, कैसे इस जातिगणित की शुरुआत हुई और इसे समीकरणों ,थ्योरम की हवा देकर मीडिया कहां तक ले जाकर इसका अंत करेगी ? इसके पटाक्षेप का कोई अंधा मुकाम तो होगा ही, जहां इनके अपने हित सधने पर &#39; इति सिद्धम &#39; के उदघोष की ध्वनि क्षीण होती जायेगी । &lt;/div&gt;
  19. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  20. आज यह क्या हो गया डाक्टर साहब को, कहां की लंतरानी कहां घुसेड़ रहे हैं ? इस आलेख को मीडिया पर हमला न समझा जाये, चलिये हमला ही समझिये.. पर जो मन में समाया था , वह निकाल दिया । इसके ज़ायज और नाज़ायज होने का फैसला आप&amp;nbsp; करें न करें । &lt;/div&gt;
  21. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  22. सच है, क्योंकि यहां कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं है,&amp;nbsp; यह बानगी महज़ आपको कुरेदने की कवायद भर है। इस सिक्के का दूसरा पहलू है देश के आबादी के शिक्षा का प्रतिशत ! ज़ाहिर है शिक्षा और किरानी के नौकरी का आनुपातिक संबन्ध मैकाले के समय से ही शाश्वत चला आ रहा है । &lt;/div&gt;
  23. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  24. किंतु यहां तो मीडिया अपनी सुविधानुसार इस पहलू को फ़िल्म &#39;शोले&#39; में डबलरोल का किरदार निभाने वाले सिक्के की तरह छुपाये रखना चाहती है, शायद वांछित क्लाईमेक्स की प्रतिक्षा में । &lt;/div&gt;
  25. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  26. अब शायद धुंधलका कुछ छंट रहा हो, यह उनका शग़ल है, जनमानस के सोच की दिशा बदलने का । बोले तो ? पब्लिक माइंडसेट पर फटका मारने का माफ़िक । ई साला अपुन के माइंड का स्टीयरिंग रखेला हाथ में , बहुत बड़ा ग़ेम है, बाप ! आप मुझसे सवाल करें, क्या वाकई ऎसा ही है .... तो तुम भी तो इसी को टापिक बना कर ठेले पड़े हो !&lt;/div&gt;
  27. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  28. अधिकांश जन शायद भोजपुरी न पकड़ पायें, अवधी में कहते हैं, &lt;em&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000ea;&quot;&gt;&quot; गाये गाये तौ बियाहो हुई जात है &quot;,&lt;/span&gt;&lt;/em&gt; आप न मानें पर यह सही&amp;nbsp; है, अच्छा खासा समझदार आदमी भी &quot; यह देश है अगड़े पिछड़े का.. &quot; के लगातार बजते जाते बैंड पर सम्मोहित होकर पाँच-साला फंदे के सम्मुख शीश नवा देता है । अब भी संशय है तो&amp;nbsp; किसी&amp;nbsp; प्रोपेगंडा मशीन तक न जाकर अपने को ही ले लीजिये ..&amp;nbsp; &lt;/div&gt;
  29. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  30. नहीं लेते..&amp;nbsp; पर मैंने तो खुद सुना है कि लगातार &#39;कांटा लगा..हाय रे हाय...&#39;, &#39;बीड़ी जलईले ज़िगर से..&#39; और &#39;झलक दिखला जा..आज्जा आज्जा आआज्जा&#39; सुनते सुनते आप स्वयं भी विभोर हो कर गुनगुना रहे थे ,..&#39; उंअंज्जाअंजाअंज्जाअंजाउंउंउंऊं ! &#39;&amp;nbsp; &lt;/div&gt;
  31. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  32. &lt;img alt=&quot;स्टीयरिंग मेरे हाथा या चैनल के साथ Indian General Election 2009&quot; border=&quot;0&quot; height=&quot;239&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqu-ObDkd6SL6r03yf8fFgFYYAQPWASzGNcvGeREFTsH-hocIbkxGru2XIHY6QBUUsyIuV1PEUM-4nj_EztTUwfyK2e-PXQG_ZIxsSyzHLx9LPs10X77mdEl2QdoW2JXVH7CmgqQmkmZmT/?imgmax=800&quot; style=&quot;border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-top-width: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; margin-right: auto;&quot; title=&quot;स्टीयरिंग मेरे हाथा या चैनल के साथ Indian General Election 2009&quot; width=&quot;360&quot; /&gt; &lt;/div&gt;
  33. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  34. &lt;em&gt;&lt;span style=&quot;color: #00a800;&quot;&gt;स्टीयरिंग किसके हाथ.. हमारे या उनके ?&amp;nbsp; &lt;br /&gt;&lt;/span&gt;&lt;/em&gt;क्यों उस पल हमारी सारी लिखाई पढ़ाई संस्कार सरोकार मास कैज़ुअल लीव पर चली गयी ?&lt;/div&gt;
  35. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  36. तो यह मीडिया के माइंडसेट स्टीयर करने के इस खेल का अंपायर बन प्रबुद्ध समाज भी लगातार ’ नो बाल या वाइड बाल &#39; दिये जा रहा है । सबकी निग़ाह घुड़सवार पर है.. &lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjzqSFbLzack9WPPKlOKHxiexGObZmVqBWEKi12lp58xb-KBPPNP3AvQVL_nzY_ZzKyT18ZgGlEUD4JEedYRTLEdDh8NuT5Ubkq6Ij6POyFxRL9byVQ0e6hBB2Z_5Fhfequ31NyjBMaoUhp/s1600-h/Sheep01june11.gif&quot;&gt;&lt;img align=&quot;right&quot; alt=&quot;Sheep-01-june&quot; height=&quot;120&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiokxDYaT0DA4tBHhscej5dEZyECr4maJ4h-bTYwS2IVEmZCHOCC2pqydiZqUrCY2TDSB6kY2kb7BXDwYLIpLun4gy97HijuibqSpaRCV39uuEoeeLB7uLudyo-JtzZKLdWkzxej1ezH1Hd/?imgmax=800&quot; style=&quot;display: inline; margin-left: 0px; margin-right: 0px;&quot; title=&quot;Sheep-01-june&quot; width=&quot;120&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/div&gt;
  37. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  38. जाकी होशियार.. घोड़ा कमजोर.. जाकी कमजोर तो घोड़ा मज़बूत !&amp;nbsp;&amp;nbsp; घोड़े पर दाँव लग रहा है.. यह जीतेगा वह जीतेगा । लेकिन मीडिया वाले&amp;nbsp; दादा,हमका ई तौ बताय देयो ई रेसवा काहे हुई रहा है, मकसद ?&amp;nbsp; फिर तो देश के अस्सी फ़ीसदी निरक्षर भट्टाचार्यों की क्या बिसात !&amp;nbsp; बेचारे इसी में बह रहेंगे, कि &lt;em&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000d2;&quot;&gt;&#39;कुछ तौ है.........झूठ थोड़े होई ?&lt;/span&gt;&lt;/em&gt; साँचै जनात है,&amp;nbsp; तबहिन सबै जउन देखो तउन&amp;nbsp; टी-वी मा एकै चीज देखावत हैं &#39; झूठ थोड़े होई ? मज़किया नाहिं हौ ! सरकार केर आय ई टीवी.. ऊप्पर अकास से आवत है ! &quot; लो कर लो बात !&lt;/div&gt;
  39. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  40. &lt;/div&gt;
  41. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  42. BREAKING NEWS : चुनाव परिणामों के बाद गँजों को कँघा देने का वादा कर जीतने वाले घुड़सवार ने&amp;nbsp; अब इन्हें उस्तरा देने की पेशकश की !&amp;nbsp; कँघा आरक्षित !&lt;/div&gt;
  43. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  44. उधर &lt;a href=&quot;http://binavajah.blogspot.com/&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;strong&gt;अपुन के निट्ठल्ले&lt;/strong&gt;&lt;/a&gt; ने इसके लिये उस्तरे आयात&amp;nbsp; किये जाने की आशंका जतायी ! &lt;/div&gt;
  45. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  46. &lt;/div&gt;
  47. &lt;div class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:6472cafd-1f19-448f-9fdb-942fb1b9a016&quot; style=&quot;display: inline; float: none; margin: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;&quot;&gt;
  48. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  49. Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Indian+General+Election+2009&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Indian General Election 2009&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Indian+Media&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Indian Media&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Blogspot&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Blogspot&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Hindi&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Hindi&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;
  50. &lt;/div&gt;
  51. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  52. &lt;/div&gt;</description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/04/blog-post_16.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqu-ObDkd6SL6r03yf8fFgFYYAQPWASzGNcvGeREFTsH-hocIbkxGru2XIHY6QBUUsyIuV1PEUM-4nj_EztTUwfyK2e-PXQG_ZIxsSyzHLx9LPs10X77mdEl2QdoW2JXVH7CmgqQmkmZmT/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>12</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-114083418147190971</guid><pubDate>Sat, 11 Apr 2009 20:16:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-04-28T22:46:23.278+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">आब्ज़ेक्शन मी लार्ड</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">टिप्पणियों पर</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">निंदक नियरे राखिये</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बेतक़ल्लुफ़</category><title>मत मानो मेरा मत, पर यह मत कहना कि मत नहीं दिया था</title><description>&lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  53. विष्णु प्रभाकर जी नहीं रहे । कुछेक शीर्ष अख़बारों के लिये यह ब्रेकिंग न्यूज़ न रही होगी ! अनूप जी ने उचित सम्मान दिया !&amp;nbsp; विष्णु जी ने आवारा मसीहा के लिये सामग्री जुटाने के लिये जो कल्पनातीत श्रम किया है, मैं तो केवल इसी तथ्य से ही उनका भक्त बन गया । बाद के दिनों में तो उनके अन्य तत्व भी दिखने लगे थे ! अपने साहित्य साधना में वह विवादो की काग़ज़ की रेख से अपने को बचा ले गये, यह उनकी एक बड़ी उपल्ब्धि है ! &lt;/div&gt;
  54. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  55. उन्हें सच्चे मन से श्रद्धाँजलि !&amp;nbsp; &lt;/div&gt;
  56. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  57. &lt;a href=&quot;http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/04/blog-post_11.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;strong&gt;चिट्ठा-चर्चा को लेकर अनूप जी की व्यथा बहुत ही स्पष्ट है,&lt;/strong&gt;&lt;/a&gt;&amp;nbsp; इससे&amp;nbsp; भी&amp;nbsp; अधिक इसके प्रति आज उनका दृष्टिकोण भी स्पष्ट और मुखर है ।&amp;nbsp; &lt;/div&gt;
  58. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  59. &amp;nbsp;&amp;nbsp;&amp;nbsp;&amp;nbsp;&amp;nbsp; &lt;/div&gt;
  60. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  61. हालाँकि एक बार उन्होंने ही चिट्ठों के चयन को लेकर चर्चाकार की अबाध्यता को ज़ायज़ ठहराते हुये अपना पल्ला झाड़ लिया था !&amp;nbsp; एक वरिष्ठ चिट्ठाकार को सलाह देना कितना प्रासंगिक हो सकता है, नहीं जानता .. पर मेरा ’ सचेतक ’ चरित्र अपनी बात ठेलने को प्रेरित कर रहा है ! &lt;/div&gt;
  62. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  63. &lt;/div&gt;
  64. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  65. आगे बढ़ने के लिये परस्पर विमर्श आवश्यक है, क्या वज़ह है कि आज़ तमिल चिट्ठाकारी हिन्दी से कहीं आगे है ? कोई 2005-2006 के मध्य वहाँ चलने वाली बहसों की बानगी लेकर देख सकता है ! आपसी सिर-फ़ुट्टौवल तो नहीं, पर बाँगला ब्लागरों में परस्पर अहंभाव ने उसे भी न पनपने दिया ! बीस पोस्ट के बाद स्वयं का डोमेन लेकर अपना चूल्हा अलग ! &lt;/div&gt;
  66. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  67. बहुचर्चित&amp;nbsp; एक लाइना को चिट्ठों के शीर्षक के पैरोडी मात्र के रूप में लिया जाना, मुझे कभी से भी अच्छा न लगा । हरि अनन्ता-संता बंता अपवाद भले हो, संभवतः आज तक मैंनें इनकी तारीफ़ न किया होगा !&amp;nbsp; आनन्द अवश्य लेता रहा ! &lt;strong&gt;पोस्ट के लिंक को सपाट रूप से न देकर रोचक बनाने का प्रयास ही माना जाय, एक लाइना !&lt;/strong&gt;&amp;nbsp; होता यह है, कि लोग चर्चा के मूल पाठ को भी न पढ़. .. सीधे एक लाइना पर एक टिप्पणी ठोक कर बढ़ लेते हैं । &lt;/div&gt;
  68. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  69. &lt;/div&gt;
  70. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  71. और.. इसमें भी वह इतने ईमानदार हैं, कि जिस भी चिट्ठे के शीर्षक और लाइना की जुगलबन्दी पर झूम उठते हैं, शायद ही वहाँ पहुँचते हों ! &lt;/div&gt;
  72. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  73. जी हाँ, मैंने चिट्ठाचर्चा के कई नियमित टिप्पणीकारों का ’ पीछा किया है :), और ताज़्ज़ुब है कि पोस्ट तो छोड़िये.. पूरे के पूरे ब्लाग पर ही उनकी टिप्पणी नदारद है !&amp;nbsp; मानों वह यहाँ चर्चा पर, केवल छींटाकशी करने के लिये ही आते हों ! &lt;/div&gt;
  74. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  75. &lt;/div&gt;
  76. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  77. फिर तो हो चुका कल्याण ? यदि पाने की अपेक्षा रखते हैं, तो देने की क्यों नहीं ? &lt;/div&gt;
  78. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  79. किसी भी बहस के निष्कर्ष सभी को एक दिशा देते हैं ।&amp;nbsp; भले ही पाठक-चिट्ठाकार उस पर न चले, पर दिशा तो मिले ? इसका यहाँ अभाव केवल इसलिये है, कि ऎसी बहस में अंतिम मत मोडरेटर या चर्चाकार का होना ही चाहिये, जो कि बहुधा नहीं होता&amp;nbsp; ! गोया हनुमान गुरु अपने चेलों का रियाज़ देख रहे हों ।&amp;nbsp; नतीज़ा.. हर सार्थक&amp;nbsp; बहस ’ दूर खड़ी ज़मालो के आग़ ’ जैसी बुझ कर राख़ हो जाती है&amp;nbsp; !&amp;nbsp; यह अलंकार लगभग हर बहस में खरी उतरती है,&amp;nbsp; आपके पास अनुभव है,&amp;nbsp; चिट्ठाकारी का रोमांचक इतिहास है.. सो विषम मोड़ों पर,&amp;nbsp; कुछ तो.. मोडरेटर का मत होनाइच मँगता, बास !&amp;nbsp; बुरा मानने का नेंईं.. &lt;/div&gt;
  80. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  81. अपने पोस्ट का लिंक यहाँ सभी देखना चाहते हैं.. पर, दूसरे के लिये ? &lt;/div&gt;
  82. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  83. मत लीजिये मेरा मत, कि चर्चा के लिये माडरेशन का एक सार्थक उपयोग भी&amp;nbsp; हो सकता है.. ! &lt;/div&gt;
  84. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  85. वह यह कि हर &lt;em&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;टिप्पणीकार के लिये अपनी टिप्पणी में एक पढ़े हुये पोस्ट का लिंक और उसके&amp;nbsp; साथ उस पोस्ट पर अपनी मात्र दो पंक्तियाँ जोड़ कर देना अनिवार्य समझा जाये&amp;nbsp; ..&lt;/span&gt;&lt;/em&gt; अन्यथा उनकी टिप्पणी हटा दी जायेगी ! हाँ, मुझ सरीखे लाचार टिप्पणीकार को यह छूट मिल सकती है ! &lt;strong&gt;इससे लाभ ?&lt;/strong&gt; &lt;/div&gt;
  86. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  87. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;१.&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt; चर्चा का दुरूह का कार्य चर्चाकार के लिये आसान हो पायेगा ! &lt;/div&gt;
  88. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  89. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;२&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt;. दूरदराज़ के अलग थलग पड़े चिट्ठों का संचयन स्वतः ही होने लग पड़ेगा ! &lt;/div&gt;
  90. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  91. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;३.&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt; एक लाइना की नयी पौध भी सिंचित हो सकेगी ! &lt;/div&gt;
  92. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  93. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;४.&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt; यदा कदा कुछ चर्चा जो थोपी हुई सी लगती है, न लगेगी ! &lt;/div&gt;
  94. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  95. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;५.&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt;&amp;nbsp; मेरे सरीखा&amp;nbsp;&amp;nbsp; घटिया आम पाठक भी चर्चा तक ले जाने को एक बेहतर लिंक तलाशेगा, &lt;/div&gt;
  96. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  97. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;६.&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt; ज़ाहिर है, कि ऎसा वह अपनी मंडली से बाहर निकल कर ही कर पायेगा ! &lt;/div&gt;
  98. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  99. &lt;/div&gt;
  100. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  101. मानि कि, कउनबाजी तउनबाजी कम हो जायेगी ! &lt;/div&gt;
  102. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  103. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;७. ’&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt; तू मेरा लिंक भेज-मैं तेरा भेजूँगा ’&amp;nbsp; जैसी लाबीईंग हो शुरु सकती है, पर ऎसे जोड़े भी काम के साबित होंगे ! क्योंकि&amp;nbsp; तब भाई भाई में मनमुटाव भी न होगा ! &lt;/div&gt;
  104. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  105. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;८.&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt; क्योंकि इस होड़ में नई और बेहतर पोस्ट आने की रफ़्तार बढ़ेगी.. धड़ाधड़ महाराज़ का हाल आप देख रहे हैं, श्रीमान जी स्वचालित हैं.. वह क्यों देखें कि यूनियन बैंक की शाखा के उद्द्घाटन सरीखी पोस्ट हिन्दी को क्या दे रहीं हैं ? &lt;/div&gt;
  106. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  107. &lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;&lt;strong&gt;९&lt;/strong&gt;.&lt;/span&gt; मेरे जैसा भदेस टिप्पणीकार अपने साथी से पूछ भी सकता है, चर्चाकार ने तुमको क्या दिया, वह बाद में देखेंगे ! पहले यह दिखाओ कि, टिप्पणी बक्से के ऊपर वाले हिस्से में तुम्हारा योगदान क्या&amp;nbsp; है ? &lt;/div&gt;
  108. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  109. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;१०&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt;. लोग कहते हैं, चर्चा है कि तुष्टिकरण मंच.. मैं कहुँगा कि, नो तुष्टिकरण एट आल ! तुष्टिकरण के दुष्परिणामों पर यदि हम पोस्ट लिखते नहीं थकते, तो अपने स्वयं के घर में तुष्टिकरण क्यों ? &lt;/div&gt;
  110. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  111. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;११.&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt; यहाँ पर मैं श्री अनूप शुक्ल से खुल्लमखुला नाराज़ हूँ.. किसी के ऎतराज़ पर कुछ भी हटाया जाना.. नितांत गलत है !&amp;nbsp;&amp;nbsp; कीचड़ में गिरने को अभिशप्त या संयोगवश, मैं उस रात धुर बारह बजे &lt;strong&gt;&lt;a href=&quot;http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/04/blog-post_01.html#comments&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;पाबला-प्रहसन&lt;/a&gt;&lt;/strong&gt; देख रहा था ! बीच बीच में तकरीबन डेढ़ घंटे तक मेरा F5 सक्रिय रहा, निष्कर्ष यह रहा कि कुश &lt;a href=&quot;http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/04/blog-post_01.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;em&gt;( बे... चारा ! )&lt;/em&gt;&lt;/a&gt;&amp;nbsp; को सोते से जगा कर उनकी अनुमति&amp;nbsp; से एक चित्र हटाया गया.. अन्य भी प्रसंग हैं । &lt;/div&gt;
  112. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  113. कुश देखने में शरीफ़ लगते हैं, तो होंगे भी ! क्योंकि मैं इन दोनों की तीन कप क़ाफ़ी ढकेल गया.. पर यह अरमान रह गया कि वह इस प्रकरण को किस रूप से देखते हैं, कुछ बोलें ! &lt;/div&gt;
  114. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  115. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;१२.&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt; विषय का चयन, निजता का हनन, अभिव्यक्ति का हनन इत्यादि नितांत चर्चाकार के विवेक पर हो, और ऎसा डिस्क्लेमर लगा देनें में मुझे तो कोई बुराई नहीं दिखती ! &lt;/div&gt;
  116. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  117. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;१३.&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt; क्या किसी को लगता है, कि इस प्रकार पोस्ट सुझाये जाते रहते जाने की परंपरा से अच्छे पोस्ट की वोटिंग भी स्वतः होती रहेगी ? &lt;/div&gt;
  118. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  119. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;१४.&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt; चिट्ठाचर्चा के अंत में के साथ ही आभार प्रदर्शन के एक स्थायी फ़ीचर में अपना नाम कौन नहीं देखना चाहेगा ? &lt;/div&gt;
  120. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  121. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;१५.&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt; स्वान्तः सुखाय लिखने वालों के लिये, कोई भी व्यक्ति बहुजन-हिताय जैसे चर्चा श्रम में क्यों शेष हो जाये ?&amp;nbsp; जानता है, वह कि, यह श्रमसाध्य कार्य भी अगले दिन आर्काईव में जाकर लेट जायेगी..&amp;nbsp; कभी खटखटाओ तो Error 404 - Not Found कह कर मुँह ढाँप लेंगीं ! &lt;/div&gt;
  122. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  123. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;१६.&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt; गुरु, अब ई न बोलिहौ..&amp;nbsp; लेयो सामने आय कै आपै ई झाम कल्लो,&lt;em&gt; इश्माईली&lt;/em&gt; !&amp;nbsp; यह मेरा मत है.. जिसका शीर्षक&amp;nbsp; है.. मत मानों मेरा मत ! क्योंकि मेरा तो यह भी मत है, कि एक को ललकारने की अपेक्षा सभी को अपरोक्ष रूप से शामिल किये जाने की आवश्यकता है ! &lt;/div&gt;
  124. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  125. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;१७.&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt; इन सब लटकों से पाठकों की संख्या घट सकती है, तो ?&amp;nbsp; मेरी भी तो नहीं बढ़ रही है !&amp;nbsp;&amp;nbsp; लेकिन&amp;nbsp; कमेन्ट-कोला की माँग पर ’कोई&amp;nbsp; भी बंदा ’&amp;nbsp; खईके पान बनारस वाला ’&amp;nbsp; तो नहीं&amp;nbsp; गा सकता .. &quot; मेरे अँगनें में तुम्हारा क्या काम है .. &lt;/div&gt;
  126. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  127. यह रहा &lt;a href=&quot;http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/04/blog-post_11.html#comments&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;कविता जी के कालीदास&lt;/a&gt; का १८ सूत्र ... उन्नीसवाँ सूत्र निच्चू टपोरी का टिप्पणा वाला डब्बा में पड़ेला सड़ेला होयेंगा !&amp;nbsp; बीसवाँ सूत्र तो शायद स्व. इन्दिरा गाँधी का पेटेन्ट रहा है, सो, इस चुनाव में कौन गाये… अबकी बरस भेजऽऽ,&amp;nbsp; उनको रे&amp;nbsp; तू वोटर…&amp;nbsp;&amp;nbsp; गरीबी जो देयँ हटाऽऽय हो &lt;/div&gt;
  128. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  129. &lt;em&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;माहौल गड़बड़ाय रहा है.. लोकतंत्र लड़खड़ाय रहा है... चिट्ठाचर्चा खड़बड़ाय रहा है.. ज़िन्दा सभी को रहना है.. ज़िन्दा हैं.. तो ज़िन्दा रहेंगे भी ! &lt;/span&gt;&lt;/em&gt;&lt;strong&gt;&lt;em&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000f9;&quot;&gt;&lt;/span&gt;&lt;/em&gt;चर्चा चलती रहेगी..&amp;nbsp; मरें चर्चा के दुश्मन ..&lt;/strong&gt; &lt;/div&gt;
  130. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  131. &lt;span style=&quot;color: #9a4e4e;&quot;&gt;कुछ अधिक हो गया क्या ? &lt;br /&gt;&lt;/span&gt;मैं चाहता तो न था , कि छोटे मुँह से बड़ी बातें करूँ ! लोग मुँहफट कहेंगे..&amp;nbsp; पर यदि&amp;nbsp; चर्चा के मोडरेटरगण ने&amp;nbsp; किसी को चर्चा के लिये चुना है, तो यह उन्हीं का अपना वरडिक्ट है । अगला चर्चा करने ही&amp;nbsp; न आये तो दुःखी क्यों ?&amp;nbsp; मैं भी तो ब्लाग&amp;nbsp; लिखने तक&amp;nbsp; ही दुःखी&amp;nbsp; होता हूँ.. जबकि हमारे वरडिक्ट की भी ऎसी तैसी मचा कर भाई लोग संसद ही नहीं पहुँचते, तो ? &lt;/div&gt;
  132. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  133. &lt;/div&gt;
  134. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  135. मैं कब आपसे या किसी और से रात के डेढ़ बजे तक बैठ कर चर्चा अगोरने का हर्ज़ाना माँग रहा हूँ &lt;img alt=&quot;smile_regular&quot; src=&quot;http://spaces.live.com/rte/emoticons/smile_regular.gif&quot; /&gt;&amp;nbsp;&lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #ff0606; font-size: large;&quot;&gt;? &lt;br /&gt;&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt;&lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  136. १७ ही बिन्दु रह गये ?&amp;nbsp; श्री कालीदास जी १७ को १८ ही गिना करते थे, ऎसा उल्लेख मिला है ! &lt;/div&gt;
  137. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  138. &lt;/div&gt;
  139. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  140. हमका लागत है, निट्ठल्ले की आत्मा यहूँ मँडराय लागि काऽऽ हो,&amp;nbsp; तौन अब चलि ?&amp;nbsp; &lt;/div&gt;
  141. &lt;div style=&quot;text-align: justify;&quot;&gt;
  142. &lt;a href=&quot;http://www.mylivesignature.com/&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;img src=&quot;http://signatures.mylivesignature.com/54487/124/80837E7F795654104281124D4D55D312.png&quot; style=&quot;background: none transparent scroll repeat 0% 0%; border-bottom-width: 0px !important; border-right-width: 0px !important; border-top-width: 0px !important;&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;
  143. &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;
  144. &lt;/div&gt;
  145. &lt;/div&gt;</description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/04/blog-post.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><thr:total>7</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-9099601316434635251</guid><pubDate>Sun, 15 Mar 2009 17:58:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-05-02T01:03:25.592+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">टिप्पणियों पर</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">संगी साथी</category><title>नतीज़ा रहा सिफ़र ?</title><description>&lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzp6ZGxpPso_Vhnw1FPFjjuTnvVg_ALl6RQlmTRaAHjHEkxdM0JW-tmJs2aQyHf9LTsCiPUJi0LyKMni_eSp5GTyiv8BYlY2W4MrwDrOms3_YF9cv4stPfbFqleU4dYnBTvO4aywE7YBXU/s1600-h/($@%5B%3E%5B3%5D.gif&quot;&gt;&lt;img title=&quot;नतीज़ा&quot; style=&quot;border-top-width: 0px; display: inline; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; border-right-width: 0px&quot; height=&quot;64&quot; alt=&quot;नतीज़ा&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhdIx1o5eBzEdWSoa0ztN_EPZDnjOvqZqTvmUUB3WqpgIzvnmvB0odHQdgEf_jlumymFgYBKyYVvn7PwPmahfFE188Khk-X_LBupZdrTVe23eaulE9PN7PStc_kEeQp8IZMJ3bzSG1SWONz/?imgmax=800&quot; width=&quot;64&quot; align=&quot;left&quot; border=&quot;0&quot; /&gt;&lt;/a&gt; आज की &lt;a href=&quot;http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/03/blog-post_15.html#comment-form&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;पालीमिक्स-चर्चा&lt;/a&gt; ने मुझे एक बार&amp;#160; फिर बाध्य किया है.. कि मैं भी टपक पड़ूँ ! परमस्नेहिल &lt;a href=&quot;http://www.hindinest.com/lekhak/lavanya.htm&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;लावण्या दीदी&lt;/a&gt; आहत हुईं.. उनकी तात्कालिक प्रतिक्रिया अपना कितना प्रभाव छोड़ पायी होगी.. यह देखना बाकी है ! मैं भी अपने साथी चिट्ठाकारों के विषय-कल्लोल पर यथाशक्ति – तथाबुद्धि कुछ टीप –टाप भी आया ! यहां पर वही दोहराना आत्ममुग्धता के संदर्भ में न लेकर, ‘ ऎसी बहसें टिप्पणी बक्से में ‘ डिब्बा – बंद ‘ हो अपना संदर्भ खो देने को ही जन्म लेती हैं ‘ की धारणा को नकारने को ही है । मुई पैदा हुईं – कोलाहल मचवाया – फिर मर गयीं ! तदांतर विषयांतर का दो तीन&amp;#160; ब्रेक ( &lt;em&gt;राष्ट्रपति शासन या ब्लागपति शासन ?&lt;/em&gt; ) के बाद दूसरे ने स्थान ग्रहण किया.. फिर वही कोलाहल – वही अकाल मृत्यु .. ब्रेक .. एक अलग तरह की तोतोचानी है ! ज़रूरी नहीं, कोई इससे सहमत ही हो.. क्योंकि&amp;#160; मैं नासमझ, निट्ठल्ला कोई अश्वमेध के घोड़े भी नहीं खोलने जा&amp;#160; रहा । जिसको मन हो अपने दुआरे यह दुल्लत्ती जीव बाँध ले, जो भी हो, पर यह सनद रहे &lt;strong&gt;&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#ff0000&quot;&gt;कि..&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;/p&gt;  &lt;div align=&quot;center&quot;&gt;   &lt;table bordercolor=&quot;#ffffff&quot; cellpadding=&quot;3&quot; width=&quot;100%&quot; bgcolor=&quot;#f5f5dc&quot; border=&quot;0&quot;&gt;&lt;tbody&gt;       &lt;tr&gt;         &lt;td&gt;           &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#ad8532&quot; size=&quot;2&quot;&gt;&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#0000a8&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMTpIg5TF0y9bL-ogbZ8a2aen_AfRRZFzOh5BuM20o8kuTxzxh2yutJUnvQDqUHyO806ESx_rpIZCdBynz3lWX9VB6SRolPsdYDzjHllOTbg7M0V6MZV4lajXzUkoWCTwda5Z62pg4bMEf/s1600-h/lavanya-dee%5B5%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img title=&quot;lavanya-dee&quot; style=&quot;border-top-width: 0px; display: inline; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; border-right-width: 0px&quot; height=&quot;190&quot; alt=&quot;lavanya-dee&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYK_ivKBq1rRwC7Vqo7aIWxOy0W7aX_PMoTuB7KUK3M9nXTpoeaZDDsqRsEefTNdOHkwVXrg2bXObLMWnyY3_U6onxovcvMMimDaHL_HPvGMwFQdErywOQyoT7Z9yUI93GaFRecmWDh-5n/?imgmax=800&quot; width=&quot;128&quot; align=&quot;left&quot; border=&quot;0&quot; /&gt;&lt;/a&gt; मैं उपस्थित हो गया, लावण्या दी !                     &lt;br /&gt;मैं कुछ दिनों के लिये हटा नहीं, कि झाँय झाँय शुरु ?                     &lt;br /&gt;इस बहस में आज मुझे अन्य चिट्ठाकारों की भी टिप्पणी पढ़नी पड़ी..                     &lt;br /&gt;पढ़नी पड़ी.. बोले तो, हवा का रूख देख कर टीपना मुझे नहीं सुहाता !                     &lt;br /&gt;खैर... इस पूरे प्रकरण को क्या एक मानव की संघर्षगाथा मात्र के रूप में नहीं लिया जा सकता था ? &lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;            &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#0000a8&quot;&gt;&lt;em&gt;मानव निर्मित जाति व्यवस्था पर इतनी चिल्ल-पों &lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;font color=&quot;#0000a8&quot;&gt;&lt;em&gt;कहीं अपने अपने सामंतवादी सोच को सहलाने के लिये ही तो नहीं किया जा रहा ?&amp;#160; किसी पोथी पत्रा का संदर्भ न उड़ेलते हुये, मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ..&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; यह एक बेमानी बहस है.. क्योंकि ज़रूरत कुछ और ही है !                  &lt;br /&gt;ज़रूरत समानता लाने की है.. न कि असमानता को जीवित रखने की है ?                   &lt;br /&gt;इस बहस से, यह फिर से जी उठा है ! नतीज़ा ?                   &lt;br /&gt;चलिये, सुविधा के लिये मैं भी चमार को चमार ही कहता हूँ,                   &lt;br /&gt;क्योंकि मुझे यही सिखाया गया है.. दुःख तब होता है.. जब बुद्धिजीवियों के मंच से इसे पोसा जाता है !                   &lt;br /&gt;समाज में केचुँये ही सही.. पर हैं तो मानव ?                   &lt;br /&gt;बल्कि यहाँ पर तो, मैं लिंगभेद भी नहीं मानता..                   &lt;br /&gt;यदि हर महान व्यक्ति के पीछे किसी न किसी स्त्री का हाथ होता है.. जो कि वास्तव में सत्य है..                   &lt;br /&gt;तो स्त्री पीछे रहे ही क्यों.. और हम उसके आगे आने को अनुकरणीय मान तालियाँ क्यों पीटने लग पड़ें …                   &lt;br /&gt;या कि लिंग स्थापन प्रकृति प्रदत्त एक संयोग ही क्यों न माना जाये ?                   &lt;br /&gt;चर्मकार कालांतर में चमार हो गये.. मरे हुये ढोर ढँगर को आबादी से बाहर तक ढोने और उसके बहुमूल्य चमड़े&lt;/em&gt;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; &lt;em&gt;&lt;strong&gt;(&lt;/strong&gt; तब पिलासटीक रैक्शीन कहाँ होते थें भाई साहब ? &lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;font color=&quot;#0000a8&quot;&gt;&lt;em&gt;&lt;strong&gt;)&lt;/strong&gt; को निकालने के चलते अस्पृश्य हो गये ! पर क्या इतने.. कि अतिशयोक्ति और अतिरंजना के उछाह में हमारे वेदरचयिता यह कह गये..कि &amp;quot; यदि किसी शूद्र के कानों में इसकी ॠचायें पड़ जायें.. तो उन अभिशप्त कानों में पिघला सीसा उड़ेलने का विधान है &amp;quot;, क्यों भई ?                   &lt;br /&gt;क्या यह भारतवर्ष यानि &amp;quot; जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी &amp;quot; &#39; के उपज नही थे ?                   &lt;br /&gt;या हम स्वंय ही इतने जनेऊ-संवेदी क्यों हैं, भई ?                   &lt;br /&gt;नेतृत्व चुनते समय विकल्पहीनता का रोना रो..                   &lt;br /&gt;उपनाम और गोत्र को आधार बना लेते हैं, क्या करें मज़बूरी कहना एक कुटिलता से अधिक कुछ नहीं ।                   &lt;br /&gt;इसका ज़िक्र करना विषयांतर नहीं, क्योंकि मेरी निगाह में..यह एक बेमानी बहस है.. क्योंकि ज़रूरत कुछ और ही है !                   &lt;br /&gt;मैं उपस्थित हो गया, लावण्या दी !&lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;         &lt;/td&gt;       &lt;/tr&gt;     &lt;/tbody&gt;&lt;/table&gt; &lt;/div&gt;  &lt;p&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsdco3zrDaPlj-PCFPLLPUrg8mtD2ym84YuhclE9BDLHeEW0NQGIojt1iCRsr8vu5QXZia8X403tAm5hULpveDzLSLopML9PZbD9_JhxAl-Z0imFDODS45Ijo2qVSwuIaqauWq1j-h_ldM/s1600-h/image008%5B3%5D.gif&quot;&gt;&lt;img title=&quot;image008&quot; style=&quot;display: inline; margin-left: 0px; margin-right: 0px&quot; height=&quot;240&quot; alt=&quot;image008&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgYK6kqeeSnnMH0rdRaAs3TNyPt8q_A9b79r6y0lbJ3Xxp3A7Q89MNl9yE_ZVMmHJ9s4fe3Tm-OoH4JUKiqw3-XD1veMgdTogQfTnT5FNafaRLAuPrwPr5TiUMIgKuJO2eE-aOFkjGpIz3a/?imgmax=800&quot; width=&quot;200&quot; align=&quot;left&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;em&gt;अब कुछ चुप्पै से.. सुनो      &lt;br /&gt;इन दिनों अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर चल रही बहस में माडरेशन भी एक है ।       &lt;br /&gt;होली पर मेरा मौन ( मोमबत्ती कैसे देख पाओगे.. ? ) विरोध इसको लेकर भी था,       &lt;br /&gt;खु़द तो जोगीरा सर्र र्र र्र को गोहराओगे, अपने ब्लागर भाई को साड़ी भी पहना दोगे..       &lt;br /&gt;टिप्पणी करो.. तो &amp;quot; ब्लागस्वामी की स्वीकृति के बाद दिखेगा ! &amp;quot;       &lt;br /&gt;एक प्रतिष्ठित ब्लाग पर ऎसी टिप्पणी मोडरेशन को ज़ायज़ ठहराने के बहसे को उठा्ने की गरज़ से ही की गयी है ! यहाँ से एक टिप्पणी को सप्रयास हटाना भी यह संकेत दे रहा है.. कि ब्लाग की गरिमा और पाठकों को आहत होने से बचाने का यही एकमात्र अस्त्र है, सेंत मेंत में ऎसी बहसें अस्वस्थ होने से बच जाती है..वह हमरी तरफ़ से एक के साथ एक फ़्री समझो ! &lt;a href=&quot;http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/02/blog-post_20.html#comments&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;मसीजीवी के चर्चा-पोस्ट&lt;/a&gt; से चीन वालों को कान पकड़ कर क्यों नहीं बाहर किया गया था ? वह तो सच्ची – मुच्ची का स्पैम रहा ! मन्नैं ते लाग्यै, इब कोई घणा कड़क मोडरेटर आ ग्या सै !&lt;/em&gt; &lt;strong&gt;&lt;em&gt;राम राम !&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;एक पोस्ट यह भी… &lt;a href=&quot;http://chhaddyaar.blogspot.com/2007/12/blog-post_04.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;मोची बना सुनार&lt;/a&gt;&lt;/p&gt;&lt;br/&gt; &lt;p align=&quot;right&quot;&gt;&lt;a href=&quot;http://www.mylivesignature.com&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;&lt;img src=&quot;http://signatures.mylivesignature.com/54487/124/80837E7F795654104281124D4D55D312.png&quot; style=&quot;border: 0 !important; background: transparent;&quot;/&gt;&lt;/a&gt; &lt;/p&gt;&lt;div class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:c31c4ac7-4d96-4a8e-a164-871e546034c3&quot; style=&quot;padding-right: 0px; display: inline; padding-left: 0px; float: none; padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-top: 0px&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Lavanya+Shah&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Lavanya Shah&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Chitthacharcha&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Chitthacharcha&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/http%3a%2f%2fChhaddyaar.blogspot.com&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;http://Chhaddyaar.blogspot.com&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Caste+discretion&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Caste discretion&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;</description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/03/blog-post.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhdIx1o5eBzEdWSoa0ztN_EPZDnjOvqZqTvmUUB3WqpgIzvnmvB0odHQdgEf_jlumymFgYBKyYVvn7PwPmahfFE188Khk-X_LBupZdrTVe23eaulE9PN7PStc_kEeQp8IZMJ3bzSG1SWONz/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>14</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-6655858844031217649</guid><pubDate>Tue, 17 Feb 2009 22:16:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-02-18T04:34:30.989+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">आब्ज़ेक्शन मी लार्ड</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">टिप्पणियों पर</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">यह कोई तक़ल्लुफ़ नहीं</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">संगी साथी</category><title>जैसा देश वैसा भेष</title><description>&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;आम तौर पर मैं पहेली-पचड़े में नहीं पड़ता । &lt;a href=&quot;http://bhujang.blogspot.com/2009/02/blog-post.html&quot;&gt;एक सर्प पहेली जिसका उत्तर मुझे भी नहीं मालूम ! कोई बताएगा ?&lt;/a&gt;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; इस विचारोत्तेजक पहेली ने मुझे टिप्पणी बक्से में ज़बरन ढकेल ही दिया । उत्तर देने से पहले सतर्क होकर इधर उधर देखा,&amp;#160; सो माहौल के अनुसार मेरा उत्तर था ; &lt;i&gt;&lt;font color=&quot;#0000ff&quot;&gt;भाई, मैं तो पटखनी खा गया,        &lt;br /&gt;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; थोड़ा आयोडेक्स मिल सकता है, क्या ?         &lt;br /&gt;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; उसे मल कर काम पर चला जाय ।&lt;/font&gt;&lt;/i&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;सर्प-पहेली का मेरा उपरोक्त उत्तर &lt;strong&gt;&lt;em&gt;&#39; जैसा देश वैसा भेष &#39;&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt; नीति के अंतर्गत ही लिया जाय । उत्तर देकर मैं संतुष्ट था कि साँभा अगली कड़ी में तो खेल का मज़ा दिखायेगा ही । पर सरदार खुस न हो सका । आज चंद घंटे पहले अपनी वैलेन्टाइन को सँवारने की गरज़ से आया, तो मेल बक्से ने साउंड एलर्ट दिया. खोला तो वहाँ पहेली के उत्तर की कड़ी विराजमान है, चलो देखें ! &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;http://bhujang.blogspot.com/2009/02/blog-post_16.html&quot;&gt;क्या इडेन के बगीचे में अजगर था ...?&lt;/a&gt; का उत्तर प्रकाशित है “ यह पता चला है कि वह अजगर था जिसने बिचारे आदम और हौवा को भवसागर में उतरने और बल बच्चे पैदा करने को उकसा दिया था -इसलिए आज भी कई संस्कृतियों में साँप लिंग का प्रतीक का मन लिया गया है ! “ हालाँकि इसके साथ ही एक प्रश्नचिन्ह नत्थी करके इसे उत्तर का डिस्क्लेमर होने का टैग भी दिया है । सो, एक अच्छा प्रसंग असमय दम तोड़ता दिख रहा है । बात को आगे बढ़ाते हुये..&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;आपसे असहमत होने की अनुमति चाहूँगा.. मेरे विद्वान मित्र !&amp;#160; दो संभावनायें दी गई हैं.. अज़गर और पुरुष जननाँग ! पर.. संभावनायें अपनी प्रकृति के अनुसार अनंत होती हैं, न दोस्त ? सो.. मैं अपने इस पृष्ठ की असहमति का टैग थोड़ा जी लेना चाहता हूँ, कोई बुराई ?&amp;#160; आपको असहमत होने का पूर्ण अधिकार है, क्योंकि मैं तालिबानी नहीं.. कि जो उनसे सहमत नहीं.. उनका इस दुनिया में स्थान नहीं !&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;आपका... अज़गर ?&amp;#160;&amp;#160; कभी नहीं... कदापि नहीं । कविता जी द्वारा प्रतिपादित ‘ पुरुष जननांग ? ‘ अरे राम भजो भाई !&amp;#160; &lt;br /&gt;इस पोस्ट के&amp;#160; कारण हैं, क्योंकि मेरे पास पड़े इसके संदर्भ अकारण ही व्यर्थ हो रहे थे ।&amp;#160; देखिये स्वयं की लाइब्रेरी के मेरे संदर्भ :&lt;/p&gt;  &lt;blockquote&gt;   &lt;p&gt;&amp;#160; &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#fb0000&quot;&gt;1.&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt; &lt;strong&gt;&amp;quot; So The Serpent (satan) successfully tempts Eve to &amp;quot;eat the forbidden fruit&amp;quot; and everything changed forever as innocence was lost.&amp;quot;&lt;/strong&gt;&amp;#160; &lt;em&gt;यहाँ वर्जित फल को ही आप पुरुष जननांग से&amp;#160; परिभाषित तो&amp;#160; कर सकते हैं, क्योंकि आगे&amp;#160; दिया है कि.. ..&amp;#160;&amp;#160; &lt;/em&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&amp;#160;&lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#fb0000&quot;&gt;2.&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt; &lt;strong&gt;And Adam and Eve heard the        &lt;br /&gt;Voice of The Lord and they were         &lt;br /&gt;ashamed and covered themselves with fig leaves.&lt;em&gt; &amp;quot;&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt;&lt;em&gt;&amp;#160; यह परिणाम मिला उन्हें, यह वर्जित फल चखने का..&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; जो कि सेब तो कदापि नहीं हो सकता । &lt;/em&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p&gt;&lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#fb0000&quot;&gt;3.&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt; &lt;strong&gt;The shame of Adam and Eve clearly shows a new &amp;quot;knowledge&amp;quot; and awareness of sexuality and their own nakedness. &lt;/strong&gt;&lt;em&gt;अपने माइथोलोजी में.. खीर खाने से सन्तानोपत्ति के कई उल्लेख हैं, यह तथाकथित खीर आखिर वीर्य क्यों नहीं ?&amp;#160; सेब या खीर पेट में पहुँच जाने मात्र से क्या गर्भाधान हुआ करता है ?&amp;#160; फिर तो, यह देश में कब का प्रतिबन्धित हो गया होता !क्योंकि इसके परिणामों से चेताते हुये आकाशवाणी &lt;/em&gt;&lt;font size=&quot;1&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#fb0000&quot;&gt;&amp;#160;&lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#000000&quot;&gt;(&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt; &lt;em&gt;इस पर फिर कभी ..&lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;font color=&quot;#000000&quot;&gt;&lt;strong&gt; )&lt;/strong&gt;&lt;/font&gt;&lt;/font&gt;&amp;#160; &lt;em&gt;होती है, कि..&amp;#160; &lt;br /&gt;&lt;/em&gt;&lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#fb0000&quot;&gt;4.&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt; &lt;strong&gt;And the Lord said unto the woman,&lt;/strong&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p&gt;&lt;strong&gt; &amp;quot;You shall have pain        &lt;br /&gt;in childbirth and your desire         &lt;br /&gt;shall be towards your husband.&amp;quot;&lt;/strong&gt;       &lt;br /&gt;&lt;em&gt;उपरोक्त सभी संदर्भ&lt;/em&gt; &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000ff&quot;&gt;Ontario Consultant&#39;s Book on Religious Tolerance&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;&amp;#160; &lt;em&gt;से लिये गये हैं ! &lt;/em&gt;&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#ff1a8c&quot; size=&quot;2&quot;&gt;यह सी.डी. पर उपलब्ध है।          &lt;br /&gt;&lt;/font&gt;बात को और आगे बढ़ाते हुये लीमिंग बन्धुओं को भी गवाह कठघरे में बुलाना चाहूँगा&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p&gt;&lt;strong&gt;The Punishment upon Eve (womenhood) was pain in childbirth. This seems directly linked to sexual intercouse and pregnancy. Also her &amp;quot;desire&amp;quot; is to bear her husband&#39;s children yet have to endure this great suffering to do so. This &amp;quot;curse&amp;quot; provides more proof that &amp;quot;eating the forbidden fruit&amp;quot; does represent SEX. Soon after their &amp;quot;eating of the fruit&amp;quot;, &lt;u&gt;Adam and Eve were banned from the tree of life&lt;/u&gt; (&lt;font color=&quot;#008844&quot;&gt;that prevents aging leading to death&lt;/font&gt;). &lt;/strong&gt;&lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#0000ff&quot;&gt;D. Leeming &amp;amp; M. Leeming, &amp;quot;A Dictionary of Creation Myths&amp;quot;, Oxford University Press, New York, NY,&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;/p&gt; &lt;/blockquote&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;एहि बीच अज़गर महाराज कहाँ दुबक गये, हो ?    &lt;br /&gt;उनको सामने लाने का प्रयास करता हुआ, एक मान्य ग्रँथ &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000ff&quot;&gt;Urantia Book&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;&amp;#160; कहता है, कि जिसको आदम-हव्वा गँदा कर दिये थे , ऊ वाला ईडेन गार्डेन कोलकाता में नहीं, साईप्रस में पहले से ही था । &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_w198e_x3cotnfpRajR83CSyMEG_Txj0-daN_3utp-Yj7_p_7CMR3veAi6HWduPoEl5O4lrWJvNoq5uO9idmRlJBoLIrT9xfxbLd-jgqL57KK4hDArMA6z0VlPESG38CrDKPu9Xqf3JbD/s1600-h/Sarmast_Atlantis_525%5B6%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img title=&quot;Sarmast_Atlantis_525&quot; style=&quot;border-top-width: 0px; display: inline; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; border-right-width: 0px&quot; height=&quot;216&quot; alt=&quot;Sarmast_Atlantis_525&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjaxRU1q2lVRL47y0lJw4fknPvk7KAqa2C5KtENSFnp-NPbB5mhYl_JQEajXuVx35fXASf0_2aWwcioc-GyoIMyZVgu2kqO6GAwa1dpxjSpZiH0crh9fJsNwU5vQnHrc885_ym9tWu4q2B/?imgmax=800&quot; width=&quot;240&quot; align=&quot;right&quot; border=&quot;0&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/p&gt;  &lt;blockquote&gt;   &lt;p&gt;&lt;em&gt;&lt;font size=&quot;1&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#fb0000&quot;&gt;&lt;font size=&quot;2&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#0000ff&quot; size=&quot;3&quot;&gt;&lt;strong&gt;Urantia Book :&lt;/strong&gt;&lt;/font&gt;&lt;/font&gt;&lt;/font&gt;&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p&gt;&lt;em&gt;&lt;font size=&quot;1&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#fb0000&quot;&gt;&lt;font size=&quot;2&quot;&gt;&lt;strong&gt;Revealing the Mysteries of God, the Universe, Jesus&amp;#160; and&amp;#160; Ourselves.&lt;/strong&gt;&lt;/font&gt; &lt;/font&gt;&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;    &lt;p&gt;&lt;strong&gt;As it has on numerous occasions, current scientific discovery confirms the dates, places, and events originally disclosed in The Urantia Papers more than 70 years ago. One of those recent discoveries shows a connection between &lt;font color=&quot;#0000ff&quot;&gt;the legend of the lost continent of Atlantis and of the first Garden of Eden.&lt;/font&gt; The picture at right&amp;#160; is from Robert Sarmast’s newly released book, Discovery of Atlantis &lt;em&gt;&lt;font color=&quot;#d900d9&quot; size=&quot;1&quot;&gt;(Copyright Robert Sarmast, Origin Press, October 2003).&lt;/font&gt;&lt;/em&gt; It pinpoints the lost continent of Atlantis in the exact location that The Urantia Book describes as that of the first Garden of Eden. &lt;/strong&gt;&lt;/p&gt; &lt;/blockquote&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;और किसी अज़गर के साईप्रस में ग्रीनकार्ड लेने का कोई रिकार्ड नहीं है । सो, अज़गर के साईप्रस में देखे जाने के सबूत का कोई अभिलेख लाइयेगा, तो.. मज़ा आयेगा असली खेल का !&amp;#160; आप द्वारा वैज्ञानिक जानकारियों को हिन्दी में दस्तावेज़ीकरण करने के प्रयास का यह टाइमखोटीकार सदैव से प्रशंसक रहा है, इसीलिये अपना मत / पक्ष रख रहा हूँ । आगे आपकी मर्ज़ी !&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFTndiblv-m0ZEj3lYQ8dp57wogv8E05Vh2sU8McxapLdAEpoR0oxesi7vz2iZO2589H_Bvnn0gpS0urdpm5e8f2WMXIm1wl3LCSDXxae80ZbEHqewq4-oiHFtPuf2mqmX0XVkPUG_HlyW/s1600-h/Keyway.ca_eden%5B13%5D.jpg&quot;&gt;&lt;img title=&quot;Keyway.ca_eden&quot; style=&quot;border-top-width: 0px; display: block; border-left-width: 0px; float: none; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; margin-right: auto; border-right-width: 0px&quot; height=&quot;256&quot; alt=&quot;Keyway.ca_eden&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixh7o5osAdJGtiQkLbVYos4Rl3drW1lr6Z0VbSEdnK0TKLeNDkQWfSX7HmlVb6J7MDsAVuu8OAJ81gJ11ec8gyOYvfsVqJGTZvjDblWLKWf9A2C3rv9lS417oQAT4pXjWHZdN-JNXTERsg/?imgmax=800&quot; width=&quot;416&quot; border=&quot;0&quot; /&gt;&lt;/a&gt;पिछले वर्ष दिल्ली से किताब-ए-अक़दस ( &lt;strong&gt;Kitab-i-Aqdas&lt;/strong&gt; ) ले आया था, जिसमें भी इससे सम्बन्धित प्रसंग का उल्लेख है, थोड़ा ही पढ़ा था, कि पंडिताइन महाशय ने गायब कर दिया है, कि &amp;quot; तुम्हारा दिमाग ख़राब हो गया है ! &amp;quot;&amp;#160; यदि आप भी मेरे लिये यही सब&amp;#160; न मान रहे होते तो.. यहाँ संदर्भित किया जा सकता था । सो, चलता हूँ.. अपनी वैलेन्टैनिया को सँवारने, जो निश्चित समय से विलम्ब से चल रही है । यह ज़रूरी नहीं है, कि सभी&amp;#160; भारतीय परंपरा के&amp;#160; विलम्बित रहो नीति&amp;#160; के सभी फ़ालोअर ही हों ?&lt;a href=&quot;http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/02/blog-post_16.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;वैलेन्टाइन डे के दिन भेलपूड़ी खाने पर भाई्कुश&lt;/a&gt; पहले ही डाँटें जा चुके हैं । कहीं हमारा भी लम्बर लग गया कि, समय-चौकस विदेशी आदत वाले संस्कृति का यह त्यौहार इतना लेट काहे कर रहे हो, भाई&amp;#160; !&amp;#160; तो,&amp;#160; आईएगा आप हमको बचाने ?&lt;/p&gt;  &lt;div class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:4ca83274-613e-40a1-8391-c1350e2929d7&quot; style=&quot;padding-right: 0px; display: inline; padding-left: 0px; float: none; padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-top: 0px&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Adam+and+Eve&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Adam and Eve&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Forbidden+fruit&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Forbidden fruit&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Urantia+Book&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Urantia Book&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/A+Dictionary+of+Creation+Myths&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;A Dictionary of Creation Myths&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Womenhood&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Womenhood&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Hindi&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Hindi&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/02/blog-post_18.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjaxRU1q2lVRL47y0lJw4fknPvk7KAqa2C5KtENSFnp-NPbB5mhYl_JQEajXuVx35fXASf0_2aWwcioc-GyoIMyZVgu2kqO6GAwa1dpxjSpZiH0crh9fJsNwU5vQnHrc885_ym9tWu4q2B/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>19</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-5448059575723775711</guid><pubDate>Tue, 03 Feb 2009 21:45:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-02-12T03:29:28.269+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">अपठनीय</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">कवितायें</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">कुछ तो है</category><title>बिन बुलायी, एक अपूर्ण कविता</title><description>&lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;आज व्याधिग्रस्त माया श्रीवास्तव धुर 5 बजे अवतरित हुईं, टालने का प्रश्न नहीं.. पर थोड़ी व्यग्रता थी क्योंकि यह आज के परामर्श समय की अंतिम बेला थी, हिस्ट्री लेने के दौरान मेरे मुँह से &#39; परिवेश &#39; शब्द का उल्लेख&amp;#160; हुआ । बस, उनके पतिदेव महोदय ने मुझसे एक छोटा सा ब्रेक लेने का अनुयय किया,&amp;#160; और बिना किसी भूमिका के यह पंक्तियाँ सुनाने लग पड़े । एक-डेढ़ मिनट के बाद ही मैंने एक ट्रैफ़िक पुलिसिया इशारा कर उन्हें रूकने का संकेत दिया, और अपना काम पूरा कर सका.. पर एक स्थानीय कवि के इस कविता की पंक्तियाँ रह रह कर जैसे चिंचोड़ रही है, इतना अलाय-बलाय, लटरम-पटरम नेट पर ठेलता &lt;strong&gt;/&lt;/strong&gt; पेलता रहता है, &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#55aaaa&quot;&gt;थोड़ा बहुत जगह मुझे भी दे दे ।&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt; &lt;font color=&quot;#0000e8&quot;&gt;मैं खीझ गया,&lt;/font&gt;&lt;font color=&quot;#cfb418&quot;&gt; &lt;/font&gt;&lt;font color=&quot;#ff09ff&quot;&gt;&lt;strong&gt;&amp;quot; तू तो अभी अपूर्ण है.. जो कुछ लाइनें छोड़ आयीं है.. जा उन्हें भी लेकर आ, तो विचारार्थ सहेज लूँगा । &amp;quot;&lt;/strong&gt;&lt;/font&gt; &lt;font color=&quot;#e09e25&quot;&gt;&lt;strong&gt;कविता के मुखड़े से ही उसके सामयिक होने का दंभ छलका पड़ रहा था ।&lt;/strong&gt; &lt;/font&gt;&lt;font color=&quot;#000000&quot;&gt;सो, एकदम से तमक गयी, तैश में अपनी दो-चार और लाइनें झटक कर फेंक दीं और मटक कर चल पड़ीं &amp;quot; तू तो स्वयं में ही अपूर्ण है मानव ! निरूपाय होकर या विभोर होकर, तू मेरे आँचल में ही आँसू छलकाने आता है । अब इतना बढ़ चढ़ कर तो न बोल ।&amp;quot; ई का हो ? अई देखा, कवितिया एतना अकड़ती काहे है, भाई ? हम ठहरे ताऊ स्कूल आफ़ ब्लागर के ज़ाहिल-बुच्च डाक्टर मनई, जो असोक चक्रधर जी से एथिआ ई कबीता की खास फरमाईसी परिभाखा लिखाईस है :&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#6666ff&quot;&gt;&lt;strong&gt;गोया रोगी होगा पहला कवि, कराह से उपजा होगा गान&lt;/strong&gt;&lt;/font&gt;     &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#ff7575&quot;&gt;टीसती फुड़िया से चुपचाप ,&amp;#160; बही होगी कविता अनजान&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;अरी दईय्या रे, कविता जी बिफ़र कर पलटीं.. &amp;quot;ऎई, मवाद से मेरी तुलना तो करना मत ? पहले ही मेरा ऋँगार पोंछ पाँछ कर दुनिया की गंद मेरे से परोसवा रहा है, और अब सीधे सीधे मवाद पर मत उतार ।&amp;quot; फिर ठिठक कर जैसे मुझे निरूत्तर करने को प्रहार किया, &amp;quot; अच्छा चल, मवाद ही सही.. लेकिन बह जाने से तू और तेरे रोगी का दर्द हल्का हुआ कि नहीं, बोल ? &amp;quot; बोलिये न !&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVmRBYJChqqb1eiC99Ue50lH8oDRiIF3zAyVWINwdhrTNzbw-Js9pJ83rqLoOB80dlMeHPgwLV25BquIdswxaa5WEwuIE1Nghf8tvz4zDVG1EuTI99kJ4ZprK7jkchBSxdsAhLsekEdE9E/s1600-h/feelingwarpedv%5B4%5D.gif&quot;&gt;&lt;img height=&quot;100&quot; alt=&quot;feelingwarpedv&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2vUTkAmhQ1iSp0cY5hMHqJICS_sQyIExn25HRP8_5zV1JkoYYpNQnnCxjsyjU-zkLdZx-Pz8OQ4yXHRtH55_gA6ThT4bGABSo1VrtiXLtBlSN9iGn6Ojx8aRtTlcY8o05UFyhkU0kUkJI/?imgmax=800&quot; width=&quot;100&quot; align=&quot;left&quot; /&gt;&lt;/a&gt;अय-हय, इनका देखो&amp;#160; ? अधूरी हैं, तब ये हाल है, दो चार अच्छी लाइनें और मिल जायें तो हम जैसे टाइमखोटीकारों की गुलामी भी मंज़ूर न करें ! सो, मैंने अपना पिंड छुड़ाने की कोशिश की, &amp;quot; अच्छा चल, तू जैसी है वैसी ही रह, मेरे को क्या ? आओ, जरा&amp;#160; इधर को आ.. तुझे अंतर्जाल पर टाँग दूँ.. ताकि तेरी हसरत भी पूरी हो जाये । पर तेरी वज़ह से कोई मुझे हूट-हाट करेगा, तो तेरा गला घोंट दूँगा । वईसे भी ईहाँ ब्लाग-प्रदेश में गुणीजन अल्पसंख्यक हैं ! और यह बहुसंख्यक समाज भी चर्चाजगत का अल्पसंख्यक कोटा&amp;#160; तक हड़पे बैठे हैं,&amp;#160; हाँज्जी.. सच्ची !&amp;#160; उसको क्या कहते हैं.. हाँ, तो&amp;#160; अपलोड होते होते&amp;#160; भी वह&amp;#160; ढीठायी से हँसती है... डाक्टर,&amp;#160; बहाना चाहे जो भी बना लो.. पर गाहे बगाहे अपनी सुविधानुसार मेरा गला तुम लोग वैसे भी घोंटते रहते हो कि नहीं ?&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;left&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#c89c1a&quot;&gt;ज&lt;/font&gt;&lt;font color=&quot;#977613&quot;&gt;न जन कैसे जी रहा है, उमस के वातावरण में      &lt;br /&gt;दुःस्वप्न में दिन बीतते रात बीतती जागरण में &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;left&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#977613&quot;&gt;है यदि बेशर्म आँखें, घूँघट व्यर्थ ही क्या करेगा      &lt;br /&gt;मानवता नग्न घूमती सौजन्यता के आवरण में &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;left&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#977613&quot;&gt;कपटयुग है घोर यह, हुये राम औ&#39;&amp;#160; रावण एक हैं      &lt;br /&gt;लक्षमणों का ही हाथ रहता आज सीताहरण में &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;left&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#977613&quot;&gt;शब्द को पकड़ो यदि तो सहसा अर्थ फिसल छूटते      &lt;br /&gt;सन्धि कम विग्रह अधिक आज क्यों व्याकरण में &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;left&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#977613&quot;&gt;छल-बल के माथे मुकुट है सत्य की है माँग सूनी      &lt;br /&gt;क्यों कोयल गीत सीखती बैठ कौव्वों के चरण में &lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;left&quot;&gt;&lt;font color=&quot;#977613&quot;&gt;चिढ़ा रहे&amp;#160; ये तुच्छ जुगनू चाँदनी के चिर यौवन को      &lt;br /&gt;भगत बगुले&amp;#160; हैं मेंह हड़पते हँस के छद्म आवरण में&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;यह मुँहजोर ठहाके के साथ ऊपर से भी एक ताना कसने से बाज न आयी, &amp;quot; अब, अब.. इस स्थिति की जैसी पूर्णता चाहता है.. वैसी लाइनें तू ड्राइंगरूम में आराम से चाय सुड़क सुड़क कर गढ़ता रह ! या फिर, वर्ष दर वर्ष अनाचार कि नयी लाइनें स्वतः ही जुड़ती जायेंगी और तुझे बिना प्रयास ही अपनी दुर्दशा के नये तराने मिलते रहेंगे ।&amp;quot; पर, दो हज़ार से कम में इसे मंच से न पढ़ना&lt;/p&gt;  &lt;div class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:dd7c8baf-e9b3-41eb-8d8b-7e5a9eb0b7b4&quot; style=&quot;padding-right: 0px; display: inline; padding-left: 0px; float: none; padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-top: 0px&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Chitthacharcha&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Chitthacharcha&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%95%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a4%be&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;कविता&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Hindi+Poetry&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Hindi Poetry&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%85%e0%a4%b6%e0%a5%8b%e0%a4%95+%e0%a4%9a%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%a7%e0%a4%b0&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;अशोक चक्रधर&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Hindi+Satire&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Hindi Satire&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%85%e0%a4%82%e0%a4%a4%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%b2&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;अंतर्जाल&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Dr.+Amar+Kumar&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Dr. Amar Kumar&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%9b+%e0%a4%a4%e0%a5%8b+%e0%a4%b9%e0%a5%88&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;कुछ तो है&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/02/blog-post_04.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2vUTkAmhQ1iSp0cY5hMHqJICS_sQyIExn25HRP8_5zV1JkoYYpNQnnCxjsyjU-zkLdZx-Pz8OQ4yXHRtH55_gA6ThT4bGABSo1VrtiXLtBlSN9iGn6Ojx8aRtTlcY8o05UFyhkU0kUkJI/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>16</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-2326691313030168534</guid><pubDate>Mon, 02 Feb 2009 19:02:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-02-03T00:38:10.191+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">आब्ज़ेक्शन मी लार्ड</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">कुछ तो है</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बेतक़ल्लुफ़</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">संगी साथी</category><title>क्षमा करें डा. मान्धाता</title><description>&lt;p&gt;&lt;a href=&quot;http://apnamat.blogspot.com/2009/02/blog-post.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;ब्लाग में आख़िर क्या लिखा जाना चाहिये..&lt;/a&gt;&amp;#160; पढ़ कर मेरी प्रतिक्रिया रोके ना रूक सकी ।     &lt;br /&gt;बड़ा अनुकूल विषय है,सो टिप्पणी के रूप में यह पोस्ट यहीं चेंप देता हूँ । &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6z9J0wDrdM7JlRa58Z35Ln6J2Ys7BJIc2LhRh2pAKDCJxUlwRjMk7XS5fa9ICMFWLOfHJF8PZJBOCP8WWhSRory6xoP5vO7HuKf9u-mjT-hzcXR7eBUr8MJz56P9B6zN36-JzJWxltLB5/s1600-h/184.gif&quot;&gt;&lt;img height=&quot;118&quot; alt=&quot;18&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfFBC5wZGfBPkFoH8s8KG4mxBeam_SSbq-YAmgEmwwaPRhHg55szggBvGPLbf6cwPe6jTsD6hgLZ94vopehABHYCmG7SqJ6ZKZlCt8k87t4XP8m4MzqPUiaBJfe0owGEw5DE6KLcp2UFOI/?imgmax=800&quot; width=&quot;360&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;डा. मान्धाता जी, आपने मेरा मनोनुकूल विषय उठाया है, अतएव..    &lt;br /&gt;सहमत हूँ, कि हिन्दी ब्लागिंग स्तरहीनता से ग्रसित है ।     &lt;br /&gt;पर किसी भी घटक को स्तरहीन मानने के सभी के अपने अपने मापदंड हैं, और सभी ज़ायज़ हैं ।&lt;/p&gt; हिन्दी किताबों के स्टाल पर, यदि भीष्म साहनी और कृष्णा सोबती शोभायमान हैं..   &lt;br /&gt;तो उनको काम्बोज, शर्मा और भी न जाने कौन कौन अँगूठा दिखाते धड़ाधड़ माल बटोर रहे हैं ।   &lt;br /&gt;यह अपनी अपनी रूचि है.. और व्यवसायिकता की माँग है ।   &lt;p&gt;पर, डा. मान्धाता, इसे बहस का मुद्दा न बनाते हुये मैं केवल यह बताना चाहूँगा,    &lt;br /&gt;कि यह तथाकथित स्तरहीनता हर भाषा के ब्लागिंग में समानांतर चलती रही, फलती फूलती और फिर दम भी तोड़ती रही है ।     &lt;br /&gt;यहाँ भी यह स्तरहीनता आर्कुटीय हैंग-ओवर के चलते उपस्थित है ।     &lt;br /&gt;साथ ही, साहित्यतिक स्तर बनाये रखने को कृतसंकल्पित ब्लाग भी यहाँ उपस्थित हैं ।     &lt;br /&gt;सो, दोनों ही समानांतर रूप से चलने चाहियें, हम अपना स्वरचित अंतर्जाल पर देते रहें.. नाहक क्यों परेशान हों ? &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgpvOo-6kXE0Xhn3jPvEul59dQ5-jNVifNND0SLoypXlR0cLgJc4o6HnqBTkREnpofCRHTVvtJpsmr3tXDvYBeMyRFuORv9rLnz6ulJsc2nYjIg5AVuFfALk5B8A6w5m_CcygdDhSIqZqdU/s1600-h/1084.jpg&quot;&gt;&lt;img height=&quot;194&quot; alt=&quot;108&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiRnLNrlymBgObG4Wr31BdPknsxoxJhh4Iw9c6lNwehffJHXphFIiggZN7rKxZu1TI6_UeT5mJpelNwMKJ_kmvjd_hISjmTxgYNB8o7RybdHvtF__HyShon_hgSKsYfnH7e4KOc5QliQ3XD/?imgmax=800&quot; width=&quot;360&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;अंग्रेज़ी ब्लागिंग को मापदंड का आदर्श मानना तर्कसंगत नहीं है,    &lt;br /&gt;फिर तो, अपनी पहचान ही तिरोहित होने का खतरा सामने आ खड़ा होता है ।     &lt;br /&gt;अंतर्जाल पर हिन्दी-लेखन को बढ़ावा देने की मुहिम के पीछे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के     &lt;br /&gt;अपने निहित अदृश्य स्वार्थ हो सकते हैं... पर यह बाज़ार आधारित एक अलग ही मुद्दा है । &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;कुछ भी लिखते वक़्त, कम से कम मैं तो यह ध्यान रखता हूँ,    &lt;br /&gt;कि यदि इसे आगामी 25-30 वर्षों के बाद की पीढ़ी पढ़ती है,     &lt;br /&gt;क्योंकि लगभग हर सर्च-इंज़न के डाटाबेस में हिन्दी का अपना स्थान होगा.. ..     &lt;br /&gt;तो इस सदी और दशक के हिन्दी ब्लागिंग के किशोरावस्था को किस रूप में स्वीकार करेगी ? &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;यदि टिप्पणी के अभाव में कुछेक ब्लाग दम तोड़ते हैं,    &lt;br /&gt;तो उस ब्लागर की हिन्दी के प्रति निष्ठा पर संदेह होने लगता है ।     &lt;br /&gt;पर, यह भी यकीन मानें कि वह आपके ऎसे किसी संदेह की परवाह भी नहीं करते ।     &lt;br /&gt;ट्रैफ़िक-टैन्ट्रम और टिप्पणी प्रेम पर मेरा कटाक्ष, आप लगभग मेरे हर पोस्ट में देख सकते हैं । &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;हाँ, एक गड़बड़ और भी है, जब हम अनायास किसी न किसी स्थापित (?) ब्लागर को    &lt;br /&gt;उसकी पाठक संख्या से ही अँदाज़ कर अपना आदर्श बना बैठते हैं या जब अपने किसी समकक्ष पर नज़र डालते हैं,     &lt;br /&gt;और पाते हैं कि &#39;सस्ती वाली साबुन की बट्टी के बावज़ूद भी उसकी कमीज़ मेरे से सफ़ेद क्यों ?&#39;     &lt;br /&gt;पर, यह भी तो संभव है, कि आपको सस्ता लगने वाला माल उसकी औकात से अधिक मँहगा हो ! &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3_BDG59GHg47hH2U83NjjrEU0xxAaJms1b65D2CJ4UTXR0Nd3Cx21UPYE9tc7kFDA86WtaFchVlF4TAj0PjVJkSP8KNlOUtCCPwVNK35Z8DC8YeQkZ5n4o7cmXIXq-kxDWpXGMKCfuhKm/s1600-h/100811.gif&quot;&gt;&lt;img height=&quot;256&quot; alt=&quot;1008&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgO-y4LfUkmQ4AqOg4BcALHyEjjzXQngimKFd3ju1MUf2zx3wo-cGsioZdwTOVgsuDGYEky8xr9OrO1eO311NUXJHd9EK5Bs8U-Uqd2M6fMZWYV6xlzEOomBcc55lIff0TWc5GJYmWSpEcl/?imgmax=800&quot; width=&quot;360&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;स्तरहीन और स्तरीय के मध्य के बीच की खाई जब पाट नहीं सकते,    &lt;br /&gt;तो उसमें झाँकने और उसकी गहराई आँकने से लाभ ही क्या है ?&lt;/p&gt;  &lt;div class=&quot;wlWriterSmartContent&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:7db1c092-1029-4624-89d1-d2c83b562234&quot; style=&quot;padding-right: 0px; display: inline; padding-left: 0px; padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-top: 0px&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%a6%e0%a5%80%20%e0%a4%ac%e0%a5%8d%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;हिन्दी ब्लागिंग&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Blogging&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Blogging&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%aa%e0%a4%a3%e0%a5%80&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;टिप्पणी&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Indic&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Indic&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%b0%e0%a4%b9%e0%a5%80%e0%a4%a8%e0%a4%a4%e0%a4%be&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;स्तरहीनता&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Hindi&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Hindi&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/02/blog-post_03.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfFBC5wZGfBPkFoH8s8KG4mxBeam_SSbq-YAmgEmwwaPRhHg55szggBvGPLbf6cwPe6jTsD6hgLZ94vopehABHYCmG7SqJ6ZKZlCt8k87t4XP8m4MzqPUiaBJfe0owGEw5DE6KLcp2UFOI/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>8</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-5744082977684544181</guid><pubDate>Sat, 31 Jan 2009 20:18:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-02-01T03:25:58.826+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">अपठनीय</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">टिप्पणियों पर</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बुरबकिया पोस्ट्स</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">संगी साथी</category><title>ऎसी आज़ादी और कहाँ, आज़ाद ख़्याल विवेचन</title><description>&lt;p&gt;विवेक भाई &lt;a href=&quot;http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/01/blog-post_27.html&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;आग लगा कर&lt;/a&gt; अगले हफ़्ते के लिये बाई कर गये । गोया, चर्चाकार न हुये ज़मालो हो गये । यह तीसरी बार है, जब मैं इन चिट्ठाचर्चा वालों के उकसावे में पोस्ट लिखने को मज़बूर हो रहा हूँ । भुस्स मे आग लगा कर बी ज़मालो दूर खड़ी । &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;मेरी पिछली कई पोस्ट से तो अंदाज़ ही लिया होगा, कि ई डाक्टर धँधे में जैसा भी&amp;#160; ठस्स हो, लेकिन यहाँ दिमाग का निख़ालिस भुस्स डम्प करने आता है । भगवान ठस्स भेजा देता, तो ई आग लगबे काहे करती&amp;#160; ? सो भगवान दुश्मन के दिमाग में&amp;#160; भी ऎसा भूसे का ढेर भर कर न भेजे । इन&amp;#160; चर्चाकार ने गणतंत्र-दिवस पर पोस्ट लिखने वालों की पूरी क्लास ले ली । पाखंडम शरणम गच्छामि संस्कृति में&amp;#160; हम&amp;#160; भी&amp;#160; पाखंड-देव से रक्षा की भीख माँगते हुये,&amp;#160; बरामद हुये, ऊ हमरा बेकूफ़ी पर हँस दीये,&amp;#160; और का हो ?&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhaUjeHkMrzs67enLzv3g5SAnB-tavodD7qs6JmvlbDBc9vQCeMbtkpA0auDwph2BZtWc5kbWG3j3mHeNuVxPZTKXr-qcQcvXRTzHjRg2qEIkX7lRsGW61yVkLatvgWpqq6u9nCTJaJzogK/s1600-h/amar5.gif&quot;&gt;&lt;img height=&quot;438&quot; alt=&quot;ऎसी आज़ादी और कहाँ-अमर&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjaBP52pWPpF37eUtzyv0orge1Efu66hlvcYSQ3jApapi-gx9hygK9NvNnCUM4wba7aIC1f2I8R9HBZoJOgNNEKH7_U_CZQ5csjebRCYwZgnqQ1LW52MUUgQ8h0cgUqCMp3wYAfC6MiUp-o/?imgmax=800&quot; width=&quot;270&quot; align=&quot;left&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;26 जनवरी मैं क्लिनिक कर्मचारियों की छुट्टी रखता हूँ, सो आते जाते दिन भर नेट-ब्राउज़र को हँकाता रहा । ससुरा ब्राउज़र इधर भागे उधर भागे, और.. जाकर टिक जाये गणतंत्रीय पोस्ट पर ! मैंनें भी सोचा.. चलो 26 जनवरी 2009&amp;#160; वन टाइम इन इंडिया इवेन्ट है, सो&amp;#160; गूगल वाले&amp;#160; भारत&amp;#160; का अपना&amp;#160; नमक- टाटा नमक अदा कर रहे हैं । लिहाज़ा ज़्यादा माइंड-उंड भी नहीं किया । कोई पोस्ट हमसे ज़बरिया कमेन्टियाने का तकादा नहीं करता रहा,सो हमहूँ कुछ कुछ टूँग टाँग के आगे बढ़ते रहे । बधाई&amp;#160; हो, मेरा भारत महान, जीसका हर नेता बेईमान लीखने का मन था, लीखे नहीं, ब्लगिंगिया में पदमशिरी डीक्लेयर कर दीये, तो ?&amp;#160; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;ऊप्पर देखे हैं कि नहीं ? पहले ही बोल दिया हूँ, ई फा्स्ट-ब्लागिंग का ड्राफ़्टिया पोस्ट है.. सो बाई मिस्टेक कोई गलती हुआ हो, और दीखाए तो निचका डिब्बवा में लीख दीजीयेगा । हम भी गुरुवर का सिलो-बिलागिंग का संदेश देखे हैं, अउर ड्राफ़्टिया लीखने पर आपलोगों के ई-स्वमिया हम्मैं डाँटिस भी है, लेकिन हम तो पहले से ही बिन्दास डीक्लेअर कीये हैं, सो भाई ज़्यादा लटर-सटर नहीं जानते ! बस एतना सुन लीजीये, &amp;quot;हम नहीं सूधरुँगा ।&amp;quot;&amp;#160; तनि सोचिये.. हम हूँ आज़ाद भारत के आज़ाद ब्लागर,&amp;#160; ऊ भि हीन्दी के, जिसको कहीये कि... ईश्श !&amp;#160; अरे डा. अरविन्द जी, लगता है, कि हम अज़दकीय मोड में प्रवेश कर रहें हैं ? चलिये, आपके लिये ई पोस्ट पूरा होने तक सुधर जाते हैं ! जाइयेगा नहीं, पोस्ट जारी है&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;शिवभाई इस ब्रेक में तनी खोजीए तो,कि भासा कहाँ से ऊठा के ईहाँ पटकाया है&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;हाँ, तो अब ज़्यादा न लपेसते हुये&amp;#160; परदा उठाने देंगे ?&amp;#160; त,&amp;#160; हमलोग हूँ, आज़ाद भारत के आज़ाद ब्लागर.. बाताइये ऎसी आज़ादी और कहाँ ? बोलीए जय हिन्द !&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;http://www.blogger.com/profile/06891135463037587961&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;विवेक जी,&lt;/a&gt;&amp;#160; ई सब पोस्ट पढ़ते तो अपने गान्हीं महतमा एकदमैं गुलाम अलिये गुनगुनाते,     &lt;br /&gt;&lt;font color=&quot;#0000ec&quot;&gt;&lt;font size=&quot;3&quot;&gt;&amp;quot; स्यापा है क्यों बरपाऽ..♫ आज़ादी ही तो दी है..♩♬&amp;quot;&lt;/font&gt;&amp;#160; &lt;br /&gt;&lt;/font&gt;अब कोई यह लिखे तो लिखता रहे, कि &#39; मुल्क ही है.. तो बाँटाऽऽ..♩♬♪,रियासतें ही तो दीं हैऽऽ..♫&#39;     &lt;br /&gt;पिताश्री हैं, तो गरियाने दुलराने और बरसी पर फूल-माला पहनाने का सिलसिला तो लगा रहेगा..     &lt;br /&gt;वह दुखित मन से सोच रहे होंगे.. कि रिज़र्व कोटा के गोली खाने का यही सिला है,     &lt;br /&gt;कि आज़ाद भारत के लोग अबतक यह क्यों नहीं फील कर पा रहे हैं, ऎसी आज़ादी और कहाँ ?&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;अब अपनी ही एक बात बताता हूँ । छोड़िये, जगह का नाम जान कर भी क्या करियेगा..    &lt;br /&gt;पहले का एडविन क्रास, पिछले साल तक शास्त्री चौक कहलाते कहलाते अब झलकारी चौराहा होगया है     &lt;br /&gt;लेकिन परसों मुलायम संदेश यात्रा वाले कह गये हैं,     &lt;br /&gt;सन 1958 में इस चौमुहानी से गुज़र कर लोहिया जी की मोटर ने इसे ऎतिहासिक महत्व का दर्ज़ा दिया है,     &lt;br /&gt;लिहाज़ा इस शहर के लिये उनकी पहली प्राथमिकता यहाँ पर उनकी मूर्ति स्थापित करने की रहेगी.. ऎसी आज़ादी और कहाँ     &lt;br /&gt;इले्क्शन शान्तिपूर्ण निपटने के बाद पार्टी मेनिफ़ेस्टो में तय होगा कि,     &lt;br /&gt;&lt;font color=&quot;#0000ec&quot; size=&quot;3&quot;&gt;मूर्ति मोटर की लगेगी या उन मोटरारूढ़ महापुरुष की.      &lt;br /&gt;&lt;/font&gt;जो भी हो, हमारे शहर में तो होगा स्टैच्यू आफ़ लिबर्टी.. ऎसी आज़ादी और कहाँ     &lt;br /&gt;हम भी कहते हैं, नाम में क्या रखा है ?     &lt;br /&gt;सो, हर क्रासिंग का नाम शेक्सपियर ग्रैंडपा को सुपुर्द कर देना चाहिये,     &lt;br /&gt;काहे से कि ऎसी आज़ादी और कहाँ&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;यार, &lt;strong&gt;तुम अटकते बहुत हो, आगे बढ़ो..&lt;/strong&gt; हाँ, बस आने ही वाला है..     &lt;br /&gt;इस व्यस्त चौराहे पर जहाँ गुंज़ाइश मिला दिवार पर पोत-पात कर रख दिया है,     &lt;br /&gt;बड़ा बड़ा लिखा है, &lt;font color=&quot;#df00df&quot; size=&quot;3&quot;&gt;महबूबा को मुट्ठी में कैसे करें..&lt;/font&gt; मिलें या लिखें.     &lt;br /&gt;इसके ऎवज़ में मालिक-दीवार ख़ान लखीमपुर खीरवी साहब ने पेंटर से सेंत-मेंत में यह भी लिखवा लिया,     &lt;br /&gt;&lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#d20000&quot;&gt;यहाँ पेशाब करना सख़्त मना है, पकड़े जाने पर 50 रूपये ज़ुर्माना        &lt;br /&gt;&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;मेरा हाथ ऎटौमेटिक पैंन्ट की ज़िप पर चला जाता है, बताइये ऎसी आज़ादी और कहाँ     &lt;br /&gt;हल्के होकर सोचता हूँ, कि नीम का पेड़ तो दिख नहीं रहा,     &lt;br /&gt;किस भले मानुष से उन्नाव वाले नूर अहमद &lt;strong&gt;&amp;quot; गारंटीड कामाख्या तांत्रिक &amp;quot;&lt;/strong&gt;&amp;#160; का ठियाँ पूछूँ     &lt;br /&gt;हम खुद ही &lt;font color=&quot;#df00df&quot; size=&quot;3&quot;&gt;पंडिताइन की चँगुल से आज़ाद कैसे हों..&lt;/font&gt; वाले को तलाश रहे हैं     &lt;br /&gt;लगे हाथ अपनी उनसे भी आज़ाद हो लें.. फिर तो मौज़ा ही मौज़ा, क्योंकि ऎसी आज़ादी और कहाँ &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;बड़ी भीड़ है, आज, क्यों ? अच्छा अच्छा.. बगल के पटेल मार्ग पर पब्लिक ने जाम लगा रखा है,    &lt;br /&gt;हाथ कंगन को आरसी क्या.. लीजिये आप ही देखिये.. ऎसी आज़ादी और कहाँ     &lt;br /&gt;अब हमारे पास कोई चारा नहीं, घुसेड़ दो कार नो-पार्किंग में,     &lt;br /&gt;ऎई लड़के ! कोई पूछे तो बता देना हाथीपार्क वाले डाक्टर साहब की गाड़ी है..     &lt;br /&gt;सब स्साला तो मिसमैनेज़्ड है, पर पोस्ट लिखेंगे.. ऎसी आज़ादी और कहाँ     &lt;br /&gt;पढ़े लिखे होकर भी, नो पार्किंग में ज़बरिया पार्किंग ?     &lt;br /&gt;ऒऎ छ्ड्डयार, यह तो आज़ादी एन्ज़्वाय करने एक छोटा सा आप्शन है, ऎसी आज़ादी और कहाँ     &lt;br /&gt;मैं कोई गलत काम जानबूझ कर थोड़ेई करता हूँ, जी !     &lt;br /&gt;मेरी मज़बूरी समझिये,&amp;#160; आज सैटरडे है, एक हफ़्ते के लिये टल जायेगा । &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;उधर अपने &lt;a href=&quot;http://kakorikand.wordpress.com/2009/02/01/3101/&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;षड़यंत्र की अगली कड़ी&lt;/a&gt; भी देनी है, कल भी छूट गई थी     &lt;br /&gt;यह न हो कि, &lt;a href=&quot;http://kakorikand.wordpress.com/&quot; target=&quot;_blank&quot;&gt;शहीद&lt;/a&gt; आकर पकड़ लें कि, हम तो बेट्टा तेरे लिये चने खा कर तख़्ते पर टँग लिये थे,     &lt;br /&gt;और &lt;strong&gt;तू मुझे छोड़ कर यहाँ नो-पार्किंग में विलाप करता फिर रहा है..&lt;/strong&gt;और क्या चाहिये तुझे, ऎसी आज़ादी और कहाँ     &lt;br /&gt;फिर तो मेरी घिघ्घी बँध जायेगी, इतना भी न कह पाऊँगा..कि,     &lt;br /&gt;हम अपने ही घर में आज़ाद नहीं हैं, सर&amp;#160; &lt;br /&gt;आज सैटरडे है सर, एक हफ़्ते के लिये टल जायेगा, सर.. प्लीज़ मेरी मज़बूरी समझिये सर,     &lt;br /&gt;सो, नूर अहमक &amp;quot; गारंटीड कामाख्या तांत्रिक &amp;quot; को पकड़ना भी ज़रूरी है न, सर &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;ऒऎ कोई नीं, जितने टैम तक चाहे, जो पकड़ना है.. जिसको पकड़ना है..    &lt;br /&gt;जा छॆत्ती पकड़ लै.. पण छड्डणा नीं, जा अपनी पूरी आज़ादी ले लै !     &lt;br /&gt;जबसे मेरे कान में यह पड़ा है,&amp;#160; कि     &lt;br /&gt;&lt;em&gt;&amp;quot; डैडी सीरियस हो रहे हैं.. भईया ज़ल्दी से एक डाक्टर पकड़ लाओ &amp;quot;      &lt;br /&gt;&lt;/em&gt;&lt;strong&gt;आई रियली लव दिस पकड़ लाओ      &lt;br /&gt;&lt;/strong&gt;&lt;em&gt;हे हे हे, बैठे बैठे फ़ालतू टाइमखोटी करते रहते हो...बेशरम कहीं के !      &lt;br /&gt;&lt;font color=&quot;#ec0000&quot; size=&quot;1&quot;&gt;कौन है ? यह पंडिताइन हैं जी, दूजा न कोई, हे हे हे !&lt;/font&gt;&lt;/em&gt;&lt;/p&gt;  &lt;div class=&quot;wlWriterSmartContent&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:4339597d-ff69-4d08-8cf4-5f20cfe8d6d0&quot; style=&quot;padding-right: 0px; display: inline; padding-left: 0px; float: none; padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-top: 0px&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/http://c2amar.blogspot.com&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;http://c2amar.blogspot.com&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Civil%20Liberty&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Civil Liberty&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Kamakhya&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Kamakhya&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/02/blog-post.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjaBP52pWPpF37eUtzyv0orge1Efu66hlvcYSQ3jApapi-gx9hygK9NvNnCUM4wba7aIC1f2I8R9HBZoJOgNNEKH7_U_CZQ5csjebRCYwZgnqQ1LW52MUUgQ8h0cgUqCMp3wYAfC6MiUp-o/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>11</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-6003501671342127425</guid><pubDate>Sun, 18 Jan 2009 20:42:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-02-01T21:50:01.235+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">कवितायें</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बुरबकई</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">संदर्भहीन व्याख्यायें</category><title>तुम पार नेट परमेश्वर तुम ही नेट पिता</title><description>&lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#d50000&quot; size=&quot;3&quot;&gt;&lt;em&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhGwxQfOTpvEtAwEaimTw3uNTjyLZAbIMgMVLIllrGIXR59BZuQzKPyEDs2MPvPY6zV78Y7HKQuEosYtynMBrj-RSXZeGAKfECKvcww4olIZLv-H5lHX3Fdxk1uszjjfXNTDzKT-X-w7wZ4/s1600-h/google-animated-holoween-logo%5B4%5D.gif&quot;&gt;&lt;img title=&quot;google-animated-holoween-logo&quot; style=&quot;display: inline; margin-left: 0px; margin-right: 0px&quot; height=&quot;90&quot; alt=&quot;google-animated-holoween-logo&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4qK95Orf0rkACLDSND38s_Ui2fDwVSbZWWm97oE0hUDx2XR_AO7cOqDlp0JSvUOWmEn_nkK-mTcZDnmgzlv_tGgohUHCRVjSwyeM9eqRl-aVZVVOhyphenhyphenX94aBr-IHtXJ9x89ZgLfqaMAUbC/?imgmax=800&quot; width=&quot;240&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&amp;#160;&lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#d50000&quot; size=&quot;3&quot;&gt;&lt;em&gt;ॐ जय गूगल हरे, स्वामी जय गूगल हरे        &lt;br /&gt;फ़्रस्ट (एटेड ) जनों के संकट, त्रस्त जनों के संकट         &lt;br /&gt;एक क्लिक में दूर करे         &lt;br /&gt;&lt;font size=&quot;4&quot;&gt;ॐ जय गूगल हरे…&lt;/font&gt; &lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#d50000&quot; size=&quot;3&quot;&gt;&lt;em&gt;जो ध्यावै सो पावै        &lt;br /&gt;दूर होवै शंका, स्वामी दूर होवै शंका         &lt;br /&gt;सब इन्फ़ो घर आवै, सब इन्फ़ो घर आवै         &lt;br /&gt;कष्ट मिटै मन का         &lt;br /&gt;ॐ जय गूगल हरे… &lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#d50000&quot; size=&quot;3&quot;&gt;&lt;em&gt;नेट पिता तुम मेरे        &lt;br /&gt;शरण गहूं किसकी, स्वामी शरण गहूं किसकी         &lt;br /&gt;तुम बिन और न दूजा, तेरे बिन और न दूजा         &lt;br /&gt;होप करूं किसकी         &lt;br /&gt;ॐ जय गूगल हरे… &lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#d50000&quot; size=&quot;3&quot;&gt;&lt;em&gt;तुम पूरन हो खोजक        &lt;br /&gt;तुम वेबसाइटयामी, स्वामी तुम वेबसाइटयामी         &lt;br /&gt;पार नेट परमेश्वर, पार नेट परमेश्वर         &lt;br /&gt;तुम सबके स्वामी         &lt;br /&gt;ॐ जय गूगल हरे… &lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#d50000&quot; size=&quot;3&quot;&gt;&lt;em&gt;तुम ब्लागर. के फ़ादर        &lt;br /&gt;तुम ही इक सर्चा, स्वामी तुम ही इक सर्चा         &lt;br /&gt;मैं मूरख हूं सर्चर, मैं मूरख हूं सर्चर         &lt;br /&gt;कृपा करो भरता         &lt;br /&gt;ॐ जय गूगल हरे… &lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#d50000&quot; size=&quot;3&quot;&gt;&lt;em&gt;तुम सर्वर के सर्वर        &lt;br /&gt;सबके डाटापति, स्वामी सबके डाटापति         &lt;br /&gt;किस विधि एन्टर मारूं, किस विधि एन्टर मारूं         &lt;br /&gt;तुममें मैं कुमति         &lt;br /&gt;ॐ जय गूगल हरे… &lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#d50000&quot; size=&quot;3&quot;&gt;&lt;em&gt;दीनबंधु दु:खहर्ता        &lt;br /&gt;खोजक तुम मेरे, स्वामी शोधक तुम मेरे         &lt;br /&gt;अपने फ़ण्डे दिखाओ, कुछ तो टिप्पणी दिलाओ         &lt;br /&gt;साइट खड़ा तेरे         &lt;br /&gt;ॐ जय गूगल हरे… &lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;font color=&quot;#d50000&quot; size=&quot;3&quot;&gt;&lt;em&gt;बोरियत तुम मिटाओ        &lt;br /&gt;टेंशन हरो देवा, स्वामी टेंशन हरो देवा         &lt;br /&gt;गूगल अकाउण्ट बनाया गूगल अकाउण्ट बनाया         &lt;br /&gt;पाया ब्लागिंग मेवा स्वामी पाया ब्लागिंग मेवा         &lt;br /&gt;जो नर ब्लागिंग धावैं करैं निजभाखा सेवा         &lt;br /&gt;ॐ जय गूगल हरे &lt;/em&gt;&lt;/font&gt;&lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNg4boyafmhQWUECEdkNljV3R9SYdy-7nao__pq1aPNoCpx31MdZ76ov2HpuPfxxwkEnlcRgmK9Lyt-KujWc7SjopNYP6vQ-tSumJLK4H-kEUPLIn7emC1GD24XrYgVAefWsZ12QfKpR_q/s1600-h/go%5B3%5D.gif&quot;&gt;&lt;img title=&quot;go&quot; style=&quot;border-right: 0px; border-top: 0px; display: inline; border-left: 0px; border-bottom: 0px&quot; height=&quot;240&quot; alt=&quot;go&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg39kgFsUKe6V9DD7ESWBfoqQBowdRs76M5hMGzhb14wGgcl-qH52K4SCwxwar0G2YsMOfOS4Tbm0iXYxBNObQo4QIGSTUlqA9os3bcAWIaKTIKMvI2URfvLLHKUtFlWxOFj9crzRwmf1F8/?imgmax=800&quot; width=&quot;156&quot; border=&quot;0&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/p&gt;  &lt;div class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:bd955912-63c7-478a-9052-588045d3d1f1&quot; style=&quot;padding-right: 0px; display: inline; padding-left: 0px; float: none; padding-bottom: 0px; margin: 0px; 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एई उट्ठो.. एई उठो न, देखो बाघ लखनऊ तक आगया&amp;nbsp; ! &lt;br /&gt;अरे, मैं तो अपना ही किस्सा लेकर बैठ गया, एक आवश्यक औपचारिकता तो पहले पूरी कर लूँ&amp;nbsp; ! &lt;br /&gt;&lt;span style=&quot;color: #ec0000; font-size: medium;&quot;&gt;&lt;strong&gt;&lt;em&gt;&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt;&lt;/span&gt;&lt;br /&gt;
  146. &lt;span style=&quot;color: #ec0000; font-size: medium;&quot;&gt;&lt;strong&gt;&lt;em&gt;आपसब ब्लागर भाई व भौजाईयों को&amp;nbsp; समस्त उत्तरायण पर्वों की हार्दिक शुभकामनायें ! &lt;br /&gt;&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt;&lt;/span&gt;&lt;span style=&quot;font-size: xx-small;&quot;&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000ea;&quot;&gt;&lt;strong&gt;जिनको भौजाई कहलाने में आपत्ति हो,&lt;/strong&gt; &lt;strong&gt;कृपया नोट करें.. वह मेरी पोस्ट भले न पढ़ें, पर,&lt;/strong&gt; &lt;strong&gt;उनका एतराज़ किसी भी दशा में दर्ज़ नहीं किया जायेगा &lt;em&gt;&lt;span style=&quot;font-size: x-small;&quot;&gt;!&lt;/span&gt;&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt;&lt;/span&gt;&lt;/span&gt;&lt;span style=&quot;font-size: x-small;&quot;&gt;&lt;em&gt; &lt;br /&gt;&lt;/em&gt;&lt;/span&gt;&lt;br /&gt;
  147. &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;
  148. &lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4OBRTElOfUwuLwcuKLpWn86kt9cD5Bs-HVz2f-Yib8Y7Wvu5AWr4xdKltduYAhJ3WTUiplQaD-ej545NTv0EKJ8eTVWBLgCtdG9aEcMbBhXqR4DrqubYQdW4iufyk8DLEwyGj8MP8_V_K/s1600-h/tiger3.gif&quot;&gt;&lt;img align=&quot;left&quot; alt=&quot;tiger&quot; border=&quot;0&quot; height=&quot;130&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGNjND7251H1J_tRcOdzf6PyxyB2fpH4PyhrfhgyHaJibUpOzwHNUwl20_ZGC0PB5EaZ9TuEYJcBd8-GkPvFkveeXgI6cu_BCUfOBf3s7slosumlcW_M25Boeu__WNRB9SqP5S4dnxqTP_/?imgmax=800&quot; style=&quot;border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-top-width: 0px; display: inline; margin-left: 0px; margin-right: 0px;&quot; title=&quot;tiger&quot; width=&quot;126&quot; /&gt;&lt;/a&gt; एई उट्ठो.. एई उठो न, देखो बाघ लखनऊ तक आगया&amp;nbsp; ! “&amp;nbsp; क्या यार, धत्तेरे की जय हो !&amp;nbsp; तुम भी क्या बच्चों की तरह किलकारी मार रही हो ? बाघ-साँप मंगल-जुपिटर के अलावा तुम्हें कुछ और नहीं सूझता ?” दरअसल यह सब इनको बड़ा रोमांचित करता रहा है । सो, मैं गिड़गिड़ाया, “ बाघ अभी 80 किलोमीटर दूर है, अभी सोने दो.. बेकार शोर मत मचाओ !&amp;nbsp; बाघ है तो मैं क्या करूँ ? “&amp;nbsp; और,&amp;nbsp; मैं दुबारा से रज़ाई में कुनमुनाने लग पड़ा&amp;nbsp; ! &lt;/div&gt;
  149. &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;
  150. प्रसंगवश बता दूँ, कि इन &lt;strong&gt;मैडम जी ने शादी करने के लिये तो मुझ गदहे को चुना,&lt;/strong&gt; पर मोहतरमा की दिलचस्पी हमेशा से बाघ, शेर, हाथी, साँप, ग्रह.. नक्षत्र और भी न जाने क्या क्या में रहती है ? कुल ज़मा किस्सा यह कि आजकल मुझपर रोब गाँठने के सिवा मुझसे शायद ही इनका कोई नाता हो ? तिस पर भी दिसम्बर माह में मेरा कीबोर्ड आतंक और आतंकवादियों से ही जूझने में खरच होता रहा !&amp;nbsp; वह नाराज़ी अलग से है.. “ एई सुनो, अब आजकल तुम अपने, क्या कहते हैं कि पोस्ट में.. मेरा ज़िक्र तक नहीं करते हो ! अरी भागवान, तू नादान क्या जाने कि तेरा आतंक उन आतंकियों का पसंगा भी नहीं है !&amp;nbsp; जो भी हो,&amp;nbsp; तेरा आतंक तो मैं अकेले झेल ही रहा हूँ, डियर ! उधर सारा देश दाँव पर लगा है !&lt;/div&gt;
  151. &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;
  152. मैंने तो अब तक एक गुनाह तुमसे ब्याह करने का ही किया है और अब मैं उतना मासूम भी न रहा । पर.. पहले इन आतंकियों पर अपना गुस्सा निकाल लेने दे, &lt;strong&gt;जो मासूम, बीमार.. बेगुनाहों में फ़र्क़ करने की तमीज़ भी नहीं रखते..&lt;/strong&gt; पता नहीं, किन नामाकूल आकाओं ने इनको ट्रेनिंग देकर भेजा है ?&amp;nbsp; संसद वसंद पर एक बार और हो आते, एक दो खद्दर-कुर्ता टोपी-अचकन टपका भी देते तो,&amp;nbsp; देश न सही&amp;nbsp; मैं तो कृत्तज्ञ&amp;nbsp; होता ही&amp;nbsp; और, आप लोग भी अगर बाई-चाँस पकड़ में आ भी जाते, तो कसाब जैसा हाल तो न बनता, और&amp;nbsp; अफ़ज़लवा की तरह दोनों मुल्क की सरकारों को लटकाये रखते, वो अलग से ? &lt;img alt=&quot;tdots5&quot; height=&quot;20&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkICcrp-UH3l8uxBY70BP2q4-Pr92xKZK7vxgsPBPYfz-jqQCFXiXvRKL1PEy_1w5-eQqOrd3S7mzKl1IJ_nnhBZB4MPtfhE5XW8QG8dRZ0c16Bgk3oS3MOA8vIQE3DqgfvtGKSw5pdCsH/?imgmax=800&quot; style=&quot;display: inline;&quot; title=&quot;tdots5&quot; width=&quot;47&quot; /&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhPamnlINs3-qG47cEXC7ttq4X6KbI2nHcsUduIov5jD05ouKydnZx32tyjiz1-4xntVMRCpWn8HXrt7m0Zya5v2GmaN5J3mbSil7YgfJmas4ijdinNV7i9JigDDBwAt7vNESFfQ1dtHc2q/s1600-h/tdots55.gif&quot;&gt;&lt;img alt=&quot;tdots5&quot; height=&quot;20&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgAM4i-ADbPb74HyG0z5UzpTuqC4vHocU-d6_aqOqMbSZ8qhl7mN58VaWwyMyuKN2iA6OcGAjJBJeeEwpofaUnKYRneRQ4IbgyklK5uwE9yJ3Bv3TiSOnMjUngOihIIEgprB61KGccc1ZXL/?imgmax=800&quot; style=&quot;display: inline;&quot; title=&quot;tdots5&quot; width=&quot;47&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi91we1p5bglcDQ4TWq7wO_pLGL24ybwTKv6qtOLtHpFLmqai_HymUyiM1cqS1vuwinGTFz9yWNCdBJYYqe5PR4XmNBgHg5V8FS1pp1BtCA4AAhz6yKRkM46kDRipspGMFb8UxZRVlXhLLz/s1600-h/tdots58.gif&quot;&gt;&lt;img alt=&quot;tdots5&quot; height=&quot;20&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgn0X5xBszmrd1AsSpIdHabFmXK_o8EKas8TJU2lWOYEhHLTL9yhhOiyBgychF_cHDP5R4RUzFdWvLVAmuStQD2ijjxlBbwGdlFAtsAiE_hi5gy0mbMO1h2PH3qovCla5eyiIlAjX0eY1RU/?imgmax=800&quot; style=&quot;display: inline;&quot; title=&quot;tdots5&quot; width=&quot;47&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhp_cLxM3P0R53f_Geo6wQxH8WVFHMmj6K9L8Qk8ylOZtyxgAH9Ewhl8VTiHw7k15hyphenhyphen1GuRgZANh8TduT35v76iv-21pFgWU026aT7uVlRfcTYrXPb_y55dZwhvBfE3gL1lblZdtpS4xhpr/s1600-h/tdots511.gif&quot;&gt;&lt;img alt=&quot;tdots5&quot; height=&quot;20&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhju7kVNCYXTP0At1N3fRs2xETIAkAu6SJWdSNfJ-caiKm-aVPgO-bH37i815ls7rC6_yop1on-WZEGXiSlF5IZ4XSOW5lhGyyc8NaooCZSioVTSv5zC8yV_Uw_XrflDHJupTkp7oZDycpK/?imgmax=800&quot; style=&quot;display: inline;&quot; title=&quot;tdots5&quot; width=&quot;47&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/div&gt;
  153. &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;
  154. &lt;span style=&quot;color: #0000d7;&quot;&gt;ईश्श्श, पोस्टिया तो लगता है, फिर आतंकियों की तरफ़ रेंग चली है ! पीछे मुड़.. कीबोर्ड चला.. सामने देख.. नज़र सामने रख, निगाह बाघ पर.. 80 किलोमीटर दूर है, तो क्या हुआ ?&amp;nbsp; तेरा कीबोर्ड अटलांटा ज़र्मनी तक का रेंज़ रखता है ! बाघ तो मात्र 80 कि.मी. पर&amp;nbsp; है ! &lt;/span&gt;&lt;/div&gt;
  155. पूरे दिसम्बर माह बड़ा शोर रहा.. दुधवा का एक बाघ नखलऊ की तरफ़ बढ़ रहा है ! जी हाँ, जगप्रसिद्ध लखनऊ अपने घर में नखलऊ ही कहलाता है ! &lt;strong&gt;हाँ तो, बाघ नखलऊ की तरफ़ बढ़ रहा है..&lt;/strong&gt; रोज सुबह पंडिताइन अख़बार आते ही, चट से उसकी लोकेशन देखतीं, और मुझे झकझोर देतीं । मैं खीझ जाता, &quot; तो मैं क्या करूँ ? &quot; उनका तुर्रम ज़वाब होता, &quot; मैं क्या करूँ.. अरे भाई बाघ है, कोई मामूली चीज नहीं, कुछ लिखो. !.&quot; &lt;strong&gt;तुम्हें क्या बताऊँ ऎ अनारकली, कि बाघ की टी०आर०पी० इन दहशतगर्दों के सामने दुई कौड़ी की भी नहीं !&lt;/strong&gt; &lt;span style=&quot;color: #ec0000;&quot;&gt;एक मौज़ आयी कि समीर भाई इंडिया पधारे हैं.. इनको ही एन-रूट दुधवा तैनात कर दूँ, यहाँ भी बाघ दुबक जाता ।&lt;/span&gt; अब छोड़िये.. उनकी पावर तो बांधवगढ़ में ही शेष हो गयी.. बाकी जो बचा था वह शायद कमसन समधन ले गयी ! चुँनाचें, आज फिर बाघ महोदय हेडलाइनों में प्रकट होते भये हैं । यह साला दुधवा से सीधे लखनऊ को ही क्यों चल पड़ता है&amp;nbsp; ?&amp;nbsp; पर, सोना क्या था ?&amp;nbsp; इस प्रयास में, बाघ को लेकर मन में किसिम किसिम की धमाचौकड़ी&amp;nbsp; मचती रही.. वह निट्ठल्लई&amp;nbsp; भी बताऊँ क्या ?&lt;br /&gt;
  156. &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;
  157. अरे, बाघ&amp;nbsp; तो ज़ंगल का राजा है, भला लखनऊ आकर क्या कर लेगा ? भूखा है.. तो उसे वहीं आस पास के गाँवों में हाड़-मांस के पुतले मिल ही जाते ! पर, उन बेचारे पुतलों में सिर्फ़ हाड़ ही हाड़ बचा हो ?&amp;nbsp; सो,&amp;nbsp; किबला मांस की तलाश में राजधानी की तरफ़ चल पड़े&amp;nbsp; हैं ?&amp;nbsp; &lt;strong&gt;लेकिन, यहाँ के रसीले, गठीले, स्वस्थ, दमकते मांसल पुतले तो सरकारी ख़र्चे&amp;nbsp; के सुरक्षा-कवच से घिरे रहते हैं..&lt;/strong&gt; क्या बाघ महाशय&amp;nbsp; का&amp;nbsp; इंटेलीज़ेन्स-डिपार्ट भारतीय सुरक्षा-तंत्र से भी गया बीता है, जो उन तक इतनी मामूली सूचना भी न पहुँचायी होगी ? ज़रूर&amp;nbsp; मामला&amp;nbsp; कुछ और ही है.. &lt;strong&gt;झपकी आ गई..&lt;/strong&gt; सामने अभय की मुद्रा में साक्षात बाघ महाशय दिखते भये । नहीं, डर मत, तू मुझे ब्लागर पर कवरेज़ देता रह, मैं अपनी सरकार&amp;nbsp; में सूचना सलाहकार बना दूँगा ! &lt;strong&gt;&lt;em&gt;आईला&lt;/em&gt;&lt;/strong&gt;, बाघ ज्जिज्जी जी, क्षमा करें.. &lt;strong&gt;माननीय बाघ जी, सरकार बनायेंगे ?&lt;/strong&gt; &lt;span style=&quot;font-size: small;&quot;&gt;&lt;em&gt;पर.. दिल की बात रही मेरे मन में, कुछ कह न सका कच्छे की सीलन में&lt;/em&gt; &lt;/span&gt;&lt;/div&gt;
  158. &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;
  159. &lt;span style=&quot;font-size: x-small;&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiOKRaTlFic52f3D9zZImumBVQZTd2NnkJmc8N_9DvqLDtPths0OtD5wl6HIRsEVHPFk1IDfgsFDvAGyxLSW36tQUXOvECDMMAGCMg7HwHzpU42-0ekZNCk5byCjmZXahn9QILhoSy25Ooe/s1600-h/lion33.gif&quot;&gt;&lt;img align=&quot;left&quot; alt=&quot;lion3&quot; height=&quot;190&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAH_CCylKR38aTf7BwXls4VRa08ViUpi0Nb4KJQ-PEpbfAJ18dsovgKaxcEq9hhot5RqSQMJ__q0OnPe9vv8IQPX35ZHjs7duOGcxzGoxCgIajHoa3KTaV2oEf0-yw45eulXx2it01za6l/?imgmax=800&quot; style=&quot;display: inline; margin-left: 0px; margin-right: 0px;&quot; title=&quot;lion3&quot; width=&quot;200&quot; /&gt;&lt;/a&gt; सरकार, आप तो खुदै ज़ंगल के राजा हो, फिर ? माननीय बाघ जी दहाड़ते दहाड़ते एकदमै संभल गये, लहज़ा बदल कर बोले..&lt;strong&gt; “ भई देख डाक्टर, वहाँ भी सभी मौज़ है,&lt;/strong&gt; लेकिन यह ज़गमगाती बिज़ली बत्ती, ठंडक देने वाली ए,सी. वगैरह वगैरह कहाँ ? अगर हम्मैं ज़ंगल ही पर&amp;nbsp; राज करना है, तो&amp;nbsp; तेरे इस बेहतरीन ज़ंगलराज में करेंगे । भला बता तो,&amp;nbsp; तेरे नखलऊ से अच्छा ज़ंगलराज और कहाँ मिलेगा, रे ? तू &lt;strong&gt;वहाँ&lt;/strong&gt; घूमने जाता है,हमारे लोग &lt;strong&gt;यहाँ&lt;/strong&gt; घूमने आयेंगे !&lt;/span&gt;&lt;/div&gt;
  160. &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;
  161. &lt;span style=&quot;font-size: x-small;&quot;&gt;पर, माननीय महामहिम दुधवा से सीधे.. &lt;strong&gt;हा हा हा,&lt;/strong&gt; अरे मूर्ख दुधवा क्या उल्टा-प्रदेश से अलग है, क्या ? यहाँ अलीगढ़ के वकील, इटावा के मास्टर,&lt;/span&gt; मांडा के राजा, बिज़नौर की बहनजी आ सकती हैं, तो मैं क्यों नहीं ? &lt;strong&gt;कड़क्ड़कड़&lt;/strong&gt; मेरे दिमाग में जैसे हज़ार पावर की बत्ती जल उठी.. अब्भी अबी माननीय ने मांडा के राजा का नाम उचारा था, पकड़ लो&amp;nbsp; इनको । “ हुज़ूर, आप तो पैदायशी राजा हैं, सत्ता पर आपका&amp;nbsp; जन्मजात अधिकार होता है… नहीं मेरा मतबल है, आप तो&amp;nbsp; आलरेडी डिक्लेयर्ड राजा होते हैं, फिर यहाँ हम इंसानों के बीच…मतबल ? ज़ब्त करते हुये भी बाघ जी गुर्रा पड़े,&amp;nbsp; और &lt;strong&gt;अपनी तो..?&lt;/strong&gt;&lt;/div&gt;
  162. &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;
  163. &lt;strong&gt;निकल पड़ी ?&lt;/strong&gt; निकल पड़ी न, तुम्हारी गंदी ज़ुबान से चालबाजी की बातें ? बताओ तुम्हारे कने परिवारवाद.. वंशवाद नहीं है, क्या ? &lt;span style=&quot;font-size: xx-small;&quot;&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000d7;&quot;&gt;&lt;em&gt;&lt;span style=&quot;color: #ec0000;&quot;&gt;&lt;strong&gt;ज़ाल तू ज़लाल तू, आई बला को टाल तू..&lt;/strong&gt;&lt;/span&gt;&lt;/em&gt; &lt;/span&gt;&lt;/span&gt;सो तो है, सरकार ! फिर, मेरे को क्या समझाता है ?&amp;nbsp; मुझे तुम इंसानों की पोल पट्टी पता है ! &lt;/div&gt;
  164. &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;
  165. पर, हज़ूर वहाँ...&amp;nbsp; आपके मतबल राजा के जूठन पर सैकड़ो गीदड़-सियार लोमड़ी पलते हैं । उसकी चिन्ता मत कर, यहाँ भी पहले से बहुत पल रहे हैं, हमारे भी उन्हीं में खप जायेंगे.. &lt;strong&gt;बोल आगे बोल&lt;/strong&gt; &lt;strong&gt;?&amp;nbsp; डर मत,&lt;/strong&gt; तेरे बहाने&amp;nbsp; मेरा प्रेस-कांफ़्रेन्स का प्रैक्टिस हो रैया है ।&lt;/div&gt;
  166. &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;
  167. यार, इनको यहीं से दफ़ा करो, नहीं तो &lt;strong&gt;राजनीति के नाम पर तो, यह हमारे दाद बन जायेंगे !&lt;/strong&gt; सो, मैं मानवता की रक्षा के लिये सनद्ध होता भया.। &lt;strong&gt;यदा यदा हि लोकतंत्रस्य…&lt;/strong&gt; पर, सरकार यहाँ तो लोकतांत्रिक बवाल चलता है.. भला आप ? अपने लिये सरकार सुनकर वह नरम पड़े । रहने दे, रहने दे.. वह मीठे स्वर में गुर्राये, &quot; मुँह न खुलवा.. लेकिन सिर्फ़ तेरे को बताता हूँ, लोकतांत्रिक-वांत्रिक के लिये मेरे कने&amp;nbsp; बंदरों की बहुत बड़ी फ़ौज़ है, सभी बूथ कवर कर लेंगे ।&quot;&amp;nbsp; तो, यह जनशक्ति की धौंस दे रहें हैं&amp;nbsp; ?&lt;/div&gt;
  168. &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;
  169. अब तक मेरी घिघ्घी बँध चुकी थी.. बंदरों की फ़ौज़ से घिरे होने की कल्पना मात्र से, आगे के सैकड़ों प्रश्न उड़न-छू हो चुके थे । ज़्यादा बोलना, अब ऎसे भी उचित न था, इनका महामहिम बनना तय था । क्या पता, यह सूचना सलाहकार के भावी पद से अभी से सस्पेन्ड करके कोई जाँच-वाँच बैठा दें ! पर, भईय्यू वह ठहरे ज़ंगल के राजा सो, फ़ौरन मेरा असमंजस भाँप गये, &quot;लोकतंत्र-पोकतंत्र कि चिन्ता मत किया कर ! नखलऊ में सभी लोकतंत्र की दहाड़ मारते हुये आते हैं । फिर, कोई फ़कीर बन जाता है, कोई मुलायम हो जाता है, कोई माया बन जाती है । &lt;strong&gt;मैं बाघ बन कर आऊँगा.. तो आख़िर तक बाघ ही रहूँगा .. राज करने के लिये हाथी नहीं बन जाऊँगा, समझे कि नहीं ?&lt;/strong&gt; मैं मिनमिनाया, &quot; समझ गया सरकार, हमारी क्रांति का प्रभाव हमसे ज़्यादा ज़ानवरों पर है । लो, चलते चलाते महामहिम का मूड बिगड़ गया..&lt;strong&gt; &quot; फिर तुमने ज़ानवरों को इंसानों की बराबरी में रखा ? छिः, तौबा कर ! &quot;&lt;/strong&gt;&lt;/div&gt;
  170. &lt;div class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:f5723233-9a61-49d6-a8c0-dcfc7df2c4e3&quot; style=&quot;display: inline; float: none; margin: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;&quot;&gt;
  171. Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%85%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%95%e0%a4%a4%e0%a4%be&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;अराजकता&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%af%e0%a4%ae&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;मुलायम&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Anarchy&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Anarchy&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a5%9b%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%b2+%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;ज़ंगल राज&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%a1%e0%a4%be.+%e0%a4%85%e0%a4%a8%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%97&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;डा. अनुराग&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%98&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;बाघ&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%a6%e0%a5%81%e0%a4%a7%e0%a4%b5%e0%a4%be&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;दुधवा&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a4%b6%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%bf&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;जनशक्ति&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%b8%e0%a4%b0%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;सरकार&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%be+%e0%a4%95%e0%a5%87+%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%be&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;मांडा के राजा&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%af%e0%a4%a6%e0%a4%be+%e0%a4%af%e0%a4%a6%e0%a4%be+%e0%a4%b9%e0%a4%bf&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;यदा यदा हि&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/%e0%a4%aa%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%a8&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;पंडिताइन&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;
  172. &lt;strong&gt;&lt;span style=&quot;color: #0000d7;&quot;&gt;आभार:&lt;/span&gt;&lt;/strong&gt; &lt;span style=&quot;color: #df00df;&quot;&gt;डा. अनुराग का, जिन्होंने मुझे यह पोस्ट लिखने को टँगे पर चढ़ा दिया था । आफ़कोर्स पंडिताइन का, जिन्होंने आतंकवाद पर अरण्य-रूदन पर झाड़ पिलायी..और सामने रखी घड़ी का, जिसमें तीन नहीं बजे हैं,एवं सोचताइच नहीं, लिखेला ठेलेला के टैग का &lt;img alt=&quot;Nerd&quot; src=&quot;http://messenger.msn.com/MMM2006-04-19_17.00/Resource/emoticons/49_49.gif&quot; /&gt;&lt;/span&gt;&lt;br /&gt;
  173. &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;
  174. &lt;/div&gt;
  175. &lt;div align=&quot;justify&quot;&gt;
  176. &lt;/div&gt;</description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/01/blog-post_15.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGNjND7251H1J_tRcOdzf6PyxyB2fpH4PyhrfhgyHaJibUpOzwHNUwl20_ZGC0PB5EaZ9TuEYJcBd8-GkPvFkveeXgI6cu_BCUfOBf3s7slosumlcW_M25Boeu__WNRB9SqP5S4dnxqTP_/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>4</thr:total></item><item><guid isPermaLink="false">tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-2960376602681084906</guid><pubDate>Mon, 12 Jan 2009 22:33:00 +0000</pubDate><atom:updated>2009-02-01T21:50:01.365+05:30</atom:updated><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">निट्ठल्ले का फोटोब्लाग</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">बुरबकई</category><category domain="http://www.blogger.com/atom/ns#">यूरेका - यूरेका</category><title>इतना विशाल देश.. क्या अकेले मेरे बस में ?</title><description>&lt;p&gt;हरतरफ़ चर्चा है, कि देश मुसीबत में हैं, आतंकी इसे रौंद रहे हैं, घोटाले इसे लील रहे हैं ! सत्यम भी आख़िरकार असत्यम साबित हो रहा है ।&amp;#160; अब, भला आप ही बताइये, मैं अकेला क्या कर सकता हूँ ?&amp;#160; कल जोड़ने बैठा तो .. देश की आबादी निकली : &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000f2&quot;&gt;100&lt;/font&gt; &lt;/strong&gt;करोड़     &lt;br /&gt;जिसमें &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000f2&quot;&gt;9&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt; करोड़ तो सेवानिवृत हैं, जिनसे शायद ही कोई उम्मीद हो &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgksj1uzgUE6UEHlb5CiQm4RQyNmaVDB4CMDwW7fSoUPRA1EJQ_gP0CUMFxOnPK5USdq4nYGZ172O0Mzja-Qw-bO0YFS8u_9vNlCC3Nw5esjChFOymR77e0R_9w7Vgiqe88EizTYqCGoKct/s1600-h/ATT000012.gif&quot;&gt;&lt;img title=&quot;ATT00001&quot; style=&quot;display: inline&quot; height=&quot;160&quot; alt=&quot;ATT00001&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjlV1og8Sld_hViptP3Esuwxn28oL2dWwdF2aV5ZUp1irfqYkPeodORnPcUolvL6hr1DhpUP0uxBNUnFBiJbzNgS_nn2RaURa6CypVuckEDXpNHD0ymehgMpp4_V5Wedq76p5SwO_xjBKO1/?imgmax=800&quot; width=&quot;200&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZUmJQZz6_G7-WGPENaTusnvjB4MqoiRAja6svOqXC_kKVFPopIgk4a12LO-G0yP4de_qxhOI_to55S6akml3sO7Bja4mVhOnApVi_MsxzHVQVPfI3wPCmLDzrm7D57RCyTCMaLGu5ro7e/s1600-h/e22853.gif&quot;&gt;&lt;img title=&quot;e2285&quot; style=&quot;display: inline; margin-left: 0px; margin-right: 0px&quot; height=&quot;50&quot; alt=&quot;e2285&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheKj2DGRNrwnJxDNlH5p_NxBlZgO6iJMjn9gmeCeG5zxImwglDFrshy_NX9r1MaIf4xAyXlTlSVlIJ_ejbzOxB2P-qDckVnyJOf4nw0PUmeo0sJ0zVaWA6EEDC2cV0fsYQQfSwcGxPJyVj/?imgmax=800&quot; width=&quot;50&quot; align=&quot;left&quot; /&gt;&lt;/a&gt; नौकरीपेशा वर्ग में केन्द्रीय कर्मचारी ठहरे &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000f2&quot;&gt;17 &lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;करोड़ और राज्य कर्मचारी हैं &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000f2&quot;&gt;30&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt; करोड़ &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;इनमें शायद ही कोई काम करता हो ? &lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;और.. हमारे यहाँ हैं &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000f2&quot;&gt;1 &lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;करोड़ आई० टी० प्रोफ़ेशनल !&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjh5WvTGXw5RcjTGfIotRay1rjApEk7B-f7IZMAJBB3evfFF5L3e3Y3uPjKGy2QqIHsjpBip1hsNj-kDGEcapjFEh6_0Og5LBnEqfuFxTZS4bNIG2fwCBLDvyxEgNva7aDJxpgM1Rm6XgQS/s1600-h/ATT000022.gif&quot;&gt;&lt;img title=&quot;ATT00002&quot; style=&quot;display: inline&quot; height=&quot;96&quot; alt=&quot;ATT00002&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhiysvhdShdvvaoNYyULE6lRHRIBAJpglSCo2rUisw1amG_eL97ZiHOqbEnRsyExkJ8acizBcTXhCLq4h_3q6rAuurhf9EX-4098nJ55GKUWOjlMY85MIJvElxCyn6buGudKU-CZ0bzzcu9/?imgmax=800&quot; width=&quot;150&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&amp;#160;&lt;/p&gt;  &lt;p align=&quot;justify&quot;&gt;इनमें अपने देश के लिये कौन काम करता है, जी ? &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGdvpo9kqvNrwEqnlssRWvonJTGnfftQ22LyQk-iB3JFMBQ3Rn8SN53HDRsqcptCnDgaQS6FntEnZl1OS9MZQf0gp5AQCUzE7dN2hZJsq_emTpZJPO0r1ElY_Qi9_eK3ossiDhrlp4H26x/s1600-h/cgdrawing_e02.gif&quot;&gt;&lt;img title=&quot;cgdrawing_e0&quot; style=&quot;display: inline&quot; height=&quot;90&quot; alt=&quot;cgdrawing_e0&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1mS3V97KKx_CjXT43BFDttP9bAWU3jv-Sz8vxPJT7JzBz0t4LrDqeks2VLlKAJarvUbgR0DGpYJHzs3lemab1ZKpvDVjRF9_50qASlM621CsR3gPeCtHQ9xrITCj-gmw8jNuH09v4Be67/?imgmax=800&quot; width=&quot;160&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000f2&quot;&gt;18 &lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;करोड़ तो बेचारे अभी स्कूलों में ही हैं, इनसे क्या होना है ? &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&amp;#160;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbHJnRY8ctlgc7lfDQsoHWGk88vIr9mpTQqRwdg0v22SRErortWJ_8k3RPELtS4DY05UxcAANpsDERx_5xSq9kbP1LVS8JbseBVnX1YDGgJLmBIfFzoizUpnbLHqmXccibLlC1qZyHICUC/s1600-h/happy_feet2.gif&quot;&gt;&lt;img title=&quot;happy_feet&quot; style=&quot;display: inline&quot; height=&quot;50&quot; alt=&quot;happy_feet&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhow4Q8fcy3pL-8u3hNNNU8kuwbtOfmjwG6-CL-0VyiNTNsESfRm0buSgpTi_iBmJqxNUZP5YtC-AEEvF3RWKiC0KtEqny6SsDmC86Q7CEMdvk7HtKtv491HIImDUQ9NjFBm4kQppjBdXg/?imgmax=800&quot; width=&quot;45&quot; /&gt;&lt;/a&gt; इन &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000f2&quot;&gt;8 &lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;करोड़ दुधमुँहों को, जो अभी 5 वर्ष भी पार नहीं कर पायें हैं..तो अलग ही रखिये ! &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;यह &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000f2&quot;&gt;15&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt; करोड़ बेरोज़ग़ार अपनी ही चिन्ता में हैं… &lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvdRwbGEC-Ka-IC-woNAmwwN1769F0UevbPYl3q96r2ReqewUr5Ihk5VEP5CPw_e6BpMkVjfayfdttFOmHoYSmY-keOWspv9l7zjbcnOOPTNdhKD-Fv8jDiucuvOJ6hhHi9dq7nYdYr6qP/s1600-h/ATT000052.gif&quot;&gt;&lt;img title=&quot;ATT00005&quot; style=&quot;display: inline&quot; height=&quot;53&quot; alt=&quot;ATT00005&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZSQTr-nOBWoaXbvGGuk1KyC0CJsUcIx4VKthJ2ApbuVkM3sn_SKZ-RBeWy-grIgY-QjdLdZPkapft5QEFJGEjBORSTLXhxBjLEhE5uzOxw3Kpj1K3CD__Gk6Bi3W9RSto45-Wdr_1mGmo/?imgmax=800&quot; width=&quot;131&quot; /&gt;&lt;/a&gt; देश के लिये…&amp;#160; बाद में देखा जायेगा ! &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;&lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhqAPph7YzWTCv7rQ3Ccx0h76s_lZAg1A8yA2qM-CzyVKk8rviQTyGGfU0TOeQQvyKqCOB3PtMJ7U6UTSqAtdlZcSZZpxn9PCnwbMjPfSspUe0UR21_EE3dEfcHMwTCzzmBHuEpgt3ZLEU/s1600-h/ATT000062.gif&quot;&gt;&lt;img title=&quot;ATT00006&quot; style=&quot;display: inline&quot; height=&quot;90&quot; alt=&quot;ATT00006&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhT4SxdFFViLU7_-rGXZ1Z7g69wLIz9X8QFyViF9vvQXW8kjMoKaVKOXyCrI1gvrMiTg00pG8Zd6DAd5eAPZRhcva3q4dU_6FRXx-_aR64v_jSgW-CoxorstM1qiekgClOsxnZBXSO-6xZm/?imgmax=800&quot; width=&quot;90&quot; /&gt;&lt;/a&gt; और यह &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000f2&quot;&gt;1.2&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;&amp;#160; करोड़ बीमार तो अस्पतालों में कभी&amp;#160; भी&amp;#160; देखे जा सकते हैं, आतंकवादी इन्हें भले न बख़्शें, पर यह बेचारे अभी कुछ करने लायक ही नहीं हैं , सो इनको तो आप फ़िलहाल बख़्श ही दो ! &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;जरा जोड़िये तो... कितने हुये ?&amp;#160; &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000f2&quot;&gt;98 &lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;करोड़.. ठीक !     &lt;br /&gt;अब...हमरी न मानों,तो दिनेशराय द्विवेदी जी से पूछो, &lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiil_5EQojf9bOh7NVxypHIqNf20tqdrUFF91FCYepAAuMK1TSPPSDaqSDAFxYu62AEg2cUvPDGkZ2WXdXKW_Uk50g2keKLMhEdoyVhAlClwSotn3NZ49xlaJPCeCr-eoAsiI3lbbxWVvEt/s1600-h/funnyanimatedgif0045.gif&quot;&gt;&lt;img title=&quot;funny-animated-gif-004&quot; style=&quot;display: inline&quot; height=&quot;134&quot; alt=&quot;funny-animated-gif-004&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6uxyZlwNs9Egvp6FnXrWpbDpwwdgAntJiBiLPo28IYOPTmyplGQobmQrylkpj2pSUjaBM9jrIiO09PvbwLQvnKM8_eACJdq0Gfhe55lIaB2ACnI148AYzE3Zs7Sxny9kmW3xcRxDePNZZ/?imgmax=800&quot; width=&quot;240&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; पिछले माह तक &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000f2&quot;&gt;79,99,998&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt;&amp;#160; विचाराधीन या सज़ायाफ़्ता ज़ेलों में थे ! &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;बचे केवल &lt;strong&gt;&lt;font color=&quot;#0000f2&quot;&gt;दो&lt;/font&gt;&lt;/strong&gt; व्यक्ति.. यानि कि आप और हम ! &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;आप तो इस समय मेरी पोस्ट पर टिप्पणी करने जा रहे हो, और... मैं ? &lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0eAQARw3SuJ_eBLVNTXRVeyzTmBlq8sMwwahuKN0GcqdMaVbTpNO5kU4yFEP6p-6Pm5FU1GOjU4sY2yzlUPgiWbRoYS4yApuxfivN8OqrLc0jgCXFMX2vzWJo_dzidjP8eDbQg6sKxWPM/s1600-h/mail22.gif&quot;&gt;&lt;img title=&quot;mail (2)&quot; style=&quot;display: inline&quot; height=&quot;32&quot; alt=&quot;mail (2)&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjdcvTZQmlfaMGu8OYWHL9iuLIsBdDEw-2aR3N5JqkNBufW5F_y1bh_LHfFlOk6dZ1xDFrTiHv_rtwya_VBSD1gH_VFbpzJtPd9tE5bQFM2BI0LhHT9fnTI8en__odQyarO5eHcikvG9jur/?imgmax=800&quot; width=&quot;46&quot; /&gt;&lt;/a&gt; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि,&amp;#160; चल के आपकी पोस्ट पर टिप्पणी चुकता करूँ &lt;a href=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgX-AlJDYsHhUj-I0d4Nx9CQ8I8g_LXaKeC7M2C5Xz5yaH8LLWc1it3NOupO2yN_gcdPUM_dNDf1_XX0lQUCT6fS9IT4lB6b_zUjB64VtR3z84l2aU0kTBnWfpSR3DQOineNhshaC6TN4hB/s1600-h/avatar247_02.gif&quot;&gt;&lt;img title=&quot;avatar247_0&quot; style=&quot;display: inline&quot; height=&quot;50&quot; alt=&quot;avatar247_0&quot; src=&quot;https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiWXQHQt8Jl0DxdKg7ppW_vqe6nZxL5AM87ialBAastKPdgZzIp0rB0hjvm6TA6Jt1apbrCZlVUSM1gj7jySiOtoI9fv4Aw9dG_rZjeHLRR5mT9bzZO6jLK3Mfecv94UfyLsnWskKWNTFn/?imgmax=800&quot; width=&quot;50&quot; /&gt;&lt;/a&gt;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160;&amp;#160; &lt;/p&gt;  &lt;p&gt;या देश की चिन्ता करूँ ? यही तो रोना है.. कि, इतना विशाल देश.. क्या अकेले मेरे बस में है ?&lt;/p&gt;  &lt;div class=&quot;wlWriterEditableSmartContent&quot; id=&quot;scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:db4ad48b-88e3-4a78-919d-bd07d75cc316&quot; style=&quot;padding-right: 0px; display: inline; padding-left: 0px; float: none; padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-top: 0px&quot;&gt;Technorati Tags: &lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Idiocy&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Idiocy&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Photoblog&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Photoblog&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Over-population&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Over-population&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Excuses&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Excuses&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Nitthalla&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Nitthalla&lt;/a&gt;,&lt;a href=&quot;http://technorati.com/tags/Concerned+Leadership&quot; rel=&quot;tag&quot;&gt;Concerned Leadership&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;  </description><link>http://c2amar.blogspot.com/2009/01/blog-post_13.html</link><author>noreply@blogger.com (डा. अमर कुमार)</author><media:thumbnail xmlns:media="http://search.yahoo.com/mrss/" url="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjlV1og8Sld_hViptP3Esuwxn28oL2dWwdF2aV5ZUp1irfqYkPeodORnPcUolvL6hr1DhpUP0uxBNUnFBiJbzNgS_nn2RaURa6CypVuckEDXpNHD0ymehgMpp4_V5Wedq76p5SwO_xjBKO1/s72-c?imgmax=800" height="72" width="72"/><thr:total>15</thr:total></item></channel></rss>

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